आरक्षण जैसा खेला वक्फ बिल पर भी कर रहा है विपक्ष….? वक्फ बिल पर ऐसा टकराव क्यों?

भारत की संसद ने वक्फ कानून को बहुमत के आधार पर पास कर दिया। आमतौर पर कानून बहुमत के आधार पर ही पारित होते हैं। बिल और बिल संशोधनों पर उस स्थिति मतदान कराया गया जब यह पता था कि नम्बर सत्तापक्ष के पास हैं? तब सवाल यह उठ रहा है कि विपक्ष ने इस बिल को लेकर इतना टकराव क्याें किया? विरोध के स्वर मस्जिदों से, धर्मगुरूओं से और उसके प्रभाव में मुस्लिम समुदाय के एक बड़े वर्ग से भी उठे हैं।

सुरेश शर्मा, भोपाल।

भारत की संसद ने वक्फ कानून को बहुमत के आधार पर पास कर दिया। आमतौर पर कानून बहुमत के आधार पर ही पारित होते हैं। बिल और बिल संशोधनों पर उस स्थिति मतदान कराया गया जब यह पता था कि नम्बर सत्तापक्ष के पास हैं? तब सवाल यह उठ रहा है कि विपक्ष ने इस बिल को लेकर इतना टकराव क्याें किया? विरोध के स्वर मस्जिदों से, धर्मगुरूओं से और उसके प्रभाव में मुस्लिम समुदाय के एक बड़े वर्ग से भी उठे हैं। विपक्षी दलों में भी बिल का विरोध करने को लेकर मतभेद सामने आये जबकि समुदाय के स्वरों में नये बिल का समर्थन दिखाई दिया। तब यह सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या विपक्ष इस मामले में सहानुभूति की राजनीति कर रहा है? इस बात को वजन तब और मिल जाता है जब ओबीसी को आरक्षण देकर न्यायालय से उसे रिजेक्ट कर देने की राजनीति की जाती है ठीक वैसी ही राजनीति यहां भी हो रही है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के पहले ही न्यायालय की शरण में दलों का पहुंचाना मुस्लिम वोट का अपने पक्ष में मोड़ने की राजनीति भर है। जब यह कानून संशोधन की प्रकि्रया से गुजर रहा था तब चली बहस से कुछ गंभीर बातें भी सोशल मीडिया पर आई? कुछ बातें बहस के दौरान सदन में उठी। इस कानून का संविधान में कोई स्थान नहीं था इसका प्रावधान 1954 में पंडित नेहरू ने किया था। अंग्रेजों ने जो खेल किया था पंडित नेहरू ने भी वैसा ही खेला कर दिया। जबकि विभाजन के बाद पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की छोड़ी हुई जमीन के लिए कोई प्रावधान नहीं किया अपितु उसे शत्रु संपत्ति मानकर सरकारी संपत्ति बना लिया गया था। हर नये कांग्रेसी प्रधानमंत्री पे वक्फ या मुस्लिम अधिकारों को संविधान में ताकतवर बनाने का प्रयास किया जो मनमोहन सिंह के समय वक्फ बिल का अति अधिकार संपन्न करके किया गया। हालांकि वोट इसके बाद भी नहीं मिले और सरकार चली गई? वक्फ कानून सामाजिक असन्तुलन पैदा करने तक पहुंच गया था इसलिए हाल में हुए बदलाव देशहित व समाजहित में बेहद जरूरी थे जो किये गये?

