लोकसभा चुनाव से पहले ही भाजपा की बढ़त… चल गया नारा ‘यह मोदी की गारंटी है’
कल से मार्च का महीना शुरू होने जा रहा है। इस महीने का एक महत्व यह भी है िक भारत वर्ष में लोकसभा के चुनाव इस माह के शुरू में घोषित हो सकते हैं। ये चुनाव अप्रैल महीने के अन्त तक कई चरणों में संपन्न हो जायेंगे। इन दाेनों ही बातों का संकेत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की ओर से दिया गया है।
सुरेश शर्मा। कल से मार्च का महीना शुरू होने जा रहा है। इस महीने का एक महत्व यह भी है कि भारत वर्ष में लोकसभा के चुनाव इस माह के शुरू में घोषित हो सकते हैं। ये चुनाव अप्रैल महीने के अन्त तक कई चरणों में संपन्न हो जायेंगे। इन दाेनों ही बातों का संकेत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की ओर से दिया गया है। मोदी जी ने अपने एक आयोजन में यह कहा था और अमित शाह ने भोपाल के आयोजन में यह संदेश दे दिया था। चुनाव में अधिक समय नहीं है। फिर भी सभी दलों की ओर से अपनी-अपनी तैयारियां की जा रही हैं। इस समय देश का मूड एक बार फिर से मोदी को सत्ता देने का दिख रहा है। कोई बड़ा उलटफेर नहीं हुआ तो इसी संभावना की बात सभी तरफ की जा रही है। देश का मतदाता मनमोहन सिंह की दस साल की सरकार और नरेन्द्र मोदी की दस साल की सरकार के बीच तुलना करता हैं। देश की आर्थिक हालत और सुरक्षा व्यवस्था के बारे में चर्चा करते हैं। देश के वैश्विक स्तर की बात करते हैं। सामािजक विकास और सांस्कृतिक विकास की बात की जा रही है। नरेन्द्र मोदी की सरकार का ग्राफ अन्य के मुकाबले बेहतर बताया जा रहा है। लम्बे समय बाद देश में किसी नेता की बात को स्वीकार करके जनमानस साथ दे रहा है। कोरोना के समय जिस प्रकार का आव्हान प्रधानमंत्री की ओर से आया उसी का पालन हुआ और अब जब राम मंदिर निर्माण के बाद प्राण-प्रतिष्ठा के समय हर सनातनी को भगवा झंडे लगाने का आव्हान किया गया, तब भी होड़ देखने में आई थी। हालांकि इसमें भगवान श्रीराम का सहयोग आव्हान पूरा करने में था। अन्य विपक्षी दलों के भी अपने प्रयास हैं लेकिन नरेन्द्र मोदी और भाजपा काफी आगे दिख रही है।
पिछले दस वर्षों से नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार चल रही है। राजग की इस सरकार को कई दलों के समर्थन के बाद देश में राजनीतिक वातावरण काे अगले चुनाव के रूप में समझने का प्रयास हुआ है। अभी एक बात सामने आ रही है कि विपक्ष और सरकार के बीच में चुनावी लड़ाई जैसे हालात नहीं बन पाये हैं। विपक्षी दलों के बीच गठबंधन और उसके बाद सीटों के बंटवारे जैसी कसरत चल रही है। वहीं भाजपा को जिन राज्यों में अकेले के दम पर चुनाव लड़ना है वहां प्रत्याशियों के नाम तय करने जैसी स्थिति की तैयारी हो गई है। इस बार भाजपा की ओर से खुद प्रधानमंत्री द्वारा ही कहा गया है कि राजग 400 से अधिक और अकेले भाजपा 370 सीटें प्राप्त कर रही है। इसके दो कारण हैं। पहला यह कि जनमानस में इस बात का मंथन शुरू हो जायेगा कि मोदी सरकार तीसरी बार आ रही है। जनता यह भी विचार करने लग जायेगी कि मोदी को 370 किस प्रकार से सीटें दी जायें। जिन राज्याें में भाजपा का जनाधार नहीं है वहां पर योजना से काम हो रहा है और लोग मोदी सरकार के लिए आशान्वित हैं। दूसरा कारण यह भी है कि मोदी अपना आधार अन्य दलों की तुलना में अधिक बढ़ाना चाहते हैं।
सवाल यह उठता है कि क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दस साल की सरकार के बाद भी देश का जनमानस उसी भाव से स्वीकार करता है? उनकी बात को गंभीरता से स्वीकार करता है? इन बातों को खुद मोदी भी बार-बार प्रमाणित करने का प्रयास करते हैं। वे सभा में लोगों से सवाल उठाकर जवाब मांगते हैं। इससे जनता के साथ उनकी संलिप्तता समझ में आती है। वे कुछ खास किस्म के आव्हान करते हैं और जनता में उनकी अपील की स्वीकार्यता को परखते हैं। एक उदाहरण के रूप में राम मंदिर निर्माण के बाद प्राण-प्रतिष्ठा के समय घरों पर भगवा ध्वज लगाने का अव्हान प्रधानमंत्री ने किया। यह वह समय था जब दो शंकराचार्य महाराज विवाद पैदा कर रहे थे। लेकिन जनमानस ने शंकराचार्य की बात को ध्यान न देकर प्रधानमंत्री के आव्हान का समर्थन किया। यह इस बात को प्रमाणित करता है कि प्रधानमंत्री के प्रति जनस्वीकार्यता है। देश की राजनीति में लम्बे समय बाद ऐसा वातवरण बना है कि जब कोई राजनेता आव्हान करता है तब जनता उस पर अपनी प्रतिक्रिया देती है। अन्यथा देश ने नेताओं की बात को सुनना ही बंद कर दिया था।
ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी ने केवल विचारधारा के आधार पर जनमानस में पहुंच बनाई है? उनके काम का विश्लेषण करने पर भी वे तुलनात्मक रूप से आगे निकलते हुए दिखाई देते हैं। मोदी के दस साल के कार्यकाल की पूर्ववर्ती मनमोहन कार्यकाल की तुलना करने से देश में हुआ बदलाव साफ दिखाई देता है। देश ने अर्थव्यवस्था के मामले में अर्थशास्त्री मनमोहन से आगे निकल कर दिखाया है। अब भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की पांचवे स्थान पर है। मोदी का दावा है कि अगले कार्यकाल में उसे तीसरे स्थान पर पहुंचा दिया जायेगा। देश की आतंरिक सुरक्षा की बात हो या बाहरी सुरक्षा की बात हो देश ने अपनी शक्ति का बढ़ाया है। अब पाक से आतंकवादी नहीं आ पाते और आ भी जाते हैं तो भारत सर्जिकल स्ट्राइक करके करारा जवाब दे देता है। जब चीन भारत की सीमा पर आंख दिखाने या गड़ाने की कोशिश करता है तब देश उसका जवाब देने की स्थिति में खड़ा हुआ दिखाई देता है। यही तो मोदी की ताकत है। कूटनीतिक मामलों में पाक से अभिनंदन को लाने की बात हो, यूक्रेन से छात्रों का लाने की बात हो या फिर कतर से पूर्व सैनिकों को लाने की बात हो देश की शक्ति का लोहा पूरे विश्व ने माना है। व्यापार व्यवसाय के मामले में भारत का पायदान बढ़ा है। आयात की तुलना में निर्यात बढ़ा है। हथियारों का व्यापार करने वाला देश हो गया है। अधोसंरचना मामले में भारत का स्तर बढ़ा है। कुल जमा बात यह है कि भारत का विजन इस समय समूचा विश्व देख रहा है। इसलिए भारत का विपक्ष आज की सरकार के सामने कोई खास रणनीति बनाने की स्थिति में पहुंच ही नहीं पा रहा है।
विपक्षी दलों ने यूपीए को त्यागकर नया गठबंधन बनाया। नाम में ही छलावा करने का प्रयास किया गया। गठबंधन में ऐसे शब्द तलाशे गये जिससे गठबंधन का नाम ही इंडिया बन जाये। इसकी जनता में विपरीत प्रतिक्रिया हुई। बाद में गठबंधन के साथियों में मतभेद हुए और वह गठबंधन कमजोर होता चला गया। पिछले दिनों से यह समाचार आ रहे हैं कि आप और कांग्रेस में दिल्ली और हरियाणा व गुजरात में सीटों का तालमेल हुआ है। दिल्ली में अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए आप को गुजरात और हरियाणा में प्रवेश कांग्रेस की आत्मघाती राजनीति का परिचायक दिख रहा है। आप वही दल है जिसने दिल्ली और पंजाब से कांग्रेस की सत्ता को उखाड़ फैंका था। दिल्ली में तो कांग्रेस उसके बाद खाता तक नहीं खोल पाई है। जबकि पंजाब में उसकी शक्ति लगातार कमजोर हो रही है। सपा के साथ तालमेल भी मध्यप्रदेश में एक सीट देने की शर्त पर हुआ है। जबकि कांग्रेस 80 सदस्यों वाले यूपी में मात्र 17 सीटों पर राजी हो गई। यह कांग्रेस के कमजोर होने काे प्रणणित करता है। यह संदेश भी जा रहा है कि कांग्रेस विपक्ष के नेता के लिए लोकसभा चुनाव लड़ रही है सरकार बनाने का सपना तो उसके मन में ही नहीं दिखता है। अन्य दलों के साथ तालमेल की बातें सामने नहीं आ रही हैं। इसलिए विपक्षी दलों की रणनीति चुनाव के करीब आने के बाद भी राजग को टक्कर देने लायक नहीं लग रही है।
भाजपा अपने सहयोगियों के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर सहज है। अभी तक विवाद की बात सुनाई नहीं दी है। लोगों का आकर्षण मोदी की तरफ होने से अन्य दलों के नेताओं का भाजपा की सदस्यता लेने का सिलसिला तेजी से चल रहा है। इस परिस्थिति का राजनीतिक फायदा मोदी लेने का प्रयास कर रहे हैं। अमित शाह ने अन्य दलों के नेताओं को भाजपा की सदस्यता दिलाने का आव्हान किया है। इसके राजनीतिक मायने निकलते हैं। भाजपा के बारे में यह जानकारी मिल रही है कि उसने प्रत्याशियों के नाम तय कर लिये हैं और जल्द ही नाम सामने आ सकते हैं। चुनाव की घोषणा मार्च महीने से होगी और नई सरकार अप्रैल के आखिर में बन सकती है। यह लोकसभा चुनाव आम जनता की मानसिकता को पहले से ही दर्शा रहा है। जिसके कारण भाजपा को बड़ा आश्वासन मिल रहा है। तीसरी बार सरकार का क्रम यदि नरेन्द्र मोदी को मिल जाता है तब यह जवाहरलाल नेहरू के बाद किसी भी प्रधानमंत्री के लिए अनोखा उदाहरण होगा। नरेन्द्र मोदी की गारंटी का नारा समूचे देश में चल रहा है।
(लेखक हिंदी पत्रकारिता फाउंडेशन के चेयरमैन हैं) संवाद इंडिया