‘इतने’ समय से कहां छुपा था 5 करोड वाला ‘आरोप’

मुकेश मल्होत्रा की विजयपुर से जीत न केवल कांग्रेस के लिए अपितु मीडिया के लिए भी कोतुहल का विषय बनी हुई है। स्वभाविक है जिस दल को हारने की आदत बन चुकी है उसकी एक जीत भी कोतुहल ही होती है। उसी के बाद ही तो बुधनी की कम लीड से हार भी चर्चा का कारण बनी है।

भोपाल। मुकेश मल्होत्रा की विजयपुर से जीत न केवल कांग्रेस के लिए अपितु मीडिया के लिए भी कोतुहल का विषय बनी हुई है। स्वभाविक है जिस दल को हारने की आदत बन चुकी है उसकी एक जीत भी कोतुहल ही होती है। उसी के बाद ही तो बुधनी की कम लीड से हार भी चर्चा का कारण बनी है। जबकि सब यह जानते हैं कि प्रत्याशी और समाज का समीकरण हर चुनाव में अपना होता है। कार्यकर्ता और मतदाता का मानस एक जैसा नहीं हो सकता है। फिर भी सबसे अधिक चर्चा विजयपुर की ही होना है। जिस प्रकार अंधे के हाथ बटेर लग जाने वाली कहावत है ठीक उसी प्रकार से विधायक मुकेश मल्होत्रा का एक आरोप उसी प्रकार से मीडिया के लिए औषधी बन गया है। मुकेश ने अपने स्वागत के बदले कह दिया कि उन्हे पांच करोड़ रुपये चुनाव न लड़ने की एवज में देने की पेशकश की गई थी। लेकिन उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासी बिकाऊ नहीं होता है। उनके आरोप की राजनीतिकरण आदिवासी बिकाऊ नहीं होता है यह कहते ही हो गया। लेकिन इससे बड़ा सवाल यह है कि पूरा चुनाव बीत गया। चुनाव के परिणाम भी आ गये। लेकिन इतने गंभीर विषय को छुपा कर क्यों रखा गया था? अब इसे कहने का औचित्य ही क्या रह जाता है। आरोप गंभीर है इसकी जांच होना चाहिए?

पांच करोड़ किसी का ईमान डिगाने के लिए पर्याप्त राशि है। रामनिवास रावत मंत्री बन गये थे। उन्होंने इस्तीफा दे दिया लेकिन उसे अभी तक स्वीकारा नहीं गया है। होल्ड पर रखवा कर सीएम विदेश चले गये। हायकमान से बात होगी तब यह तय होगा कि छह माह मंत्री बनाकर रखा जाये या इस्तीफा स्वीकार करके कोई और जिम्मेदारी दी जाये। क्योंकि एक लोकसभा सीट जीतवाने जैसा उपकार भाजपा पर उनका है। इसलिए रावत इब्राहिम कुरेशी की भांति मंत्री बनते हैं या इमरती देवी की भांति किसी निगम के अध्यक्ष। दो-चार दिन बाद सब क्लियर हो जायेगा? लेकिन राजनीति इस बात पर नहीं अपितु पांच करोड़ की पेशकश पर होना है। भाजपा की ओर से पहली प्रतिक्रिया मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल की ओर से आ गई है। उन्होंने इसे बेबुनियाद बता दिया। यह हर किसी पर फिट हो जाने वाला शब्द है। मुकेश के आरोप में एक बात और है कि यदि चुनाव लड़ा तो देख लेंगे? चुनाव हो गया। जीत भी लिया गया और रामनिवास हार भी गये। लेकिन देख लेने वाली बात का हिस्सा भी सामने नहीं आया है। इसलिए आरोपों की जांच कराये जाने की जरूरत है।

राजनीति में इस प्रकार के आरोपों का राजनीतिक जवाब ही दिया जाता है। जांच नहीं कराई जाती। इस समय आरोपों पर मानहानि के मामले दर्ज कराने या नोटिस देने का चलन बढ़ गया। अब खंडन का मतलब नोटिस दे देना हो गया है। इसलिए मुकेश ने सुर्खियां तो बटोर ली लेकिन कोई कम ही विश्वास करेगा कि 5 करोड़ का आफर आया होगा। यदि सच में आया होता तो मुकेश इंदौर वाले बम की भांति भाजपा के साथ ही बैठे दिखाई देते। इसलिए मीडिया को खुराक मिल गई और मुकेश मल्होत्रा आदिवासी होकर भी समझदार राजनेता यह प्रमािणत करने में कामयाब हो गये?

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