भारत के संविधान में बहुत ही स्पष्ट लिख हुआ है कि कोई भी कानून बनाने के लिए संसद अधिकृत है। जब कोई कानून लम्बी बहस और मतदान के बाद बनता है तब उसमें कोई बहुत अधिक गुंजाइश नहीं होती कि न्यायालय संसद के कानून को रद्द करेगा? इसके बाद भी संविधान कानून को चुनौती देने के िलए न्यायालय जाने की अनुमति देता है। अनेक सदस्यों ने यह बताने का प्रयास किया है कि संविधान की अन्य धाराओं का कानून बनाते समय ध्यान नहीं रखा गया। दूसरी तरफ पूजा स्थल एक्ट प्रभावी होने के बाद भी देश के कई पूजा स्थलों के बारे में सर्वे कराने के आदेश देश की सभ्ाी प्रकार की अदालतों ने दिया है। अर्थ यह हुआ कि कानून बनाने वाली संस्था के अधिकार को देखा जाता है और वह कानून देश के लिए क्यों जरूरी है? वक्फ कानून देश के लिए जरूरी है इसके प्रमाण विरोध करने वालों की तुलना में अधिक हैं। जब विभाजन के समय भारत और पाक का तुलनात्मक अध्यन करते हैं तब इस प्रकार के कानून पक्षपाती हैं। पाकिस्तान में ऐसा कोई कानून बनाया। यहां तक की जो लोग भारत आ गये उनकी संपत्ति को शत्रु संपत्ति माना गया। भारत में भी कुछ संपत्तियों को शत्रु संपत्ति माना तो गया लेकिन उनके साथ व्यवहार वैसा नहीं हुआ? ऐसा राजनीतिक कारणों से किया गया।
अब वक्फ कानून को लेकर होने वाला विरोध राजनीतिक नहीं है यह कैसे मान लिया जाये? यह हो सकता है कि सरकार बिल भी राजनीतिक कारणों से लायी हो लेकिन उसके पास देशहित के प्रमाण देने के लिए हैं। यदि देश का बंटवारा धार्मिक आधार पर नहीं हुआ होता तब यह सवाल उठ सकता था। लेकिन देश का बंटवारा हिन्दू और मुसलमान के आधार पर हुआ था। सरकार पटेल ने कहा था कि जब बंटवारा धर्म के आधार पर हुआ है तब मुसलमानों के भारत में रोकने का आधार क्या है? अब यह तर्क दिया जाता है कि जिन्हें पाकिस्तान पसंद था उन्होंने वो चुना और जिन्हें हिन्दूस्तान पसंद है उन्होंने भारत चुना। लेकिन यह सच नहीं है। जिन्होंने पाक बनाने में समर्थन का वोट दिया था उनमें से अधिकांश ने भारत में रूकना पसंद किया जिसका कारण आज समझा जा सकता है। आज फिर से बराबरी या विभाजन की बात उठ रही है। इसलिए जब पंडित नेहरू ने वक्फ कानून बनाया तब उनकी मंशा कोई हित करने की न होकर मुस्लिम वोटों की राजनीति पर आधारित थी। इस कानून में कई बार संशोधन हुए। लेकिन मनमोहन सिंह ने चुनाव से पहले किए गये संशोधनों ने देश में गंभीर समस्या पैदा कर दी। वक्फ टब्यूनल को असीमित अधिकार दे दिये। अब वे जिस पर हाथ टिका देंगे वह जमीन व भवन वक्फ का हो जायेगा। टर्ब्यूनल ने यदि निर्णय दे दिया तब उसको कोई चुनौती नहीं दे सकता? इस संशोधन ने देश के कई प्रमुख इमारतों को वक्फ ने अपना होने का दावा किया। मुकदमें प्रचलन में हैं।

