क्रीमी लेयर पर समाज को समझाया नहीं जा सका

सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण में क्रीमी लेयर के बारे में सरकार को आदेश दिया है। दो राज्यों के विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं और महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में राजनीितक कारणों से सरकार के सामने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को अस्वीकार करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था।

नित्यानंद शर्मा

सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण में क्रीमी लेयर के बारे में सरकार को आदेश दिया है। दो राज्यों के विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं और महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में राजनीितक कारणों से सरकार के सामने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को अस्वीकार करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। जिसको उसने उपयोग कर लिया। इस उपयोग का इसलिए उपयोग किया गया क्योंकि विपक्षी दल देश में लोकसभा चुनाव के समय से ही भ्रम की राजनीति कर रहे हैं। वे कहते हैं कि संविधान को बदलने के िलए मोदी सरकार चार सौ पार की बात कर रही है जबकि बाबा साहब अम्बेडकर ने जिस विचार का संविधान बनाया था उसे तो एक साल में ही पंडित नेहरू की सरकार ने खंडित कर दिया था। रही सही कसर श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार ने पूरी कर दी थी। इंदिरा ने तो संविधान की प्रस्तावना को ही बदल दिया था। उसमें धर्म सापेक्ष संविधान को धर्म निरपेक्ष कर दिया गया था। आज भी इस पर राजनीतिक विवाद होता है। राम-कृष्ण और महावीर-नानक के इस देश को दिये संविधान को अब इन सभी से परे कर दिया गया। इसलिए भ्रम की राजनीति का भय इतना अधिक दिखाई दे रहा है कि आरक्षण में से क्रीमी लेयर के आदेश पर सरकार को तल्काल ऐसा ही कदम उठाना जरूरी था।

समझने की बात यह है कि आखिर यह क्रीमी लेयर का आदेश है क्या बला? जिसको लेकर आन्दोलन हुआ है। आरक्षण देने का मकसद उस समय को बराबरी पर लाना है जिन्हें किन्हीं कारणों से अवसरों से वंचित होना पड़ा था। इसलिए आरक्षण का विरोध करने वाले भी इसे स्वीकार करने की मंशा रखते थे। दलित और आदिवासियों में आरक्षण का लाभ एक वर्ग विशेष ही उठाता जा रहा हे। समाज के अन्य लोग उसका लाभ ले ही नहीं पा रहे हैं। इस प्रकार की शिकायतें बार-बार आ रही हैं। वर्षों से आ रही शिकायतों का सरकारों की ओर से कोई समाधान संभव नहीं था। इसलिए प्रभावित लोग न्यायालय की शरण में चले गये। न्यायालय ने संविधान की मूल भावनाओं को समझते हुए अपना आदेश दे दिया। लेकिन वंचित समाज के आज के वंचित लोगों को इसका कोई लाभ नहीं मिला। जिन लोगों को क्रीमी लेयर माना गया था वे ही तो समाज के ठेकेदार हैं। उन्होंने न्यायालय की भावनाओं को आम लोगों तक पहुंचने ही नहीं दिया। न्यायालय की भावना यह है कि आरक्षण प्राप्त करने वाले समाज में ही एक ऐसा वर्ग तैयार हो गया है जो आरक्षण का लाभ सभी वंचितों को मिलने में बाधक है। उसी का परिवार मिलने वाले लाभ का अधिकांश हिस्सा पचा जाता है। जरूरत के लिए कतार में खड़े लोगों को वह लाभ मिल ही नहीं पाता है। उसे क्रीमी लेयर कहा गया और यह क्रीमी लेयर खत्म हो और उसके बाद के लोगों को इसका लाभ मिले यह आदेश सर्वोच्च न्यायालय ने दिया है। इसे आरक्षण पाने वाले समय के उन वंचित लोगों को समझने ही नहीं दिया गया और भ्रम पैदा कर दिया गया कि आरक्षण पर चोट हो गई हे। जबकि चोट क्रीमी लोगों पर हुई है और वंचित के लिए रास्ता खुला है।

जिन लोगों को इसका लाभ मिलने वाला था उनके समक्ष यही बात रखी गई कि आपके अधिकारों में कटौती की गई है। उन्हें आगे करके वे आदेश को रूकावाने में कामयाब हो गये हें। लेकिन क्या चुनाव समाप्त होने पर इस सच का कोई खुलाशा कर पायेगा? यहां समझने वाली बात यह है कि जिसे दलित व आदिवासी को यह बात समझ में आ गई वह आगे आ गया और उसे क्रीमी लेयर वालों ने स्वीकार कर लिया। रावण मायावती से विरोध करके आगे आया तो सांसद हो गया। मायावती आगे आई तो सीएम हो गईं। पासवान ने समझा तो आज बेटा भी केन्द्र में मंत्री है। आठवले ने खुद को प्रस्तुत किया तो राज्यसभा में भी भेजा जाता है और पद भी मिलता है। इसी प्रकार की स्थिति आदिवासियों में भी है। लेकिन जिस में शिक्षा के बाद प्रतीभा आ रही है उसे कोई मौका मिल नहीं पता है। जिस प्रकार से गैर आरक्षण वाला प्रतिभा वाला युवक खुद को आरक्षण के कारण ठगा हुआ महसूस करता है यहां तो आरक्षण के होने के बाद भी खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। इसे ठगे महसूस होने वाले को न्यायालय के आदेश से खत्म करने का प्रयास किया गया है। लेकिन क्रीमी लेयर और सरकार ने इसे लागू नहीं होने दिया।

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