मंत्री टेटवाल के कलमा पढ़ने की जरूरत पर उठ रहे हैं सवाल
मध्यप्रदेश सरकार में कौशल विकास और रोजगार राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार गौतम टेटवाल इन दिनों विवादों में फंसेे हैं। राजगढ़ के एक आयोजन में टेटवाल का भाषण चल रहा था। उसी समय नमाज के लिए अजान हुई तो उन्होंने अपना भाषण रोक लिया। इस प्रकार का सम्मान देश के प्रधानमंत्री भी देते रहे हैं।
सुरेश शर्मा, भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार में कौशल विकास और रोजगार राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार गौतम टेटवाल इन दिनों विवादों में फंसेे हैं। राजगढ़ के एक आयोजन में टेटवाल का भाषण चल रहा था। उसी समय नमाज के लिए अजान हुई तो उन्होंने अपना भाषण रोक लिया। इस प्रकार का सम्मान देश के प्रधानमंत्री भी देते रहे हैं। अन्य नेताओं की मंशा भी अजान को सम्मान देने की रही है। गौतम टेटवाल इससे आगे निकल गये। उन्होंने तो अजान खत्म होने पर अपना भाषण शुरू किया और कलमा पढ़ दिया। उन्होंने इस पर अपनी सफाई दे दी है। लेकिन मामला तूल पकड़ता जा रहा है। भाजपा के नेतृत्व ने इस मामले को संज्ञान में लिया है। लेकिन टेटवाल पर किसी प्रकार की कार्यवाही करने के संबंध में उनका कोई विचार है ऐसा लगा नहीं है। हालांकि इससे पहले ऐसे प्रमाण हैं जिसके कारण भाजपा ने अपने दिग्गज नेताओं पर कार्रवाई की है।
गौतम टेटवाल ने कलमा क्यों पढ़ा इसके बारे में उनकी कोई सफाई नहीं आई है जबकि वे गोदरा वाली फिल्म देखने गये तो उन्होंने आरोपों को कमजोर करने का प्रयास जरूर किया है। कलमा पढ़ने की घटना से हिन्दू संगठनों ने अपना गुस्सा दिखाना शुरू कर दिया है। वे मांग कर रहे हैं कि टेटवाल को मंत्रीमंडल से हटाया जाना चाहिए। किसी भी प्रकार की कार्यवाही मुख्यमंत्री के स्वदेश वापस आने के बाद ही पता चलेगा कि कुछ होगा या नहीं?
याद होगा ही कि अपने पाकिस्तान प्रवास के समय आडवाणी जिन्ना की मजार पर गये थे। वहां उन्होंने जिस प्रकार का बयान दिया था उससे भाजपा का अन्य नेतृत्व असहज हो गया था। तब उन्होंने वापस आने से पहले ही भाजपा के अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया था। इसकी सूचना भी उन्हें भारत में लैंड करते वक्त वहीं पर दे दी गई थी। जसवंत सिंह जैसे दिग्गज नेता अपनी किताब में कुछ लिख दिया था जिसके कारण उन्हें शिमला बैठक में पहुंचने के बाद बैठक में शामिल होने से रोक दिया था। अाज मोदी की भाजपा का इस मामले में अधिक घ्यान भी है और रूचि भी है। इसलिए कलमा पढ़ने वाले मंत्री को लेकर कोई न कोई निर्णय तो लिया ही जायेगा?
लोकसभा चुनाव के बाद से भारत की राजनीति में बड़ा बदलाव दिखाई दे रहा है। मुस्लिम समाज ने भाजपा काे वोट न देकर हराने की नीति पर काम किया है। जिससे अपने दम पर सरकार बनाने का मौका चला गया। इसके बाद राजनीति चरम पर है। देश की मस्जिदों के पुराने मंदिर वाले विवाद को देशव्यापी स्तर पर उठाया जा रहा है। ऐसे में टेटवाल का कलमा पढ़ने वाले बयान पर तूल पकड़ना स्वभािवक है। हिन्दू संगठनों ने इस मामले में कार्यवाही करने की मांग की है। हालांकि टेटवाल की मंशा कैसी रही उसकी जानकारी वे संगठन के सामने रख सकते हैं। लेकिन यह मामला तूल पकड़ता हुआ दिखाई दे रहा है।