केजरीवाल का हिसाब बराबर कर अगला नम्बर किसका?… बिहार पर अस्थिरता क्यूं व किसकी?
दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम का जश्न समाप्त भी नहीं हुआ है बिहार को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया। बिहार की राजनीति अजीब किस्म की है। यहां सबसे बड़ा दल भाजपा है जो सरकार का समर्थन कर रहा है। दूसरे नम्बर का दल विपक्ष में है और तीसरे दर्जे का दल सरकार चला रहा है।

सुरेश शर्मा, भोपाल।
दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम का जश्न समाप्त भी नहीं हुआ है बिहार को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया। बिहार की राजनीति अजीब किस्म की है। यहां सबसे बड़ा दल भाजपा है जो सरकार का समर्थन कर रहा है। दूसरे नम्बर का दल विपक्ष में है और तीसरे दर्जे का दल सरकार चला रहा है। बस यही बात मीडिया को आधार देती है और चर्चाओं का बाजार सज रहा है। पहले नम्बर की भाजपा क्या अपनी सरकार बनायेगी? तीसरे दम्बर वाला दल क्या चुनाव से पहले दूसरे नम्बर के दल के साथ जायेगा? या दूसरे नम्बर वाला दल कोई नया गेम करने की स्थित है? जिससे उसकी भी कोई संभावना बन जायेगी? इन्हीं समीकरणों की तलाश बिहार में चल रही है। मीडिया मंथन है? नेताओं के बयान हैं? केन्द्र की सरकार का संचालन कर रही भाजपा जिसका जीत का सिलसिला जारी है वह बिहार के बारे में क्या मत रख सकती है? इन्हीं बातों को लेकर बिहार ने जल्द ही दिल्ली जीत का जश्न थाम दिया है। वैसे भी दिल्ली की जीत के बाद जश्न कम बदला अधिक लेना था। वह सिलसिला चल रहा है। जिन लेखा परीक्षक की रिपोर्टस को केजरीवाल ने दबाकर रख रखा उनको नई सीएम रेखा गुप्ता सार्वजर्निक करने में लगी हैं। इससे केजरीवाल की बची खुची साख का भी कचरा होने वाला है। अभी तक ईडी की कार्रवाई थी अब सीएजी की रिपोर्ट उस कार्रवाई में और सहायक बन जायेगी? रिपोर्ट एक-दो नहीं दस बताई जा रही हैं। मतलब यह हुआ कि केजरीवाल की राजनीित ने देश भर के नेताओं को बेज्जत किया था अब सभी इस मामले में एक हो गये हैं। भाजपा के नेता प्रवेश वर्मा जिन्होंने केजरीवाल को हराया है कहते हैं कि इस जन्म में केजरीवाल तिहाड़ से बाहर आने वाला नहीं है? आखिर इतने गंभीर आरोपों पर केजरीवाल चुप क्यों हैं? क्या केजरीवाल अन्तिम आहार होगा या फिर राहुल गांधी को भी इसी प्रकार से विक्टम बनाया जायेगा? कुल जमा यह कहा जा सकता है कि देश की राजनीति इस साल में कुछ विशेष देने की संभावना दिखा रही है।
केजरीवाल ने देश की राजनीति को बदलने का सपना दिखाया था। अन्ना के आन्दोलन का देश में ऐसा जुनून था कि लोगों को दो ही नाम दिखते थे केजरीवाल और मोदी? मोदी ने दिल्ली या केन्द्र की राजनीति करने वाले दिग्गज भाजपाइयों को किनारे करके दिल्ली की तरफ कूच किया था? वहीं केजरीवाल ने दिल्ली के रामलीला मैदान से दिल्ली के मुख्यमंत्री की तरफ पांव बढ़ाये थे? देश ने मोदी को देश के संचालन का काम दिया और केजरीवाल को दिल्ली का। मोदी ने देश के सपने के अनुसार काम किया। उन्होंने भारत की संभावनाओं को भारत के संस्कार के साथ ताराशना शुरू किया। जबकि केजरीवाल ने सभी नेताओं को नीचा दिखाने का काम शुरू किया। उनकी नजर में सब नेता भ्रष्ट हैं। एक के बाद एक को निशाने पर लिया। दो ही साल में उनका यह हथियार प्रभावहीन हो गया। लेकिन अपना सन्तुलन बनाये रहे। राजनीति और विकास के सन्तुलन के साथ वैश्विक स्तर पर खुद को और भारत को स्थापित करते गये। मोदी केजरीवाल से आगे निकल गये। बड़ा अनुभव और उससे बड़ा संगठन उनके साथ जो था। संघ जैसा विचारवान संगठन उनके लिए दिशा तय करता था। केजरीवाल ने साथ प्रतिभाओं को किनारे करके खुद किनारे पर आ गये?
दो चुनाव दिल्ली के और एक पंजाब का। केजरीवाल को लेकर देश में चमक पैदा हो गई? लेकिन जिस राजनीति को केजरीवाल नहीं समझ पाये वह यह थी कि केजरीवाल को कांग्रेस का विकल्प समझा गया भाजपा का नहीं? भाजपा की विचारधारा देश की सभी राजनीतिक पार्टियों से अलग थीं। शिवसेना ने खुद ही राजनीतिक आत्महत्या कर ली। इसलिए भाजपा देश में चुनौतीहीन हो गई? केजरीवाल ने भाजपा की विचारधारा को अन्य दल की भांति विरोध करना शुरू किया तो मुस्लिम समाज ने उसे विकल्प मान लिया। इस आधार पर राज्यवार बढ़ने की बजाए दिल्ली में भ्रष्टाचार को गले लगाने के आरोप और अन्य राज्यों में कोई विजन पेश नहीं कर पाने के कारण देश में केजरीवाल की हवा कमजोर हो गई। गुजरात में प्रदर्शन किया लेकिन कोई दम नहीं दिखा पाये? हरियाणा में कोई खास बात नहीं दिखी? गोवा में कुछ किया लेकिन सत्ता को प्रभावित नहीं कर पाये। मोदी के खिलाफ हर सांस में आलोचना और अभद्रता। अब कांग्रेस को भी निपटाना शुरू कर दिया? इसलिए दिल्ली चुनाव से पहले वह सब हुआ जिसकी संभावना थी। अब चुनाव के परिणाम खिलाफ आये। खुद हार गये। इसलिए वह सब होगा जो चुनाव के बाद होना है। इन दिनों की राजनीित कुछ अधिक निष्ठुर हो चली है?
