जिसका मित्रता के लिए इतना बड़ा त्याग उसे मित्रता के लिए मिली सृष्टि
आज 6 अगस्त है। इसे मित्रता दिवस याने फे्रंडशिप डे के रूप में मनाया जाता है। आज की मित्रता को उल्लेखित करने का अपना तरीका हो गया। लेकिन पहले के भारतीय संस्कार और इतिहास में मित्रता का अपना महत्व होता था। सबको याद होगा कि कृष्ण और सुदामा की मित्रता का उदाहरण आज भी पेश किया जाता है। सुदामा ने पहले कृष्ण के हिस्से के चने खाकर अपने मित्र धर्म का पालन किया और बाद में उस चने खाने से आई दरिद्रता का बदला मित्र ने सृष्टि दान में देकर चुकाया। यह मित्रता का अनुपम उदाहरण है।
संकलन, सुरेश शर्मा। आज 6 अगस्त है। इसे मित्रता दिवस याने फे्रंडशिप डे के रूप में मनाया जाता है। आज की मित्रता को उल्लेखित करने का अपना तरीका हो गया। लेकिन पहले के भारतीय संस्कार और इतिहास में मित्रता का अपना महत्व होता था। सबको याद होगा कि कृष्ण और सुदामा की मित्रता का उदाहरण आज भी पेश किया जाता है। सुदामा ने पहले कृष्ण के हिस्से के चने खाकर अपने मित्र धर्म का पालन किया और बाद में उस चने खाने से आई दरिद्रता का बदला मित्र ने सृष्टि दान में देकर चुकाया। यह मित्रता का अनुपम उदाहरण है।
सुदामा दरिद्र ब्राह्मण था और कृष्ण द्वारकाधीश, विष्णु अवतार। लेखकों, गायकों और अन्य रचनाकरों ने सुदामा की छवि को इतना विकृत करके पेश किया हुआ है कि कोई भी गरीब व्यक्ति, कटे-फटे कपड़े दिख जायें सुदामा का चरित्र याद आ जाता है। लेकिन जिस प्रकार से इतिहास को अपने हिसाब और सुविधा से दिखाने का रिवाज है वैसे ही साहित्यकारों और विद्वानों ने भी अपनी कहानी को रौचक बनाने के लिए प्रसंगों का अर्थ अपने हिसाब से लिया है। इनमें बदलाव किये गये हैं। आप भी जानना चाहेंगे कि सुदामा अपने कर्मों से दरिद्र थे या उन्होंने दरिद्रता ओढ़ी थी और ओढ़ी भी क्यों और किसके लिए?
जो प्रंसग मिलता है वह अजीब है और उसको रचा और प्रस्तुत अलग तरीके से किया गया। एक गांव में एक बुढिय़ा ब्राह्मणी रहती थी। भिक्षा से जीवन यापन करना ही उस समय ब्राह्मणों की चर्या हुआ करती थीं। केवल संकल्प के आधार पर तय किये गये घरों से ही भिक्षाटन होता था। मिल जाये तो ठीक अन्यथा उपवास। उस ब्राह्मणी को भी पांच दिन तक भिक्षा नहीं मिली। भूखी भगवान के भजन करती रही। एक दिन उसे एक मु_ी चने मिले। रात में वह उनको खाने का विचार करने लगी तब मन ने कहा कि जब इतने दिन भगवान ने उसे भूखा रखने के बाद यह सब दिया है तब पहले सुबह भगवान को भोग लगाकर ही इसे ग्रहण करेंगे। ब्राह्मणी ने वह चने की पोटली सिरहाने रखी और सो गई। रात में चोर उसके घर में घुसे और हीरे समझ कर उसे चुरा ले गये। जब चनों की पोटली नहीं मिली तो वह ब्राह्मणी नाराज हो गई। उसे इस बात पर गुस्सा आया कि वह भगवान को भोग भी नहीं लगा पाई। इसलिए उसने श्राप दे दिया कि जो इन चनों को खायेगा वह दरिद्र हो जायेगा? वह चोर संदीपनी ऋषि के आश्रम में छुप गया। सुबह गुरू माता की पदचाप सुनी तो चोर चने की पोटली वहीं छोडक़र भाग निकले।
गुरू माता ने वह चने की पोटली उठाई और जंगल जाते समय कृष्ण और सुदामा को दे दी। दोनों को यह पता था कि इस पोटली में श्रापित चने हैं। लेकिन गुरूमाता ने दिया है इसलिए ले तो जाना ही थे और उसे खाना भी है क्योंकि आदेश था कि भूख लगने पर खा लेना कहा गया था। कृष्ण लकड़ी तोडऩे के लिए पेड पर चढ़े तो सुदामा ने सारे चने खा लिए। सुदामा को पता था कि इन चनों को खाने से वह दरिद्र होने वाला है फिर भी खा लिये। सुदामा समझ रहा था कि यदि इन चनों को कृष्ण खायेगा तो सुष्टि के संचालक की दरिद्रता सृष्टि की दरिद्रता में बदल जायेगी। सुदामा सृष्टि को दरिद्र करने का पाप तो नहीं ले सकते थे। यह सब कृष्ण देखकर मुस्कराते रहे और अपने मित्र के त्याग को देखकर गर्वित भी होते रहे। इस प्रकार से सुदामा महान बन गये और भगवान के अभिन्न मित्र भी।
याद ही है कि इसका बदला द्वाराकाधीश मित्र ने किस प्रकार से चुकाया। तीन तंदुल चावल के बदले तीनों लोक देने का निर्णय लिया। दो मु_ी में दो लोक दे भी दिये। लेकिन जब बैकुंठ धाम देने के लिए तीसरी मु_ी चावल खाने चाहे तो रूकमणी ने यह कहकर रोक दिया कि भगवन, मित्र का प्रसाद अकेले ही खा जायेंगे या हमें भी खाने का सौभाग्य देंगे। इस प्रकार की मित्रता का यह महान और अनुपम उदाहरण भारत वर्ष में ही मिल सकता है। भारत में हालांकि प्रत्येक दिन मित्रता को समर्पित रहते हैं इसलिए यहां की परिपाटी अगल है फिर भी विश्व के साथ उसका तालमेल और मार्गदर्शक होने के कारण उसमें सहभागी होना हमारा धर्म भी है। इस प्रकार मित्रता का पाठ भारत में अन्य देशों से अलग है। मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।