दस साल बाद के ये चुनाव लिखेंगे नई कहानी… जेके में हार-जीत का नहीं है खास महत्व
इस समय दो राज्यों में विधानसभा के चुनाव चल रहे हैं। हरियाणा और जम्मू कश्मीर। दोनाें ही राज्यां के चुनाव का अपना महत्व है। इसमें भी खास महत्व जम्मू कश्मीर के चुनाव का है। दस साल बाद के ये चुनाव बदले हुए परिवेश में हो रहे हैं। अब कुछ पुरानी बातें तो होंगी लेकिन उनका कोई प्रभाव होगा यह अभी तय नहीं है।
सुरेश शर्मा
इस समय दो राज्यों में विधानसभा के चुनाव चल रहे हैं। हरियाणा और जम्मू कश्मीर। दोनाें ही राज्यां के चुनाव का अपना महत्व है। इसमें भी खास महत्व जम्मू कश्मीर के चुनाव का है। दस साल बाद के ये चुनाव बदले हुए परिवेश में हो रहे हैं। अब कुछ पुरानी बातें तो होंगी लेकिन उनका कोई प्रभाव होगा यह अभी तय नहीं है। अलगाववाद की भाषा अपेक्षाकृत कम होगी। जो होगी वह केवल सत्ता के लिए होगी जिसको बाद में भी व्यवहार में नहीं लाया जा सकता है। ये चुनाव पूरी तौर भारतीय संविधान की छाया में हो रहे हैं। नया परिसीमन हो चुका है इसलिए विधानसभा क्षेत्रों की तासीर बदली हुई है। अभी तक छोटे क्षेत्र में अधिक सीटें होती थी इस बार वह अन्याय न होकर बड़े क्षेत्र को भी कुछ सीटें मिल गई जिससे सत्ता सन्तुलन बन सकता है। अब पूर्ण राज्यो नहीं चुनाव के बाद पूर्ण राज्य की प्रक्रिया होगी इस अवधारणा ने चुनाव के महत्व को बढ़ा दिया है। लोकसभा चुनाव में मतदान के प्रतिशन ने हालांकि पहले ही जम्मू कश्मीर को लेकर हुए महत्वपूर्ण निर्णयों पर मुहुर लगा दी थी अब विधानसभा चुनाव में भी उसे और इंडोस करना शेष है। इस बार का चुनाव घरानों से निकलकर लोकतंत्र के लिए हो रहा है। यहां जीत-हार का कोई महत्व नहीं है अबकी बार चुनाव का महत्व है। जम्मू कश्मीर के चुनाव देश की राजनीति के साथ ही पाकिस्तान की राजनीति को भी प्रभावित करने वाले होंगे। इसके बाद वहां आतंकवाद का भविष्य भी तय होगा। चुनाव की आहट और दिल्ली में मोदी की तीसरी बार वापसी के बाद हिंसा ने सिर उठाया था जिसका जवाब चुनाव के बाद मिल जायेगा। हालांकि विपक्षी दलों की ओर से धारा 370 और 35ए का सपना दिखाया जा रहा है जिसकी कोइ्र उम्मीद नहीं है। आश्वासन देने वाले दलों का दिल्ली की सरकार में कोई दखल नहीं है इसलिए इसकी कोई संभावना दिखाई नहीं है। इसलिए इन चुनाव के परिणाम राजनीतिक प्रभाव वाले होने वाले हैं।
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भाजपा का चुनावी घोषणा पत्र जारी करते हुए कहा था कि राहुल गांधी कह रहे हैं कि वे चुनाव के बाद जेके को पूर्ण राज्य का दर्जा देंगे। जबकि यह सच नहीं है। क्योंकि केन्द्र में मोदी सरकार है जिसके निर्णय राहुल गाधी नहीं कर सकते हैं। