विजयपुर की सीख नेताओं के कारण नहीं है भाजपा कार्यकर्ता
समूचे देश में भाजपा को कार्यकर्ताओं की पार्टी माना जाता है। यही कारण है कि वह मतदाता को निकालता है और लगातार भाजपा जीतती जा रही है। जिस भी चुनाव या राज्य में नेता ने कार्यकर्ता को अपना कर्मचारी माना वही सीट खतरे में पड़ जाती है। एक किस्सा सुना था।
सुरेश शर्मा, भोपाल। समूचे देश में भाजपा को कार्यकर्ताओं की पार्टी माना जाता है। यही कारण है कि वह मतदाता को निकालता है और लगातार भाजपा जीतती जा रही है। जिस भी चुनाव या राज्य में नेता ने कार्यकर्ता को अपना कर्मचारी माना वही सीट खतरे में पड़ जाती है। एक किस्सा सुना था। भगवान श्रीराम ने विभीषण को अपना अनन्य भक्त माना और उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान भी दे दिया। राजपाठ रावण का उन्हें मिला यह तो सबको पता ही है। वे अयोध्या की राज्यसभा के सभासद भी रहे। इतने पि्रय पात्र का नाम तक कोई भी सनातन मानने वाला नहीं रखता? जबकि वे तो भगवान के प्रिय थे। तब भाजपा वाले सनातन का पाठ पढ़ाते वक्त यह कैसे भूल जाते हैं कि नेता जिसको अपना पि्रय बताने लगेंगे और कार्यकर्ता उसे स्वीकार कर लेगा? यही सीख विजयपुर से भाजपा नेताओं को मिली है।
विजयपुर में भाजपा पांच बार जीती है। जनता पार्टी के समय और उससे पहले जनसंघ के समय भी। भाजपा के दो बार के विधायक बाबूलाल मेवाडा और 2018 के सीताराम आदिवासी मन से रावत के साथ नहीं थे। यही कारण है कि आदिवासी समाज मुकेश मल्होत्रा के साथ चला गया। इस चुनाव का एक ही गणित था। जिस भी प्रत्याशी के साथ अपना समर्थन और पार्टी का समर्थन मिल जायेगा वही जीतेगा? कांग्रेस ऐसा कर ले गई। जबकि रामनिवास रावत ने अपनी टीम पर भरोसा किया जिससे उन्हें भाजपा के कार्यकर्ताओं का वह समर्थन नहीं मिला जो हर बार उनके विरोध में खड़े प्रत्याशी को मिलता था। यह उपचुनाव ऐसा था जिससे सरकार को कोई संकट नहीं था। इसलिए कार्यकर्ताओं ने अपने पुराने साथी मुकेश को संकट में नहीं डाला।
विजयपुर ने भाजपा नेतृत्व को सीख दी है। भाजपा का कोई नेता कार्यकर्ता का निर्माण नहीं करता अपितु कार्यकर्ता नेता का निर्माण करता था। किसको पता था कि शिवराज के बाद उनके नेता डा. मोहन यादव होंगे? कितने दिग्गज मूंह ताकते रहे गये। सभी कार्यकर्ताओं ने मोहन यादव को स्वीकार किया और वे नेता हो गये। लेकिन रामनिवास रावत को भी स्वीकार कर लिया जायेगा ऐसा सोचना कार्यकर्ता की ताकत को कम आंकना है। भाजपा मध्यप्रदेश में 2004 से सरकार में है। कुछ समय कमलनाथ को दिया गया था लेकिन उसमें भी भाजपा की ही मिलीभगत की बात होती है। इसलिए कार्यकर्ताओं में नेता बनाने की क्षमता भी है उसकी अनदेखी नहीं करना चाहिए। मध्यप्रदेश ऐसा राज्य है जहां पर इंस्टेंड लीडरशिप की जरूरत नहीं है। हर क्षेत्र में जीता हुआ कार्यकर्ता है। इसलिए क्षणिक लाभ के लिए भाजपा के स्वभाव को बदलने का प्रयास जब भी हुआ कार्यकर्ताओं ने उसे जब भी मौका मिला नकारने का प्रयास ही किया है?