‘उमा’ नहीं समझ पा रहीं नये दौर की नई ‘राजनीति’
उमा भारती मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री रही हैं। उन्हें राजनीति की फायर ब्रांड नेता कहा जाता रहा है। एक समय था जब जनता उनकी दीवानी रही है। दिग्विजय सिंह से सत्ता छीनकर भाजपा को देने में उनकी बड़ी भूमिका रही है।
भोपाल। उमा भारती मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री रही हैं। उन्हें राजनीति की फायर ब्रांड नेता कहा जाता रहा है। एक समय था जब जनता उनकी दीवानी रही है। दिग्विजय सिंह से सत्ता छीनकर भाजपा को देने में उनकी बड़ी भूमिका रही है। वही सत्ता आज तक प्रदेश में चली आ रही है। अब उमा भाजपा के लिए कितनी प्रासांगिक है यह सवाल समय-समय पर उठता रहता है? इसका उत्तर भी समय-समय पर मिलता रहता है। लेकिन उमा भारती इसे समझने में चूक कर रही हैं या वे समझना नहीं चाहती हैं यह वे ही अधिक बता सकती हैं। लेकिन इतना सत्य है कि यह उनके दौर की राजनीति नहीं है। उन्हें परिस्थितियों हिसाब से राजनीति को समझना होगा। इसे कुछ यूं भी समझा जा सकता है कि यह मोदी-शाह की भाजपा है और इस भाजपा में बहुत कुछ बदला हुआ है जो अटल-आडवाणी के समय होता आया था। उस समय जनाधार वाले नेताओं की भाजपा को जरूरत थी अब मोदी-शाह के कारण किसी को भी जनाधार मिल जाता है। पहले नेताओं की अपनी साख होती थी अब मोदी-शाह की साख पर बैठकर नेता बन रहे हैं। इसलिए उमा भारती को आज की राजनीति के दौर को समझना होगा। यह दौर दबाव की राजनीति का नहीं है।
उमा भारती की राजनीति प्रभाव और दबाव की रही है। वे इसे इस दौर में भी बदलना नहीं चाहती हैं। अब दबाव का कालम खत्म हो गया और केवल नेतृत्व के हाथ में ही है इसमें लिखना और मिटाना। पहले मोदी पर दबाव बनाने के लिए सुषमा स्वराज के साथ उमा ने चुनाव न लड़ने की घोषणा कर दी थी। सुषमा के कारण अलग थे और उमा के अलग। उस समय जीतने वाले नेताओं की भाजपा को जरूरत थी। अब नहीं है। चुनाव परिणाम के बाद उमा को लग गया था कि उन्होंने राजनीतिक चूक कर दी। उनके साथियों ने बताया होगा ही। लेकिन अधिकांश साथियों का कहना है कि उमा किसी की भी नहीं सुन रही हैं। यही उसका प्रमाण भी है। बीच उन्होंने कहना शुरू कर दिया था कि वे इस बार लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहती हैं। लेकिन हायकमान उन्हें लड़ना चाहता है या नहीं यह भी तो एक पक्ष है? पहली लिस्ट में उनके सभी चुनाव क्षेत्रों से प्रत्याशी आ गये। भोपाल, खजुराहो, दमोह और झांसी सभी घोषित हो गये। अब उमा के पास चुनाव न लड़ने की घोषणा करने के अलावा कोई और विकल्प बचा ही नहीं है।
यहां भी उमा आज की नई राजनीति को नहीं समझ पाईं और पत्र लिखकर भाजपा अध्यक्ष से कह दिया कि उन्हें चुनाव नहीं लड़ना इसकी घोषणा वे ही कर दें लेकिन न ऐसा होना था न ही हुआ। अब पत्रकारों को उमा से खुद की कह दिया कि गंगा की सेवा करना है। पाप मोचनी गंगा की शरण में जाना ही आज की राजनीति का सबसे बेहतर विकल्प हो सकता है। लेकिन यहां भी एक राजनीतिक चूक कर दी गई। दबाव के लिए कह दिया कि वे नड्डा को पत्र लिखेंगी ? समझो उमा जी यह दबाव की राजनीति
का दौर नहीं हैं।