‘कांग्रेस’ निराशा में क्यों कर रही है चुनाव की ‘शुरूआत’

सागर जिले का बीना काफी प्रसिद्ध स्थान है। यह जिला इस समय भाजपा का गढ़ है। जमाने पहले कांग्रेस यहां से सभी सीटें जीतती थी। कांग्रेस का काम घटता गया और सागर भाजपा की ओर आता गया।

भोपाल (सुरेश शर्मा)। सागर जिले का बीना काफी प्रसिद्ध स्थान है। यह जिला इस समय भाजपा का गढ़ है। जमाने पहले कांग्रेस यहां से सभी सीटें जीतती थी। कांग्रेस का काम घटता गया और सागर भाजपा की ओर आता गया। जो जैन समाज डालचंद जैन और वि_ल भाई पटेल जैसे नेताओं के कारण कांग्रेस के साथ था वह पीढ़ी चली गई। जो उनकी विरासत संभाल रहे थे वे कमजोर होते चले गये और जनता के साथ उनका वह रिश्ता भी नहीं रहा और संबंध भी नहीं रहे। गोपाल भार्गव भाजपा के साथ ऐसे स्तंभ के रूप में आये कि वह ताकतवर हो गई। वे अभी तक अपने व्यवहार के कारण अजेय बने हुए हैं। भूपेन्द्र सिंह शिवराज सिंह चौहान के साथ के कारण ताकतवर हो गये। अब तो गोविंद सिंह राजपूत भी भाजपाई हो चुके हैं। इसलिए कांग्रेस वहां को लेकर छटपटा रही है। जब राजनीति में छटपटाना शुरू हो जाता है उस समय शब्दों पर नियंत्रण की सबसे अधिक जरूरत होती है। क्योंकि जनता का ध्यान तभी जाता है। कमलनाथ छिन्दवाड़ा में जो राजनीति करते हैं वह वे सागर में भी करना चाह रहे हैं। यह चूक हो रही है। यह निराशा का प्रदर्शन है। आज की राजनीति में सत्ता किसी से निपट नहीं सकती है क्योंकि नेताओं का आपसी कनेक्शन ही कुछ अगल किस्म का हो गया है। इसलिए कमलनाथ की धमकी से न तो प्रशासन पर असर होने वाला है न ही भाजपा के नेताओं पर।

इस छिन्दवाड़ा पालिटिक्स से कांग्रेस का नुकसान जरूर हो रहा है। सागर जिले का कार्यकर्ता यह चाहता है कि भूपेन्द्र सिंह के सामने कोई ताकतवर व्यक्ति नेता बने। कमलनाथ चाहते हैं कि प्रदेश में कोई नेता ही न रहे और सब उन्हीं के दरवाजे पर दस्तक दें। इसलिए उनका कार्यकर्ता निराश हो रहा है। दूसरी तरफ लगातार हार रही सीटों का आकंलन करने प्रदेश भर में दिग्विजय सिंह भी यात्रा कर रहे हैं। वे भी सागर जिले में आये थे और बीते दिन सीहोर में थे। यहां सीटों पर भी भाजपा का एकाधिकार है। मुख्यमंत्री का जिला है इसलिए जीत तो होना ही है। यहां आकर दिग्विजय सिंह निराश हो गये। उन्होंने स्वीकार कर लिया कि कांग्रेस का संगठन कमजोर है। बूथ पर तो और भी कमजोर है। चुनाव तक शोर मचता है लेकिन मतदान के दिन सफलता की राह बंद हो जाती है। इसलिए भाजपा के संगठन का मुकाबला करने की स्थिति में कांग्रेस नहीं है। यही बात कमलनाथ कहते आये हैं कि उनका मुकाबला भाजपा के ताकतवर संगठन है, उसकी आर्थिक शक्ति से है और प्रशासन से है। इसलिए वे प्रशासन को धमकाते हैं हम सत्ता में आ रहे हैं निपट लेंगे?

कोई भी इस बात को मान लेगा कि चुनाव की शुरूआत निराशा और धमकियों से नहीं होती है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह धमकी और निराशा भरी बातें करके कार्यकर्ता में भाजपा से लडऩे और जनता के सामने सहानुभूति पैदा करने जैसी स्थिति नहीं बना सकते हैं। मतदाता नये विजन और आत्मविश्वास से भरी सोच को सरकार बनाने का मौका देता है, निराश और टूटे हुए नेता को नहीं। इसलिए यह समझने की जरूरत है कि कांग्रेस का नेतृत्व निराशा से अपने चुनाव अभियान की शुरूआत क्यों कर रहा है? युवा नेताओं को किनारे करने के बाद अब वयोवृद्ध नेता निराशा फैला रहे हैं इसका मकसद क्या हो सकता है? समझना होगा।

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