संसद की बहस बताती है कि कानून बनाने पर खुब बहस हुई। दिन रात संसद ने काम किया और नेताओं को नींद तक नहीं आई। यह भी हो सकता है कि नेताओं की नींद उड़ ही गई हो। भाजपा की कानून बनाने के लिए और विपक्ष की यह दिखाने के लिए कि वह तो खूब विरोध कर रही थी लेकिन बहुमत का खेल हो गया। भारत में एक वोट से सरकार के गिरने का अनुपम उदाहरण इसका सहारा बन सकता है। इसलिए विपक्ष ने पूरी इमानदारी से यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि वह मुस्लिम समाज को प्रयास करता हुआ दिखाई दे कि उसने कानून को बनने से रोकने के संपूर्ण प्रयास किये हैं। जब दोनों सदनों ने कानून को पास कर दिया और राष्ट्रपति के हस्ताक्षार के लिए उसे भेज दिया गया तब विपक्ष पूरी शिद्दत के साथ बिल का विरोध करने न्यायालय में पहुंच गया। ऐसा सदन में भी कहा जा चुका था। आल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड से पहले ही न्यायालय में जाने का विकल्प चुना गया। आखिर इन सबका कारण क्या है? धारा 370 के समय भी मुसलमानों की पैरवी की जा रही थी। जबकि वह राज्य का विषय था मुसलमानों का विषय कैसे हो गया? यह चातरनाक राजनीति देश के लिए कितना उचित है देखने और सोचने का विषय है?

समूचा विपक्ष बिल के विरोध में था। बहस और वोटिंग इसका प्रमाण हैं। जिन संशोधनों ने मुस्लिम नेताओं के सेंटीमेंट जुड़ रहे थे उन पर मतदान कराने का अभिप्राय ही यही है कि विपक्ष समुदाय की नजरों में आना चाहता है। आखिर नजरों में आने के पीछे केवल वोट बैंक की राजनीति है या फिर कोई और भी कारण हैं? मुस्लिम समुदाय में विरोध के लिए मस्जिदों से संदेश दिया गया। इसके बाद भी बड़ी संख्या में मुसलमानों ने बिल का समर्थन किया। कारण वही है जो भाजपा का नेतृत्व और सदन में बोलने वाले वक्ताओं ने कहा है। वक्फ की जमीन और आय चंद धार्मिक और प्रभावशाली लोगों के कब्जे में है। बड़े-बड़े होटल या विश्वविद्यालय उनके बन गये हैं। इस बिल के बाद उन्हें अपने इस साम्राज्य की नींव हिलती दिखाई दे रही है। आजम खां का उदाहरण देश के सामने पहले से है तब औवैसी को डर क्यों नहीं लगेगा? इसलिए यह कानून सुधारवादी भी है। पसमांदा और अन्य गरीब मुसलमान महिलाओं के लिए किये गये प्रावधान से एक बड़ा वर्ग इसीलिए खुशी दिखा रहा है। इसलिए जो पेश किया जा रहा है या विपक्ष जो दिखाने का प्रयास कर रहा है कानून में वैसा कुछ है नहीं?

वक्फ बिल ने जिस प्रकार का नजारा दो दिन दो रात में दिखाया है उससे देश को डरना चाहिए। जिन्होंने सत्ता के लिए देश का विभाजन स्वीकार कर लिया था। जिन्होंने वोट के लिए अपनी मान्यताओं को बदल लिया है। उनकी सोच में कोई बड़ा अन्तर नहीं आया है। देश का बंटवारा होकर एक देश पहले लिया जा चुका है उसके बाद भी गलत तरीके से सरकारी संपत्ति को वक्फ की बताने का अपराध करने वालों के पक्ष में जिस प्रकार से विपक्ष खड़ा हुआ है यह डरने के लिए पर्याप्त आधार है। यदि मुस्लिम समाज देश काे एक बार और बांटने की मांग रख देगा तो भारत का विपक्ष वोट की राजनीति के लिए उसे भी स्वीकार करके पख लेने को आगे आ जायेगा? उसमें होड़ होगी कि कौन अधिक प्यारा लग रहा है। इसका आधार यह भी है कि बांग्लादेश में हिन्दूओं पर हुए भयावह अत्याचार पर किसी की आवाज नहीं निकली? पाकिस्तान में अल्पसंख्यक दो प्रतिशत भी नहीं बचे तब कोई विपक्षी दल इसकी आवाज नहीं उठा रहा क्यों? यही तो डर है।

संवाद इंडिया
(लेखक हिन्दी पत्रकारिता फांउडेशन के चेयरमैन हैं)

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