मोदी सरकार चाहती है 2047 के लक्ष्य में बराबर की भागीदारी… निर्धारित लक्ष्य और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

आम बजट की भाषा को समझा जाये तो भारत की वर्तमान मोदी सरकार का लक्ष्य 2047 तक विकसित भारत बनाना है। सरकार अपने मिशन की तरफ बढ़ती हुई भी दिखाई दे रही है। इस मिशन को प्राप्त करने के लिए सरकार दो प्रकार से आगे बढ़ रही है। पहला आर्थिक सुधार के माध्यम से और दूसरा समाज में समानता के कानून बनाकर।

सुरेश शर्मा

आम बजट की भाषा को समझा जाये तो भारत की वर्तमान मोदी सरकार का लक्ष्य 2047 तक विकसित भारत बनाना है। सरकार अपने मिशन की तरफ बढ़ती हुई भी दिखाई दे रही है। इस मिशन को प्राप्त करने के लिए सरकार दो प्रकार से आगे बढ़ रही है। पहला आर्थिक सुधार के माध्यम से और दूसरा समाज में समानता के कानून बनाकर। लक्ष्य को पाने के लिए सबकी भागीदारी की जरूरत लग रही है और इसके लिए यह जरूरी है कि सबका योगदान हो और सबको लगे कि विकसित भारत में उनका भी सहयोग है। अधोसंरचना पर लम्बे से जोर है। देश में जिस तेजी से सड़कें बनी हैं वे विकसित भारत की ओर बढ़ने का पहली कदम है। सांस्कृतिक उत्थान आन्तरिक पर्यटन की ओर ले जाने का रास्ता है जिससे आम व्यक्ति की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा। कानून व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने से निवेश आयेगा और विदेशी निवेश के माध्यम से देश को आर्थिक शक्ति बनाने में योगदान मिलेगा। इससे अिधक प्रभावशाली बात यह है कि जिस प्रकार से वैश्विक स्तर पर धार्मिक टकराव और विवाद पैदा हो रहे हैं भारत में इसकी असमानता को दूर करके सभी को बराबर बिठाने का लक्ष्य भी हमारी आर्थिक ताकत बनने की राह खोलेगा। यह सच है कि तीसरी बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा को अपने दम पर सरकार बनाने का अवसर नहीं मिला लेकिन सहयोगी दलों के साथ सरकार चलाने के बाद भी सरकार के तेवर वहीं हैं और वह अपने लक्ष्य को पाने के लिए उसी तेजी से अपनी दिशा में चल रही है। जनसंघ के समय से ही भाजपा के तीन वादे नारे के रूप में चलन में थे। कश्मीर से धारा 370 को समाप्त करना। समान नागरिक संहिता। बाद में जुड़ा राम मंदिर का निर्माण। इसमें से दो नारे पूरे हो गये हैं। रास्ता जो भी अपनाया गया लेकिन दोनों वादे-नारे पूरे कर दिये गये। अब लालकिले से ललकार हो चुकी है कि समान नागरिक संहिता बनाई जायेगी। उस पर देश में बहस का अव्हान प्रधापमंत्री ने किया था वह बहस शुरू हो चुकी है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लालकिले से यह संदेश देने में कामयाब हो गये हैं कि उनके दल को चाहे बहुमत नहीं मिला है फिर भी सरकार चलाने का जनादेश उन्हें ही मिला है। इसलिए उनकी विचारधारा के आधार पर देश का संचालन करने में उन्हें कोई समस्या नहीं आना चाहिए। उन्होंने लालकिले से बोल दिया कि देश में चल रही साम्प्रदायिक व्यवस्थाओं को बदलने का समय आ गया है। आजादी के बाद देश में धार्मिक आधार पर बड़ा भेदभाव हुआ था उसे सुधारते हुए अब समान भाव से सभी नागरिक बराबरी के अधिकारों के साथ मिलकर काम करेंगे। संसद में पेश किया गया वक्फ बोर्ड संशोधन कानून भी इसी दिशा का एक कदम है। देश का पहला ऐसा कानून है वक्फ कानून जिसके बोर्ड के निर्णय को न्यायालय में चुनौती देने का अधिकार ही नहीं था। ऐसा तो मुगलकाल में भी नहीं था। पहले की सरकारों ने तो वोट के लिए गुलामी काल से भी आगे निकल गये। अब समान नागरिक संहिता के बात प्रधानमंत्री ने करके देश को संदेश दे दिया कि देश से वोटकाल खत्म होने वाला है और सभी भारतीय होकर देश के विकास करने में जुटेंगे?

लालकिले से प्रधानमंत्री ने समान नागरिक संहिता के स्थान पर सेक्युलर नागरिक संहिता कह कर राजनीति का अनुपम उदाहरण दिया है। मतलब वही है लेकिन नाम स्वीकार्य बनाने का प्रयास किया है। देश में महिला आरक्षण बिल पास कराया गया। लेकिन उसका नाम रख दिया गया नारी शक्ति वंदन अधिनियम। तब क्या चुनाव के आरक्षण के साथ या बाद में निर्वाचित नारी जनप्रतिनिधि को पुष्प मालाएं भी पहनाई जायेंगी? संभवतया यह सम्मान का नाम है। उसमें नियमों को उसी प्रकार से अधिसूचित किया जायेगा जिससे लोकसभा और विधानसभाओं में चुनाव के समय आरक्षण होकर सीटें महिलाओं के लिए भी निर्धारित हो जायें। ऐसे ही यदि कानून का नाम समान नागरिक संहिता के स्थान पर सेक्युलर नागरिक संहिता हो जायेगा तब उसके नियमों काे अधिसूचित करते समय तो वही होगा जो पहले से तय है। इसलिए मोदी सरकार अपने एजेंडे को ही पूरा करने की दिशा में कदम दर कदम बढ़ रही है। वैसे भी यह समय की मांग है कि भारत में प्रचलित सभी ध्ार्मों को समान भाव से विकसित होने का मौका मिले और किसी को किसी के क्षेत्र में प्रवेश करने का स्थान न मिले। इसके लिए भी चाहे तो कोई अगल से कानून बनाना पड़े तो भी बनाया जाये।

