इतने सलेक्टेड हमले करने का राहुल मिशन क्या?

लोकसभा चुनाव के प्रचार के समय से ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी का हमला नियोजित ही है। जब वे अमेरिका में अपने संबोधन में किसी सिख व्यक्ति का नाम पूछते हैं और उस पर कहते हैं कि पगड़ी पहनने के लिए भारत में संकट है। कड़ा पहनकर अन्दर आने की समस्या है।

सुरेश शर्मा

लोकसभा चुनाव के प्रचार के समय से ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी का हमला नियोजित ही है। जब वे अमेरिका में अपने संबोधन में किसी सिख व्यक्ति का नाम पूछते हैं और उस पर कहते हैं कि पगड़ी पहनने के लिए भारत में संकट है। कड़ा पहनकर अन्दर आने की समस्या है। यह वही चुनिंदा हमला है। उन्होंने किसी मुसलमान व्यक्ति को नहीं चुना? जबकि भारत में सिखों का कत्लेआम करने का घटनाक्रम राहुल गांधी की पार्टी के साथ ही जुड़ा हुआ है। उनके पिता राजीव गांधी ने कहा था कि जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तब यह सब तो होता ही है। लेकिन अब राहुल गांधी यह बताने का प्रयाय कर रहे हैं कि भारत में सिखों के साथ क्या हो रहा है? भाजपा ने कह दिया यह आतंकी पुन्नु की भाषा है वह भी उनके करीब जाकर। यहां भारत में पंजाब में करारी हार और बाद में लोकसभा के चुनाव में जीत को इससे जोड़कर देखा जा सकता है। यिद खलिस्तान समर्थकों का संदेश आ जायेगा तो आप की भांति कांग्रेस वहां फिर से सत्ता में आ सकती है। इस प्रकार की बातें भी उठने लग गई हैं। यह देश में भाजपा की राजनीतिक काट भी है। भाजपा ने हिन्दू शब्द का विस्तार करके उन सभी धर्मों को एक छाते के नीखचे लाने का काम शुरू कर रखा है जिनकी विचारधारा समान ही है। इस योजना से भाजपा को बहुसंख्यक समाज के 37 प्रतिशत वोट मिलना शुरू हो गये हैं। यह जिस दिन 51 प्रतिशत से अिधक हो जायेंगे तब देश से इस सता विचार की सत्ता को उखाड़ पाना कठिन हो जायेगा। राहुल गांधी की जितनी भी योजनाएं हैं वे इसी का तोड़ हैं।

जातिगत जनगणना का क्या मतलब है। क्या ऐसा संभव है कि लोगों की संख्या के आधार पर बजट बनाया जाये? जब आरक्षण देने के बाद अभी तक समानता स्वीकार नहीं की जा रही है तब करदाताओं और उसका लाभ उठाने वालों का असन्तुलन देश कैसे स्वीकार करेगा? यह हो या न हो इसकी आड़ में 51 प्रतिशत का आकंड़ा पाने से जरूर रोका जा सकता है। आजाद भारत में कभी भी जाति आधार की गणना को सार्वजनिक नहीं किया गया। 2011 में जब मनमोहन सरकार के समय जनगणना की गई थी तब भी ऐसा ही हुआ था। लेकिन अब राहुल गांधी और अन्य विपक्ष बहुसंख्यक समाज के बीच में दूरियां बनाने का राजनीतिक प्रयास कर रहा है। इसमें अचरज इस बात का हो रहा है कि जो संघ जाितयों का समर्थन नहीं करता था उसकी भाषा भी जाति आधारित जनगणना के सुर में सुर मिलाती दिखाई दे रही है। हो सकता है यह समग्र हिन्दू समाज की संरचना का कोई नया रास्ता हो। फिर भी राहुल गांधी की राजनीति भारत के लिए किस दिशा वाली है इस पर विचार करने का समय जरूर है। गठबंधन की राजनीति करके कांग्रेस ने अपने लिए आधार फिर से तैयार कर लिया है। अन्य दलों का अपने भ्रष्टाचार को छुपाने के िलए कांग्रेस के सहारे की जरूरत है। यह आप के उदाहरण से समझी जा सकती है। आप ने दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस से सरकार छीनी। कांग्रेस का सबसे मुखर विरोध किया। लेकिन केजरीवाल के भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाने पर सहारा कांग्रेस का ही लेना पड़ा।

देश के स्थपित उद्योगपतियों का विरोध जार्ज सोरोस की रणनीति का हिस्सा दिखता था। लेकिन जब संसद में अनुराग ठाकुर ने बोला तो यह बात रिकार्ड में आ गई। जब चीन को अधिक ताकतपर बताने की बात की जाती है उतनी ही बार चीन और कांग्रेस के बीच के समझौते की चर्चा निकल पड़ती है। जातियों की गणना वाली बात पर राहुल गांधी की जाति का मसला उठ बैठता है। ऐसे में कांग्रेस जिस प्रकार की राजनीति कर रही है उसमें देश का सुखद भविष्य छुपा हो इसका जानकारी एकत्र करने में समय लग रहा है। किसी भी कांग्रेस के नेता द्वारा इसका सीधा जवाब नहीं दिया जा रहा हे। यह सवाल जब भी उठता है भाजपा की मुस्लिम पक्ष की राजनीति का विषय उठा दिया जाता हैद्ध जबकि यह वोट राजनीति का हिस्सा है सत्ता की राजनीति का हिस्सा नहीं है। मुस्लिम वोट भाजपा को मिलते नहीं है इसलिए उसे जहां से वोट मिलेंगे उसका संरक्षण करने का अधिकार उससे कैसे छीना जा सकता है जिस प्रकार कांग्रेस के मुस्लिम पक्ष में खड़े होने का तुष्टिकरण कर किया जाता है। लेकिन अभी राहुल की राजनीति करने में सलेक्टिड हमले पर चिंतन तो चल रहा है।

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