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने पहले ही कह रखा है कि विधानसभा के चुनाव के बाद जेके को पूर्ण राज्य का स्टेटस वापस किया जायेगा। वैसे भी जेके को पूर्ण राज्य देना है या नहीं यह कभी विवाद का विषय नहीं रहा। विवाद तो वहां को लेकर आशंकाओं के समाधान पर रहा है। पंडित नेहरू ने सरदार पटेल के निर्णय को लागू नहीं होने दिया जिसके कारण इस राज्य का पूर्ण विलय ही विवादों में पड़ गया था। हमें बार-बार यह कहना होता था कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिभाज्य अंग है। लेकिन अब जब मोदी सरकार ने धारा 370 को हटाया है तब से अभिभाज्य अंग कहने की जरूरत नहीं है क्योंकि वहां भारत का संविधान लागू होता है। वहां भारत की समूची व्यवस्था लागू होती हैं। सबका आना जाना खुल गया है। इसलिए इस बार के चुनाव का अपना महत्व है।
जम्मू कश्मीर का मायने यह हो गया था कि यह भारत का हिस्सा तो है लेकिन अलगाववादी इस पर हमेशा अपना दावा करते रहते थे। मोदी सरकार ने यहां के समीकरणों काे बदला है। यहां केवल ताकत का इस्तेमाल भर नहीं हुआ। विकास के मामले में भी गजब का काम हुआ है। यहां के युवाओं को इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि वे विवादों की बातों में पड़ें उन्हें रोजगार और अचछा भविष्य चाहिए। केन्द्र सरकार ने दस वर्षों में वहां के हालात को बदलने का काम किया है। पत्थर फैंक कर राेजी कमाने की मानसिकता की बजाए उन्हीं हाथों से काम करके रोजी चलाने के विचार ने स्थान बनाया है। युवाओं का नारों और भावना भड़काने के स्थान पर सबकुछ खुली आंखों से दिख रहा है इसलिए वे बहाकवे में नहीं आते दिख रहे हैं। यह पहला अवसर है लोकसभा में जब अब्दुल्ला परिवार का कोई भी व्यक्ति संसद का सदस्य नहीं है। अन्यथा चंद वोट पाकर भी वे लाखों वोट पाने वालों के बराबर बैठकर अधिकार पर कब्जा कर लेते थे। इस बार अन्य प्रतिभाओं ने संसद में स्थान बनाया है। यह दूसरी बात है कि कुछ अलगाववादी भी चुनाव जीते लेकिन वे लोकतंत्र की प्रकि्रया का हिस्सा तो बने? इस बदलाव को आने वाले समय में और स्थान मिलेगा।
यह बात इसलिए भी मायने रखती है कि जेके के चुनाव के बाद वहां विकास की गंगा बहाने के लिए स्थानीय हाथ होंगे। उनके साथ केन्द्र की सरकार खड़ी होगी। प्रदेश का विकास पाकिस्तान के उन क्षेत्रों के लिए सबक बनेगा जो अंधेरे युग में जी रहे हैं। जिसकों सड़कों पर चलने की आदत ही नहीं हे। रेल और हवाई सेवा तो सपने में भी नहीं आती होगी। इसलिए जेके में चुनाव जीत कौन रहा है यह जरूरी नहीं है? यहा चुनाव के बाद की परिस्थितियां महत्वपूर्ण हैं। इन चुनावों का सपना किस समय देखा गया था। जब जनसंघ के संस्थापक सदस्य डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नारा दिया था कि दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे? उन्होंने इस भावना के साथ अपने प्राण त्याग दिये थे कि कोई उनका उत्तराधिकारी आयेगा जो उनके इस सपने को पूरा करेगा। हालांकि जब डा. मुखर्जी ने सपना देखा था तब ऐसी कोई संभावना नहीं दिखाई देती थी कि कभी जनसंघ या बाद की भाजपा की ऐसा कोई बदलाव भी होगा। लेकिन ऐसा समय आया। इसी को तपस्या कहा जाता है। तपस्या का फल मिलता ही है। आजादी के अमृतकाल में देश को नये विचार का प्रधानमंत्री मिला जिसने डा. मुखर्जी के सपने को पूरा करने का काम किया।
