‘मंदिर’ पर टैक्स लगाना मतलब ‘सेक्युलिजम’
कर्नाटक की सरकार ने अपने राज्यों के मंदिरों पर 5 से 10 प्रतिशत तक का टैक्स लगाने का बिल विधानसभा में पेश किया। एक सदन ने उसे पास कर दिया और विधान परिषद ने उसे पास करने से इंकार कर दिया।

सुरेश शर्मा, भोपाल। कर्नाटक की सरकार ने अपने राज्यों के मंदिरों पर 5 से 10 प्रतिशत तक का टैक्स लगाने का बिल विधानसभा में पेश किया। एक सदन ने उसे पास कर दिया और विधान परिषद ने उसे पास करने से इंकार कर दिया। इस प्रकार कानून तो हाल फिलहाल में लागू नहीं हुआ लेकिन एक बात की पोल जरूर खुल गई? कांग्रेस की स्पष्ट बहुमत वाली इस सरकार की मानिसकता हिंदू विरोधी है यह कई बार प्रमाणित हो चुका है लेकिन वह तो इतना विरोध रखती है कि मंदिरों की आय से ही सरकार की गरीबी दूर करना चाहती है यह खास बात है। इस बिल का भाजपा और जद सेक्युलर ने विरोध किया और बिल और सरकार को हिंदू विरोधी कर दिया। अब सवाल यह उठता है कि आखिर कर्नाटक सरकार को इस प्रकार का कदम क्यों उठाना पड़ा? आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए या फिर हिंदू विरोध के कारण? अभी तक सिद्धारमैया सरकार की मानसिकता सनातन विरोधी दिखाई देती थी। हिजाब का मामला हो या बजरंग दल पर प्रतिबंद्ध लगाने की बात हो यह विरोध दिखाई दे जाता था। मंदिरों से टैक्स की राशि वसूलने का कानून बनाने की बात से यह मानसिकता सार्वजनिक हो गई है। यह देश के लिए समझने और विषय के पीछे की भावना को समझने की जरूरत है। कोई भी सरकार इस प्रकार का कदम तभी उठाती है जब उसकी हालत खराब हो?
सबसे पहली बात तो इस निर्णय के पीछे यह दिखाई देती है कि कांग्रेस आजादी के बाद से ही इसी मानसिकता से काम कर रही है। पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय मंदिरों का अधिगृहण करने का बिल लाया गया था। उनका रख-रखाव सरकारी तंत्र करेगा। यह कानून आज तक चलन में है। मोदी सरकार भी अभी तक इस दिशा में कुछ करना चाह रही है इसकी जानकारी नहीं मिल पा रही है। जब बाबरी ढ़ांचा गिराया गया उस समय नरसिंहराव सरकार ने पूजा स्थल कानून बनाया था। जिसमें आजादी के बाद की स्थिति का यथा स्थिति के रूप में रखने का प्रावधान था। हालांकि इसका परिपालन कानून के हिसाब से नहीं हो पा रहा है। अन्य प्रचीन और धार्मिक महत्व के स्थानों के बारे में न्यायालय भी निर्णय ले रहा है और सरकारें भी अलग कर रही हैं। नेहरू जी के कानून के बाद मंदिरों का चढ़ावा सरकार की संपत्ति हो जा रहा है और सरकार उस राशि का उपयोग सनातन धर्म विस्तार में करने की बजाए अपनी माली हालत सुधारने में कर रही है। अब कांग्रेस की ही कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार मंदिरों की चढ़ावा राशि पर टेक्स लगाने का प्रयास कर रही है। यह कदम सनातन विरोध ही है जिसका प्रतिकार देश भर में होना चािहए।
क्या सेक्युलिजम का मतलब यह है कि केवल हिंदू विचारों और मान्यताओं को ही कानून बंधन में बांध कर रोका जाये? क्या सभी पंथों की मान्यताओं को उसी कानून का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता है? मंिदरों की रख रखाव सरकार करेगी लेकिन चर्च, मस्जिद और गुरूद्वारों के लिए कोई कानून नहीं है। इसका मकसद हिंदू संस्कारों के विस्तार को सरकार द्वारा रोकना अधिक है। कर्नाटक का कानून कांग्रेस की आजादी के समय की मानसिकता को ही प्रदर्शित करता है? क्या इस मानसिकता का विरोध देशव्यापी नहीं होना चाहिए? आज समय की जरूरत है कि देश के मंदिरों का सरकारी नियंत्रण से मुक्त करके उन्हें समाज और सनातन के संस्कार विस्तार के खुले छोड़ देना चािहए? यही सही कदम होगा।