‘मोदी’ राज की हर उपलब्धि पर ऐसा ही ‘हंगामा’
राजनीति भी बड़ी अजीब होती है। मुकाबला नहीं कर पाओ तो चेहरे पर कालिख पोतना शुरू कर दो। नरेन्द्र मोदी की सरकार के काम और निर्णयों को लेकर इसी प्रकार की रणनीति विपक्ष ने अपना रखी है। विपक्ष तो छोडि़ए इसी प्रकार की रणनीति का सहारा ही हमारे धर्म के सबसे बड़े पदों पर बैठे शंकराचार्यों को भी लेना पड़ा है।

भोपाल। राजनीति भी बड़ी अजीब होती है। मुकाबला नहीं कर पाओ तो चेहरे पर कालिख पोतना शुरू कर दो। नरेन्द्र मोदी की सरकार के काम और निर्णयों को लेकर इसी प्रकार की रणनीति विपक्ष ने अपना रखी है। विपक्ष तो छोडि़ए इसी प्रकार की रणनीति का सहारा ही हमारे धर्म के सबसे बड़े पदों पर बैठे शंकराचार्यों को भी लेना पड़ा है। मोदी की सरकार आने के बाद के कुछ निर्णयों पर ध्यान आकर्षित करते हैं। धारा 370 को समाप्त करने का निर्णय हुआ तो कश्मीर जल जायेगा कोई झंडा उठाने वाला भी नहीं बचेगा। जब सीएए का निर्णय हुआ तो देश को सर पर उठा लिया गया। जबकि उस कानून का भारत के नागरिकों से कोई संबंध ही नहीं था। लेकिन आन्दोलन हुआ और सडक़ जाम कर दी गई। अग्रिवीर योजना आई तो घोषणा के कुछ मिनट बाद ही रेल गाडिय़ों को रोकना और आगजनी शुरू हो गई। संसद का लोकापर्ण हुआ तब राष्ट्रपति के नाम पर विवाद हुआ। सर्जिकल स्ट्राइक की तो सबूत मांग कर धूल डालने का प्रयास किया गया। अर्थव्यवस्था का उछाल हजम नहीं हुआ तो महंगाई का विषय सामने रखकर विवाद पैदा करने का प्रयास किया गया। नोटबंदी से लगाकर अन्य वे विषय जिससे भारत का भला हो सकता है सबको लेकर चेहरा धूमिल करने के प्रयास किये जाते रहे। कालाधन की बात उठाते हैं और जब भ्रष्टाचार पर ईडी आता है तब शोर?
इन सभी मामलों से यह प्रमाणित होता है कि मोदी सरकार का मुकाबला करने की स्थिति में विपक्षी नेता नहीं है तो उनका चेहरा धूमिल करने का प्रयास ही उनका विकल्प है। जनता यह समझ रही है कि आखिरकार यह सब एकत्र क्यों हो रहे हैं और इनका मकसद क्या है? अब पांच सौ साल की संघर्ष गाथा का समापन हो रहा है। अयोध्या में श्रीराम का मंदिर बन रहा है। रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा होनी है। धर्मगुरूओं सहित कांव-कांव करने वाले समूह के लोग सक्रिय हो चुके हैं। 22 जनवरी तक यही सब चलेगा। धर्मगुरूओं के अपने संदेह हैं जिनको धर्म के जानकार सुलटा लेंगे। सबसे अधिक विद्वान शंकराचार्य महाराज की आशंका यह है कि मोदी यदि प्राण-प्रतिष्ठा के बाद भगवान की आंखों की पट्टी हटायेंगे तो उसमें मंत्रों से आई चेतना समाप्त हो जायेगी और आसुरी शक्तियों का वास हो जायेगा? आसुरी शक्तियों के नाश के लिए ही तो श्रीराम धरती पर आये थे। इसलिए शंकराचार्य महाराज को रामजी पर भरोसा करना चाहिए। एक और शंकराचार्य महाराज है लेकिन उनकी मंशा शास्त्र कम राजनीति अधिक है।
उनको रामालय ट्रस्ट चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को जब वे अपने शंकराचार्य बनने पर नहीं मानते हैं तब ट्रस्ट मामले में कैसे मानेंगे। लेकिन इतना साफ हो गया है कि देश में जिस प्रकार से मोदी सरकार काम कर रही है उससे उन सभी को परेशानी हो रही है जो मठाधीश हैं। देश की इस नई करवट को सकारात्मक देखने वालों की भी कमी नहीं है। इसलिए मोदी के चाहने वालों और उनसे खीज रखने वाले आमने-सामने होते रहते हैं। मालदीव मामले से ही जान लें। कोई नहीं बोला उससे पहले ही मालदीव को भारतीयों ने झटका दे दिया था।