‘रामलला’ के ज्वार में दब गई राहुल की ‘यात्रा’
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी इन दिनों एक और यात्रा निकाल रहे हैं। भारत जोड़ो न्याय यात्रा पूर्वोत्तर से शुरू होकर मुम्बई तक जाने वाली है। इस यात्रा का मकसद लोकसभा चुनाव में मोदी विरोध का वातावरण बनाना है। इंडी गठबंधन का भी इस यात्रा को समर्थ दिखाई दे रहा है।

सुरेश शर्मा, भोपाल। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी इन दिनों एक और यात्रा निकाल रहे हैं। “भारत जोड़ो न्याय यात्रा” पूर्वोत्तर से शुरू होकर मुम्बई तक जाने वाली है। इस यात्रा का मकसद लोकसभा चुनाव में मोदी विरोध का वातावरण बनाना है। इंडी गठबंधन का भी इस यात्रा को समर्थन दिखाई दे रहा है। देश में चल रहे रामलला के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के कारण यात्रा की चर्चा नहीं हो पा रही है। विपक्ष को मीडिया में जितना स्थान मिलना चाहिए था उसे जगतगुरू शंकराचार्य महाराज ने पा लिया हैं। तब राहुल गांधी की इस यात्रा को स्पेस कम ही मिल पाता है। देश में राम मंदिर और राम आयेंगे इसकी चर्चा जन-सामान्य की चर्चा हो चली है, इसलिए किसी का कोई प्रभाव नहीं हो पा रहा है। न तो मोदी बोल रहे हैं और न ही राम मंदिर निर्माण में लगे लोग। सबका मानना है कि 22 तारीख के बीत जाने के बाद हिसाब-किताब कर लिया जायेगा, या मांग लिया जायेगा? अभी तो आयोजन को बिना बाधा के पूरा करा लिया जाये। ऐसे में राहुल गांधी का दांव नहीं चल पाया। विपक्षी दलों की मंशा थी कि मणिपुर में हुए विवाद को आधार बनाकर सरकार के विरोध में वातावरण बना लिया जायेगा और पूरे देश में सरकार को जवाब देने के लिए विवश कर लिया जायेगा। लेकिन स्थानीय स्तर पर चर्चा के अलावा कोई खास प्रभाव नहीं बना है।
राहुल गांधी ने भारत जोड़ा यात्रा की थी। वह समय ऐसा था जब कोई ऐसा वातावरण नहीं था जिसमें जनता का ध्यान कहीं केन्द्रित हो। इसलिए उस यात्रा की चर्चा शुरू हो गई थी। कांग्रेस का समर्थन न करने वाला पक्ष भी यह मानने लग गया था कि राहुल की छवि में सुधार आयेगा और जनता में कांग्रेस वापसी कर सकती है। दक्षिण के राज्यों में उसका प्रभाव दिखा भी। कर्नाटक में भाजपा से सरकार छीनी और अब तेलंगाना में कांग्रेस ने सरकार बनाई है। आन्ध्रा में समीकरण अपने पक्ष में किये हैं। केरल में राहुल के चुनाव लडने का प्रभाव दिखाई दे सकता है। पहली यात्रा से कांग्रेस को फायदा हुआ है। दूसरी यात्रा का समय गलत है। यह भी हो सकता है कि विपक्षी दलों ने यह विचार किया हो कि राम मंदिर का मामला उत्तर भारत में अधिक प्रभाव डालेगा जहां भाजपा पहले से ही सबसे अधिक सीटें पा चुकी है। ऐसे में दक्षिण के बाद पूर्वोत्तर में विपक्षी ताकत का एका किया जाये। इसलिए यात्रा का मकसद अपनी जगह है लेकिन समय को लेकर सवाल हैं। जब यह यात्रा पूर्वोत्तर से निकल कर उत्तर भारत और मुम्बई तक जायेगी तब मौसम साफ हो जायेगा।
अभी राम मंदिर का ज्वार है। विपक्ष को अधिक कसरत करने की भी वैसे जरूरत नहीं है। शंकराचार्य विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं। उनमें एक अविमुक्तेश्वरा नंद जी तो पानी पी-पीकर कोस रहे हैं। वे तो यह भी भूल रहे हैं कि वे सनातन के शीर्ष पर बैठे हैं। सीधे प्रहार कर रहे हैं और मंदिर को दिव्यांग बता रहे हैं। इसकी विपरीत प्रतिक्रिया हो रही है। देश के अन्य क्षेत्रों में भी इस प्रकार के व्यवहार का प्रभाव हो रहा है। इसलिए नुकसान राहुल की यात्रा का हो रहा है जिन्हें अधिक स्थान प्रचार का नहीं मिल पा रहा है। यह कह सकते हैं कि राम के ज्वार में राहुल गुम हो गये हैं।