चुनाव में वोट जिहाद और वादा ठगी

खर्चिले होते चुनाव में जाति, धर्म के बाद अविश्वास का प्रवेश

इन दिनों देश में मिनी आम चुनाव जैसा नजारा है। आने वाले समय में कुछ और विधानसभा चुनाव भी प्रतीक्षा कर रहे हैं। दिल्ली के चुनाव का अपना महत्व होगा जहां तीन बार से केजरीवाल की पार्टी सरकार में है। अभी महाराष्ट्र जहां विपक्षी ताकत एक साथ चुनाव में है तो विपक्षी गठबंधन की सरकार वाले झारखंड में भी आम चुनाव हो रहे हैं। उपचुनाव वाले राज्यों की संख्या को देखा जाये तब इसे मिनी आम चुनाव कहना उचित ही होगा। इस चुनाव प्रचार में जहां विपक्षी दल वादा ठगी कर रहे हैं वहीं वोट जिहाद के नाम पर समुदाय विशेष काे साधने का काम किया जा रहा है। चुनाव घोषणा पत्र को साइड कर दीजिए जिस प्रकार का प्रचार चल रहा है उससे देश में टकराव की संभावना से इंकार नहीं किया जा रहा है। भाजपा ने खुद को जनसंघ के नये अवतार में ला दिया है। मुसलमान उसे वोट देना नहीं चाहते हैं तो उसने भी प्रतिक्रिया वोट को अपने साथ जोड़ने की राजनीति पर जोर दे दिया है। देश में मुस्लिम समाज के द्वारा वोट जिहाद किया जा रहा है यह नारा देकर प्रतिक्रियात्मक स्थिति पैदा कर दी। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कटोंगे तो बंटोगे का नारा देकर आग में घी का काम कर दिया। हालांकि प्रधानमंत्री ने उसका स्वरूप बदल एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे करने का प्रयास किया है। दोनों का मतलब एक ही है। हिन्दू वोटों काे अपने पक्ष में करना। विपक्ष भी कम नहीं है। उसे यह पता है कि उसके पास मुस्लिम वोट थोक में हैं। उसके बाद वह सेंधमारी करके जीत को अपने पक्ष में करने का प्रयास करता हैं। वादों का ऐसा पिटारा खोला जाता है कि सरकार तो बनना है या नहीं, वादों से ठगी का प्रयास खूब किया जा रहा है। सरकार बन गई तब कर्नाटक और हिमाचल की भांति चलता रहेगा और नहीं बनी तो हमने तो वादा किया था कहा ही जा सकता है। लेकिन हरियाणा में किसानों ने एमएसपी पर कानून का वादा ठुकरा दिया। इसलिए चुनाव में वोट जिहाद और वादों से ठगी का चलन बढ़ रहा है।

महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव खासे विवादित होते जा रहे हैं। मतदाता भ्रम में है। उसे शिवसेना और राष्ट्रवादी में से चुनना है तब उसके सामने दो दल दिखते हैं। उससे अधिक भ्रमित करने वाली बात है कि राष्ट्रवादी शरद पवार की थी लेकिन उसके पास नहीं है। इसी प्रकार शिवसेना ठाकरे परिवार की संंपत्ति थी लेकिन उद्धव ठाकरे के पास शिवसेना नहीं है। इसके बाद पहले आम चुनाव हो रहे हैं। लोगों को मानस बदलने और बनाये रखने में परेशानी हो रही है। उद्धव ने विचारधारा बदल ली तब उसका साथ बाल ठाकरे का पुत्र मानकर तो नहीं दिया जा सकता है। इसलिए पूरे चुनाव में भ्रम दिखाई दिया। कांग्रेस और भाजपा दोनों दलाें की भूमिका और चरित्र कम ही बदले हैं। शिवसेना भाजपा के साथ होती थी और वह कांग्रेस से दूरी रखती थी लेकिन उद्धव कांग्रेस के साथ हैं। आधी शिवसेना और आधी राष्ट्रवादी भाजपा के साथ हैं। भ्रम यह है कि कौन किससे दूर है और कौन किसके साथ है पता ही नहीं चलता है। जिसका मुख्यमंत्री होना था वह उप है और जो मुख्यमंत्री है वह पारितोषिक पाकर खुश होता दिखाई दे रहा है। क्या समझा जाये यह मतदाता के सामने भ्रम है? लेकिन इस बात पर विश्वास किया जा सकता है कि देश का मतदाता समझदार है वह भ्रम से निकलने की ताकत रखता है।

