‘गौ रक्षकों’ को गुंडा सिद्ध करने का अनुचित ‘अभियान’
अपना-विचार है। कोई शहीदे आजम भगत सिंह को आतंकवादी कहता रहा और कोई उसे आजादी के आन्दोलन का महानायक। हम सब महात्मा गांधी को अहिंसा का पुजारी कहते हैं जबकि जलियांवाला बाग हत्यांकाड पर उन्होंने जरनल डायर को माफ कर दिया था। लेकिन इरविन का समझौता हो या अन्य अवसर उन्होंने कभी आजादी के क्रांतिकारियों को माफ नहीं किया। भारतीय सैनिकों की शत्रुओं के प्रति कार्यवाही को कोई हिंसक घटना मान ले तो उसका क्या किया जा सकता है? लेकिन जब वे चीन के अतिक्रमणकारियों को मार गिराते हैं तब देश का सीना चौड़ा हो जाता है।
सुरेश शर्मा, भोपाल। अपना-विचार है। कोई शहीदे आजम भगत सिंह को आतंकवादी कहता रहा और कोई उसे आजादी के आन्दोलन का महानायक। हम सब महात्मा गांधी को अहिंसा का पुजारी कहते हैं जबकि जलियांवाला बाग हत्यांकाड पर उन्होंने जरनल डायर को माफ कर दिया था। लेकिन इरविन का समझौता हो या अन्य अवसर उन्होंने कभी आजादी के क्रांतिकारियों को माफ नहीं किया। भारतीय सैनिकों की शत्रुओं के प्रति कार्यवाही को कोई हिंसक घटना मान ले तो उसका क्या किया जा सकता है? लेकिन जब वे चीन के अतिक्रमणकारियों को मार गिराते हैं तब देश का सीना चौड़ा हो जाता है। आतंकवादियों को मार कर जब भारतीय जांबाज उनका फोटो वायरल करते हैं तब देश में चंद लोगों को जो मानवाधिकार की आड़ में अपना खेला करते हैं छोडक़र कोई भी आंसू नहीं बहाता। इसलिए जब आप प्रतिक्रिया देते हैं तब आपको यह तो बताना ही होगा कि आप खड़े कहां हैं? जिस स्थान पर आप खड़े हैं उसके आधार पर आपका पक्ष आयेगा? क्या हम इस बात को नहीं समझ पायेंगे कि आजादी के वक्त विभाजन में जो हिन्दू पाकिस्तान गये और जो मुसलमान भारत में रूके उनकी आस्थाएं उन्हीं देशों के विचारों के साथ थी। फिर पाकिस्तान में हिन्दू समाप्त हो गये और भारत में मुसलमान कई गुणा बढ़ गये। मतलब यह हुआ कि भारत सभी के लिहाज से अच्छा देश है।
जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गौ रक्षकों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया था और गुंडा कहा था उस दिन देश आहत हुआ था। लेकिन प्रधानमंत्री का संदेश देश में सामाजिक समन्वय बनाने के उनके दायित्व के तहत था। क्या हम इसी प्रकार का संदेश देकर केवल गौ रक्षकों को तो गुंंडा सिद्ध करते रहेंगे और गाय को खाद्य सामग्री समझकर भारतीय अस्मिता को चुनौती देने वालों को समझाने का एक भी शब्द नहीं कहेंगे? यह भेदभाव है। यह विचार करने का तरीका एकाधिकार पूर्ण एक तरफा है। नूंह की हिंसक घटनाओं को एक आइने से नहीं देखा जा सकता है। पहले उसकी क्षेत्रीय परिस्थितियों को देखना होगा? एक बजरंग दल का नेता है उस पर आपराधिक मामले होंगे ही क्योंकि वह रक्षक है। उसे धर्मान्तरण को रोकने के लिए विरोध लेना होता है। दबाव में बालिकाओं के गैर धर्म में विवाह के समय संरक्षण का आमंत्रण मिलता है और अपने रक्षक धर्म का पालन करता है। यहां यह तर्क काम नहीं आ सकता है कि कानून को अपना काम करने देना चाहिए। कानून का बड़ा अधिकार है इसे सभी मानते हैं लेकिन समाज का दायित्व कानून के कारण खत्म नहीं हो जाता है। यही सोचने का तरीका अपना-अपना है।
इसलिए सवाल यह उठ रहा है कि देश के राजनेता, मीडिया और एक समुदाय विशेष के लोग गौ-रक्षकों को गुंडा सिद्ध करने की प्रयास बंद करें और उनके सामाजिक दायित्व को भी पहचानें। अन्यथा यह बदलाव के इस दौर में ऐसे प्रयास आइसोलेट कर देंगे और राजनीति धरी रह जायेगी? जब किसी घटना को देखें तब उसी घटना की बारिकियों को समझते हुए अन्य घटनाओं की तुलना करेंगे तब सच दिखाई देगा। गोवंश से भरे वाहन रोकने का काम तो पूरे देश में होता है तब एक-दो व्यक्तियों को निशाना क्यों बनाया जा रहा है?
मेवात आज की समस्या नहीं है। यहां जनसंख्या का असन्तुलन बन गया है। यहां पर बहुसंख्यकों का पलायन हो रहा है। जमीनों पर कब्जे होते हैं। रोहिंग्या यहां आकर आसानी से बस सकते हैं। यहां का विधायक सदन में खुलकर कह सकता है कि बजरंग दल के लोगों के हाथ में तलवारें मु… को मारने के लिए हैं? तब यहां का दबदबा समझा जा सकता है। इसलिए जब मोनू मानेसर को मेवात की तुलना में खड़ा करने का प्रयास होता है तब यह एकतरफा होता है। अब जो सच सामने आ रहा है उसमें मोनू के अपराध छोटे दिखाई दे रहे हैं। मेवात संगठित अपराधों का गढ़ है। एक बार मेवात आकर तो देखिए, कश्मीर और मणिपुर हल्के नजर आयेंगे? चालीस साल से ऐसे ही किस्से सुने हैं वहां के…?