केजरीवाल का हिसाब दो महीने में बराबर हो जायेगा? इसके बाद विधानसभा के चुनाव सामने आ जायेंगे? लालू परिवार को नौकरी के बदले जमीन लेने के मामले में न्यायालय ने तलब कर ही लिया गया है? इसलिए बिहार में एक और चुनाव बेईमान बनाम भाजपा हो जायेगा? बिहार को केन्द्र का पेकैज मिल गया। विकास की मुख्यधारा में तेजी से दौड़ा दिया गया। इसलिए लालू परिवार के साथ घबराहट नीतीश बाबू में ही दिखाई दे रही है? मीडिया हवा में मामला नहीं उठा रहा है। नेताओं की फिदरत रहती है कि वह मीडिया में वही उछालते हैं जिससे उनकी मांग पूरी होती हो। जिस सवाल का जवाब जनना है उसकाे भी उछाल दिया जाता है। इसलिए नीतीश का बेटा तक आ गया सामने? चुनाव से पहले ही तय हो जाये कि किस नाम पर चुनाव लड़ा जायेगा? अपना नाम लाने के लिए नीतीश सात मंत्री देने को राजी हो गये? लेकिन भाजपा भी अच्छे से मोलभाव करना चाहती है। बिहार में तय होगा कि नीतीश के नाम पर चुनाव होंगे या यहां भी मोदी का चेहरा सामने किया जायेगा? अभी तय होना बाकी है। लेकिन संभावनाओं को खंखालने का प्रयास करने पर यह जरूर संदेश मिलता है कि जदयू का कितना जीवनकाल बचा है? इसलिए एक बार और नीतीश बाबू ही हो जायें?
कोई कितना भी यह कहता रहे कि नीतीश को किनारे करने में भाजपा को लाभ है? जबकि नीतीश को आगे करने ये भाजपा को लाभ कितना होगा यह अलग बात है लेकिन मोदी काे इससे बड़ा लाभ है। मोदी पर तानाशाह के आरोप लगाने वालों को यह करारा जवाब है। पहले नम्बर की पार्टी तीसरे नम्बर वाली को सीएम की कुर्सी दे रही है इसलिए वह तानाशाह नहीं हो सकते हैं। बिहार जातियों की राजनीति करता है। पहले यूपी भी करता था। भाजपा ने राम मंदिर के सहारे यूपी के समीकरण बदल दिये। वहां योगी मिल गया। लेकिन बिहार में तो योगी या मोहन यादव कोई दिखाई दे ही नहीं रहा। लेकिन भाजपा के मन में नीतीश के साथ ही कोई दूसरी रणनीति नहीं होगी ऐसा कैसे कोई मान सकता है। इसलिए मीडिया को अपना काम करने दिया जाये। राजनीति अपना काम दिखा ही देगी। भाजपा ने जब अपने मंत्रियों की संख्या बढ़ाई और जातिगत रूप से माइक्रो प्रंबधन किया है यह किसी संदेश से कम नहीं है। अब नीतीश की ताकत भाजपा को ही नई शक्ति प्रदान करने वाली सहायक हो सकती है।
इस समय राजनीति की जिज्ञासा यह है कि आखिर केजरीवाल के बाद किस नेता का नाम है जिससे देश की राजनीति को नुकसान है? इसमें सबसे पहला नाम राहुल गांधी का आता है। राहुल के साथ जार्ज सोरेस का नाम अब भाजपाई जोड़ने लग गये हैं? चीन के साथ समझौते और चीन को बढ़ा-चढ़ाकर राहुल गांधी हर विषय में पेश कर रहे हैं। भारतीय उद्योगपतियों के लिए देश में नकारात्मकता बनाने का प्रयास भी उनका शगल है। वे मोदी सहित संघ को अविशिष्ठ अलंकरणों से संबोधित करते हैं। और तो और वे इस समय घोर सनातन विरोधी होने का प्रमाण पेश करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ पाते हैं। ऐसे में राहुल गांधी की पटकथा भी लिखी जा चुकी हो कोई नहीं समझ सकता है? केजरीवाल की राजनीति को इतना बड़ा झटका देने के साथ ही राहुल गांधी को झटका दे दिया जाये तो कोई अचरज की बात नहीं होना चाहिए। भारत की राजनीति में इस समय चलने वाले विषयों में मोदी का आकर्षण और तेजी से आगे बढ़ने की उनकी रणनीति का कोई तोड़ दिखाई नहीं दे रहा है। भारतीय राजनीति में नेताओं की प्रतिभा का संगम भाजपा में दिखाई दे रहा है। इसमें समझने वाली बात यह है कि अब दक्षिण भारत के नामी एक बड़ा राजनीतिक संदेश है। जिसका भाजपा जयन मना रही है।
संवाद इंडिया
(लेखक हिन्दी पत्रकारिता फाउंडेशन के चेचरमैन हैं)