देश की चुनावी राजनीति का सबसे गरम विषय मुस्लिम मतदाता प्रारंभ से ही रहा है। जब कांग्रेस ने विभाजन के बाद भारत में कुछ मुस्लमान परिवारों का रोक लिया। महात्मा गांधी ने बंटवारे के बाद हुई हिंसा में पाक गये मुसलमानों का पक्ष लिया और अनशन किया। उससे भारत में रूका मतदाता कांग्रेस का मुरीद हो गया। आजादी का आन्दोलन उसकी इस मानसिका को पढ़ने से सदा रोकता रहा। लेकिन जब फतवा आधारित वोट दिये जाने लगे तब देश को यह लग रहा था कि यह समुदाय वोट के महत्व को समझ रहा है। लेकिन आजादी के आन्दोलन और कांग्रेस ने जिस प्रकार का पढ़ाया वही दूसरे समाज को दिखता रहा। सावरकर माफी मांगने वाले हैं और जनसंघ या संघ वालों का आजादी के आन्दोलन में कोई योगदान नहीं है। यह भ्रम पैदा किया जाता रहा। इससे बहुसंख्यक मतदाता अपनी वोट की ताकत को पहचान ही नहीं पाया। बंटवारे के बाद एक देश दे दिया और आजाद भारत की सत्ता इस्लाम की गुलाम होती चली गई। आज वक्फ कानून की भयावहता से इसे समझा जा सकता है कि सरकारें कितना बेरहम उदार रही हैं। देश का बहुसंख्यक न तो अपने आराध्य मांग पा रहा था आैर न ही अपने अधिकार। उसे तो देश का मालिक बनाकर आत्म मुग्ध करा दिया गया और सारी सत्ता को उससे दूर करके भेदभाव किया गया। इसलिए उसमें वोट आक्रोश पैदा होने लगा। जिसे नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति ने हवा दी। आज उसे समझ में आ गया कि सत्ता का मतलब क्या होता है? अधिकांश मांगे उनके पक्ष में आती जा रही हैं। उसे आन्दोलन नहीं करना पड़ रहा है केवल कहना भर पड़ता है। लोकसभा के चुनाव में मतदाता भ्रम में आ गया था। भ्रम में आना और बेमतलब की बात का प्रतिशोध करना उसकी फिदरत में है। लेकिन इस बार भूल जल्द समझ में आ गई।

लोकसभा चुनाव में सीटें कम दीं तो भूल का अहसास हो आया। हरियाणा में हिसाब बराबर कर दिया। यह भी हो सकता है कि महाराष्ट्र व झारखंड में वह भूल सुधार जारी रखे। लेकिन गरीबी ने देश के बारे में सोचने का मौका ही नहीं दिया। मोदी को भी इस बारे में साेचना होगा कि आजीविका के संकट से राष्ट्रवाद का नारा निपट नहीं सकता है? इसके लिए तो रोजगार के अवसर ही पैदा करने होंगे? उसके लिए तो तकनीक से दक्ष युवा तैयार करने होंगे? उसके लिए प्रतिभाओं को रोकना होगा और उन्हें अवसर देना होंगे? सरकार इस दिशा में काम कर रही है। लेकिन भ्रम का वातावरण इससे ध्यान भटकाने का काम कर रहा है। जिस प्रकार के वादे किये जा रहे हैं उसे वादा ठगी कहना गलत नहीं होगा। किसानों को एमएसपी कानून देने का वादा किया गया लेकिन चुनाव के बाद कांग्रेस शासित राज्यों में से एक ने भी ऐसा प्रयास नहीं किया। जबकि कामन सिविल कोड को भाजपा शािसत राज्यों ने लागू करना शुरू कर दिया है। इसलिए भ्रम और वास्तविकता की चर्चा मतदाता ने करना शुरू कर दी जिससे विश्वास पैदा हो रहा है।

देश में तेजी से वोट जिहाद शुरू हुआ है। यह बात कई लिखी जा चुकी है कि किसी भी नेता या दल के विरोध में वोट देना या विरोध प्रदर्शित करते हुए वोट देना लोकतंत्र है। लेकिन किसी दल विशेष को हराने और सत्ता से बाहर करने वोट देना लोकतंत्र नहीं वोट जिहाद है। व्यक्ति नापसंद हो सकता है। मतदाता को दल नापसंद हो सकता है। लेकिन कोई दल नापंसद हो और वह भी पूरे समाज को यह संभव नहीं होता है। मोदी की सरकार बनने के बाद से देश में मुस्लिम समाज की ओर से ऐसा ही प्रदर्शित किया जा रहा है। खुलकर कहा जा रहा है। मस्जिदों से फरमान जारी करके भाजपा को हराने के िलए कहा जा रहा है। मौलवी गण पत्रकारों के सामने इसका ऐलान कर रहे हैं कि उन्होंने भाजपा को हराने के िलए कहा था और हरा दिया। इस वोट जिहाद ने देश की राजनीति को बदलने का काम किया है। आजादी के आन्दोलन के बाद महात्मा गांधी ने जिस विचार को सींचा था उसकी फसल तैयार है। वह तैयार है अन्तर इतना है कि उस फसल का स्वाद कांग्रेस नहीं चख पा रही है। अन्य दल चख रहे हैं। वादों से ठगी करने का चलन भी लोकसभा आम चुनाव में तेजी से बढ़ा है। राजनेताओं में अपने चुनाव क्षेत्र, अपने राज्य या देश के प्रति कोई विशेष विजन नहीं है। वे जातियों और विवाद को सामने रखकर वोट भ्रमित करते हैं। उनके साथ अपने कुछ तसशुदा वादे करते हैं और इस प्रकार के वादों से वोट को ठग लिया जाता है। इसमें अखिलेश की समाजवादी पार्टी अग्रणी है। कांग्रेस ने बराबर का साथ दिया है। आप के केजरीवाल ने तो अपने नाम रिकार्ड ही बना लिया है। ये सभी यह बता पा रहे हैं कि देश को सुविधाओं के अलावा विश्व में अव्वल बनाने के िलए उनके पास क्या विजन है? वे नहीं बता पाये। मोदी ने 2047 का भारत किस प्रकार का हो उसका सपना भी देखा, देश को भी दिखाया और उसे कैसे पूरा किया जा सकता है उसके लिए काम भी शुरू कर दिया है। अब विचार करने की बात यह है कि चुनाव को वोट जिहाद और वादों की ठगी का शिकार रहने देना है या उसे सुधारने के लिए काम करना है। हरियाणा ने तो सुधारवादी संदेश दिया है तब आगे भी मतदाता भ्रम से दूर रहेगा ही।

संवाद इंडिया
(लेखक हिन्दी पत्रकारिता फाउंडेशन के चेयरमैन हैं)

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