बांग्लादेश के तख्ता पलट ने तो विश्व की मानसिकता को ही बदल दिया है। कम से कम भारत की सरकार और यहां के समाज की मानसिकता को तो गहराई तक प्रभािवत किया है। तख्ता पलट किसी राज्य व देश का आना विषय होता है। वह चुनाव में भी सत्ता बदल सकती है और अन्य तरीकों से भी। ऐसा बांग्लादेश में होना किसी को विचलित नहीं करता। केवल सत्ता में बैठे नेताओं को यह समझने का मौका देता है कि आप अपना रास्ता सुधार लीजिए अन्यथा जनता का आक्रोश आपके विरूद्ध भी हो सकता है। लेकिन वहां जो शेख हसीना के इस्तीफे और देश छोड़ने के बाद में हुआ वह दिल दहला देने वाला है। कोई भी देश अपने ही नागरिकों पर धर्म के आधार पर इतना जहर कैसे पाल सकता है? बांग्लादेश में हिन्दू महिलाओं को लेकर जिस प्रकार के वीडियाे सामने आ रहे हैं वह सब तो दरिंदगी से भी आगे की घटनाएं हैं। उनमें मुस्लिम महिलाओं की बराबर की भागीदारी आखिर क्या कह रही है? हिन्दू महिलाओं को निवस्त्र करने और उनके साथ विभित्स कार्य करने में वे बराबर की भागीदार हो रही हैं। यह मानवीय संवेदनाओं को झकझौरने वाला घटनाक्रम है। ऐसे में भारत जैसे देश को तो सबसे अधिक सर्त्तक रहना होगा। किसी भी देश का हिन्दू भारत का नागरिक बन जाये यह आसान तरीका तो है लेकिन अन्य देशों के लिए सुविधाजनक तरीका है। वे अत्याचार करके उसे भगा देंगे? बांग्लादेश की घटनाओं को देखने के बाद उन्हें वहीं संरक्षण देने की दिशा में भारत को नेतृत्व करना चाहिए। विश्व पटल पर इसको आवाज देने की जरूरत है। संभव हो तो यूएन में ये वीिडयाे दिखाकर इस्लाम की रूह कंपा देने की मानसिकता का उपाय करने की दिशा में मंथन करना चाहिए।

इसीलिए भारत में धार्मिक विषमता को रोकने के लिए समान नागरिक संहिता की जरूरत है। देश के राजनीतिक दलों में मुस्लिम समाज के वोट हासिल करने के िलए जिस प्रकार की प्रतिस्पर्धा और संविधान की भावनाओं का रौंदते हुए कानून की सुविधा देने का प्रयास किया गया उसे सुधारने की जरूरत है। आजाद भारत में अल्संख्यक समाज को शिक्षा देने के लिए संस्थान खोलने और धार्मिक शिक्षा देने का अिधकार तो है लेकिन बहुसंख्यक समाज को इससे वंचित रखा गया। अनुच्छेद 30 भेदभाव करता है। एक दौर तो ऐसा आया था अल्पसंख्यक संस्थानों का अधिग्रहण सरकार ने किया और उसमें काम करने वाले शिक्षक सरकारी शिक्षक हो गये। इसलिए भारत को आर्थिक शक्ति बनाने के लिए आर्थिक सुधारों के साथ ही कानून के भेदभाव को भी दूर करने की जरूरत है। मोदी सरकार ने इस दिशा में काम शुरू किया हुआ है। भारत को विश्व का ताकतवर देश बनाने का लक्ष्य पता है और उसको पाने के िलए रास्ता भी पता है। उस रास्ते पर चलने का तरीका भी पता है। यह लग भी रहा है कि भारत सरकार उस पर सही दिशा में चल भी रही है। जरूरत केवल यही है कि उसमें देश के प्रत्येक नागरिक की सहभागिता सुनिश्चित हो जाये। आपसी भेदभाव खत्म होकर समान भाव से सभी अपना योगदान दें। ऐसे उन नकारात्मक शक्तियों को भी रचनात्मक दिशा में चलने की प्ररेणा देना होगी? जो देश को जाति आधारित विभाजन की ओर ले जाना चाहते हैं। आिर्थक योगदान देने के साथ स्पर्धा करने की बात करने की बजाए आबादी के आधार पर आिर्थक हिस्सेदारी की बात करते हैं। यह देश को विभाजित करने का सबसे बड़ा आधार बन सकता है। यह मानसिकता भी बांग्लादेश में दिखाई गई इस्लामिक मानसिकता से भी बदतर है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उसकी सरकार तो नीतियां देश को जिस दिशा में ले जाने का काम कर रही हैं उसी दिशा में सभी मिलकर उसे ले जाने में मदद करें। यह विषय चुनाव का न होकर देश का है। देश के विकास और सामाजिक सरोकार के लिए चुनावी प्रकि्रया का हिसाब-किताब लगाने की जरूरत नहीं होना चाहिए। तभी हम भारत का लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा को पा सकेंगे।

संवाद इंडिया
(लेखक हिंदी पत्रकारिता फाउंडेशन के चेयरमैन हैं)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button