‘राजनीतिक’ विद्वेष के लिए सदन का ‘उपयोग’

दिल्ली विधानसभा के पिछले विशेष सत्रों पर नजर डालते हैं तब एक बात तो प्रमाणित होती है कि विशेष सत्र अपना स्वभाव और मकसद खो रहे हैं। विशेष सत्रों का उपयोग राजनीतिक विद्वेष के लिए हो रहा है। तकनीक रूप से उन पर सवाल उठाने

भोपाल। दिल्ली विधानसभा के पिछले विशेष सत्रों पर नजर डालते हैं तब एक बात तो प्रमाणित होती है कि विशेष सत्र अपना स्वभाव और मकसद खो रहे हैं। विशेष सत्रों का उपयोग राजनीतिक विद्वेष के लिए हो रहा है। तकनीक रूप से उन पर सवाल उठाने का कितना आधार बनता है यह एक बात है लेकिन ये विशेष सत्र नैतिक तो बिलकुल भी नहीं हैं। ठीक इसी प्रकार विपक्ष केन्द्र सरकार पर ईडी आयकर और सीबीआई के दुरूपयोग का आरोप लगता है उसी प्रकार से विधानसभा का विशेष सत्र भी इसी प्रकार के आरोप से रूबरू हो रहे हैं। विधानसभाओं के विशेष सत्र बुलाये जाते रहे है। लेकिन उनका मकसद कोई विशेष प्रकार की समस्या के निदान पर सभी माननीय विधायकों का मत जानने के लिए सरकार ऐसी पहले करती है। कई बार राजनीतिक मकसद भी होते हैं लेकिन उसमें भी विपक्ष अधिक आलोचना नहीं कर पाता क्योंकि उसमें जनहित वाला पक्ष समझाया जाता है। लेकिन दिल्ली विधानसभा के पिछले कुछ समय के विशेष सत्र एक मकसद के लिए बुलाये जा रहे हैं। इसमें प्रधानमंत्री को जी भरकर कोसा जाता है और सदन का उपयोग अपनी बात को कहने के लिए इस प्रकार कर लिया जाता है कि कोई मानहानि का केस भी नहीं करवा पाये। अब इस पर सवाल उठना शुरू हो रहे हैं।
विशेष सत्र बुलाने के लिए राज्यपाल के नोटिफिकेशन की जरूरत होती है। दिल्ली सरकार ने इसका अच्छा खासा समाधान निकाल रखा है। विधानसभा अध्यक्ष एलजी द्वारा आहुत सत्र का अनिश्चित काल के लिए समापन नहीं करते हैं। मतलब सदन आहुत ही होता है। इसलिए नये नोटिफिकेशन की जरूरत नहीं होती। एक दिन के लिए सत्र बुलाकर प्रधानमंत्री को भला बुरा कहने की रश्म अदा कर ली जाती है। देश में दिल्ली के अलावा ऐसा कही नहीं होता। अन्य जगहों पर विपक्षी दल के रूप में भाजपा सशक्त दल है और वह वहां पर जवाब देने की स्थिति में होती है लेकिन दिल्ली विधानसभा में आप का वर्चस्व है। यहां जानकारी इस बात की भी होना जरूरी है कि सदन में कही गई किसी भी बात पर कार्रवाई करने का अधिकार विधानसभा अध्यक्ष के पास रक्षित होता है। दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष तो इसमें शामिल ही रहते हैं इसलिए कार्यवाही पर कार्रवाई होने की कोई संभावना नहीं है। इस पर रोक का कोई भी विकल्प भाजपाईयों के पास नहीं है। केजरीवाल ऐसा इसलिए करते हैं कि वे पहले प्रेस वार्ता में आरोप लगाते थे और मानहानि मामले में कोर्ट में उन्हें क्षमा मांगना पड़ती थी।
इस समय देश में राजनीतिक कटुता का वातावरण साफ दिखाई देता है। मोदी सरकार भ्रष्टाचार के मामलों में कार्यवाही कर रही है। विपक्षी नेताओं को भी इसमें नहीं छोड़ा जा रहा है। बड़े मामले सामने भी आ रहे हैं। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री और उप मु यमंत्री जेल में हैं। मु यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सीबीआई ने पूछताछ के लिए अपने कार्यालय बुला लिया और घंटों सवाल पूछे। खतरा बढ़ रहा है इसलिए सदन का उपयोग किया जा रहा है। लाइव प्रसारण से जनता के बीच अपनी बता पहुंचाई जा रही है और मानहानि का खतरा भी नहीं होता। इन घटनाओं से अभी यह समझना कठिन है कि इससे लोकतंत्र कितना उजला होकर उभरेगा?

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