‘जनान्दोलन’ बन रही है रामलला की ‘प्राण प्रतिष्ठा’
कुछ लोगों की प्रगतिशीलता चाहे कुछ भी कहती रहे लेकिन 22 जनवरी को रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा जन आन्दोलन का रूप लेती जा रही है। अब लोगों को शामिल होने के लिए अक्षत वितरण का कार्यक्रम भी शुरू हो चुका है। हालांकि कुछ विघ्न संतोषी तत्वों को इसमेंं भी वहीं फार्मूला दिखाई दे रहा है जिसके कारण विवादों में आने वाले लोग अब माफी मांग रहे हैं।

भोपाल। कुछ लोगों की प्रगतिशीलता चाहे कुछ भी कहती रहे लेकिन 22 जनवरी को रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा जन आन्दोलन का रूप लेती जा रही है। अब लोगों को शामिल होने के लिए अक्षत वितरण का कार्यक्रम भी शुरू हो चुका है। हालांकि कुछ विघ्न संतोषी तत्वों को इसमेंं भी वहीं फार्मूला दिखाई दे रहा है जिसके कारण विवादों में आने वाले लोग अब माफी मांग रहे हैं। मंदिर की जगह अस्पताल बनाने की बात कहने वालों को सद्बुद्धि आ रही है। उन्हें समझ में आ गया कि मंदिर का अपना महत्व होता है और अस्पताल का अपना। ऐसे तत्वों को भी समझ में आ जायेगा कि अक्षत वितरण का संस्कार हमारे समाज में रिश्तों को गहरा करता रहा है। इससे भूख मिटाने की बात करना बुद्धिहीनता के अलावा कुछ नहीं है। फिर भी इन बातों के बीच में 22 जनवरी को आयोजित होने वाला रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का भव्य आयोजन जनान्दोलन बनता जा रहा है। अयोध्या वासियों को इसमें शामिल होने के लिए अक्षत वितरित किये जा रहे हैं तो देश के लोगों को अपने घरों और मंदिरों में दीपक जलाने का आव्हान किया जा रहा है। इसमें रूचि दिखाई दे रही है। आस्था और विश्वास के साथ यह संसाधन बढ़ाने का उपक्रम भी बनता जा रहा है। गांव-गांव में जागरूकता बढ़ रही है।
कुछ लोगों की शिकायत हो सकती है कि उन्हें आमंत्रित क्यों नहीं किया गया? कुछ लोगों की यह शिकायत यह भी हो सकती है कि आमंत्रण केवल राजनीतिक लोगों को ही क्यों दिये जा रहे हैं अन्य बड़े संगठनों को क्यों नहीं? यह सब स्वभाविक है। लेकिन कुछ तत्वों को चावल बांटने की बजाए खाने के उपयोग में आते तो कितने गरीबों को भोजन मिल जाता आदि-आदि बातें सूझ रही हैं। ये वो लोग हैं जो न गाय को रोटी देते हैं न ही कुत्ते को। लेकिन उनको बीच में बात करने की बीमारी होती है। यह उत्सव का समय है। ऐसे काले टीके वालों का भी महत्व होता है। इसलिए देश फिर से दीपावली का उत्सव मनाने की तैयारी कर रहा है। 22 जनवरी के लिए आव्हान है कि अयोध्या आकर भीड़ का हिस्सा बनने की बजाए अपने गांव के मंदिर में चौदह दीप जलाएं। लोग घरों में दीप जलाने की तैयारी कर रहे हैं। यह उत्सव तो होगा ही इससे आजीविका का साधन भी बढ़ेगा। दीप जो दिवाली के समय ही बिकते थे अब नये मौके पर भी बिकेंगे जो अतिरिक्त आय होगी। कामकाज की पूर्ति के लिए निर्माण भी करना होगा।
इसके राजनीतिक घटनाक्रम की अनदेखी नहीं की जा सकती है। विपक्षी दलों के नेताओं के द्वारा आमंत्रण को लेकर विवाद पैदा किया जा रहा है। यह उनका राजनीति करने का तरीका है। संत इसका जवाब दे रहे हैं। मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा को भव्य बनाने को इवेंट बताने वाले यह जानते हैं कि इससे भारत का जनमानस जुड़ रहा है। लोगों में उत्साह पैदा हो रहा है। वे आयोजन में रूचि ले रहे हैं। पांच सौ वर्षों के आन्दोलन की सफल परिणिति की खुशी उनके मनों में देखी जा रही है। विपक्ष की आलोचना यहीं से निकल रही है। मोदी का मैजिक है और इस आयोजन से सांस्कृतिक जुड़ाव आने वाले समय की राजनीति है।