जम्मू कश्मीर का सर्जरी करने की योजना पहले से ही उल्लेखित थी। जिस काम को सरदार पटेल नहीं कर पाये थे उसे अमित शाह ने कर दिखाया। सबसे पहले वहां दो राज्य बनाये गये। उन्हें केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया। ताकि किसी भी प्रकार का अधिकार केन्द्र सरकार के पास हो। इसमें आतंक, अलगाव और पाकिस्तान के साथ सीधा निपटा जा सके। उसके बाद वहां परिसीमन कराकर विधानसभा सीटों का असन्तुलन सुधारा गया। अब वहां पर विकास के कामों की गंगा को बहाया गया। वहां आम व्यक्ति को यह अहसास कराया गया कि जिस पाकिस्तान से आ रही हवा में कुछ लोग साथ दे रहे हैं वे तो उस देश की भाषा बोल रहे हैं जो खुद ही भूखा नंगा है। वह अपने लोगों के लिए खाने-पीने की व्यवस्था नहीं कर सकता है। वह तो जिस जेके पर कब्जा किये है वहां पर किसी प्रकार की सुविधा देने की स्थिति में नहीं है। तब उसकी बातों को मानने वाले पिछलग्गुओं की हां में हां मिलाने का क्या अर्थ है? इसलिए पिछले दस साल में वहां की मानसिकता में तगड़ा बदलाव आया है। वहां का युवा अब बहकावे में नहीं वास्तविकता में जी रहा है। उसे रोजगार भी मिल रहा है सुविधाएं भी मिल रही हैं। उसे अवसर भी मिल रहे हैं। जिससे वह विश्व में अपनी पहचान बना रहा है। जब उसे पाकिस्तान के उन विदेशों में काम कर रहे व्यापारियों की बातंे सुनने को मिल रही हैं उनका यहां व्यापार तब चलता है जब वे खुद को भारत का बताते हैं? इन बातों और हालातों के बीच जेके में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। इनमें यदि कोई भ्ाी विपक्ष का नेता 370 व 35ए की बात करता है तो उसका कितना प्रभाव होगा यह समय बतायेगा?
यही कारण है कि जेके के चुनाव का परिणाम हर स्थिति में भारत की जीत का इतिहास लिखने जा रहा है। सत्ता का संचालन कौन सा दल करेगा यह महत्वपूर्ण नहीं है। सरकार बनने के बाद वह भारत के एक राज्य की सरकार होगी। उसके बारे में यह कहने की जरूरत नहीं होगी कि यह राज्य भारत का अभिभाज्य अंग है। वह तो भारत का एक राज्य ही होगा। उसका विरोध करने वालों को तो देश अस्वीकार कर चुका है। यही कारण है कि इन चुनावों की अपना इतिहास होगा। अपनी कहानी होगी। आने वाला समय याद करेगा कि 2024 के जम्मू व कश्मीर के चुनाव भारतीय राजनीति में बड़े परिवर्तनकारी हुए थे। उस समय एक निर्णय ने समूची व्यवस्था को बदल दिया था। जिसने भारत का स्वरूप ही नया कर दिया था। उस निर्णय ने पड़ौसी देश की बिना लड़ाई के ही हेकड़ी निकाल दी थी। इस कारण चुनाव के परिणाम मायने नहीं रखते ये चुनाव ही मायने रखते हैं। इस बात को विपक्ष को भी समझना होगा। उसे अलगाव के साथ नहीं देश के साथ खड़े दिखने का वातावरण बनाना चाहिए?
संवाद इंडिया
(लेखक हिंदी पत्रकारिता फाउंडेशन के चेयरमैन हैं)