विपक्ष न्यायपािलका को घेरने लगा तो सामने आये चन्द्रचूड

पिछले समय से न्यायपािलका मुखर होकर आदेश भी दे रही है और उसके सेवानिवृत्त न्यायाधीश पक्ष भी रख रहे हैं। महाराष्ट्र चुनाव में करारी हार के बाद विपक्ष ने ईवीएम के साथ न्यायपालिका पर भी हमला बोला। ऐसा शायद पहली बार हुआ है कि पूर्व सीजेआई पर इस प्रकार की टिप्पणी गई हो।

सुरेश शर्मा, भोपाल। पिछले समय से न्यायपािलका मुखर होकर आदेश भी दे रही है और उसके सेवानिवृत्त न्यायाधीश पक्ष भी रख रहे हैं। महाराष्ट्र चुनाव में करारी हार के बाद विपक्ष ने ईवीएम के साथ न्यायपालिका पर भी हमला बोला। ऐसा शायद पहली बार हुआ है कि पूर्व सीजेआई पर इस प्रकार की टिप्पणी गई हो। शिवसेना यूबीटी के नेता संजय राउत ने पूर्व सीजेआई चन्द्रचूड का नाम लेकर हमला बोला। संजय ने कहा कि आज की हार में चन्द्रचूड की भूमिका भी है। यदि वे प्राथमिकता के आधार पर महाराष्ट्र का मामला निपटा देते तो आज यह स्थिति नहीं होती। उनका आशय यही रहा होगा कि मामले को लटकाया गया। ऐसा भी एक मामला सपा नेता प्रो. रामोपाल यादव की ओर से आया है। संभल मामले में उन्हाेंने जज को आरोपित किया। रामगोपाल कहते हैं इस प्रकार से यदि आदेश जज देते रहे तो देश में आग लगवा देंगे। यह धीरे से ही सही विपक्षी नेताओं का न्यायपालिका को अपनी आलोचना की जद में लाने का प्रयास है। इसको समझने की जरूरत है। इससे पहले सभी संवैधानिक संस्थाओं की आलाेचना तो विपक्ष प्रखरता से करता ही आ रहा है।

इसी बीच न्यायालय में बलेट पेपर से चुनाव कराये जाने संबंधित याचिका को न्यायालय ने खारिज कर दिया। टिप्पणी यह की गई कि चुनाव हारने पर ईवीएम खराब और जीतने पर चुप्पी? ऐसा कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया गया। राजनीतिक आरोप का जवाब देने के लिए पूर्व सीजेआई चन्द्रचूड सामने आये। एक आयोजन में उन्होंने कहा कि यह नहीं सोचना चाहिए कि न्यायपािलका विपक्ष की भूमिका निभायेगी? उन्होंने साफ किया कि सीजेआई को यह निर्णय करना होता है कि कौन सा मामला कब सुनवाईके लिए लेना है। यह नेताओं की सुविधा को देखकर नहीं लिया जा सकता है।

महाराष्ट्र चुनाव इस प्रकार की हार के बाद विपक्ष की गतिविधियों में नकारात्मक आक्रामकता आ रही है। वह देशव्यापी मुहिम चलाकर ईवीएम का विरोध करने की बात कह रहा है। वहीं कांग्रेस शािसत राज्यों के स्थानीय चुनावों को वह बलेट पेपर से करवाने की पहल नहीं करेगा? विपक्ष की करनी और कथनी में यही असमानता है। किसानों का एमएसपी कानून की गारंटी दी थी। लेकिन कांग्रेस शासित राज्यों में इस कानून का मसौदा तैयार ही नहीं हुआ है और न ही कोई चर्चा है। खटाखट को पूरा करने के लिए अपने शासित राज्यों को निर्देश देने संबंधित कोई बात सामने आई ही नहीं है। इसलिए जनता का भरोसा बचा नहीं है। आरोप न्यायपालिका और ईवीएम पर लगाये जा रहे हैं। वैसे भी नेताओं ने रास्ता निकाल लिया कि तगड़ा आरोप लगा दो मीडिया का ध्यान उस आरोप पर लग जायेगा और कार्यकर्ताओं के जहन में हार के कारणों का सवाल साइड हो जायेगा।

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