‘तीसरी’ पीढ़ी के साथ राजनीतिक अदावत वो भी ‘घनघोर’
वो घटनाक्रम सहज आंखों के सामने आ गया जब दिग्विजय सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। भाजपा का प्रदेश कार्यालय कुछ दिनों के लिए चौहत्तर बंगले पर हुआ था। लखीराम अग्रवाल भाजपा अध्यक्ष थे और वहां राजमाता विजयाराजे सिंधिया आईं हुई थीं।
भोपाल। वो घटनाक्रम सहज आंखों के सामने आ गया जब दिग्विजय सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। भाजपा का प्रदेश कार्यालय कुछ दिनों के लिए चौहत्तर बंगले पर हुआ था। लखीराम अग्रवाल भाजपा अध्यक्ष थे और वहां राजमाता विजयाराजे सिंधिया आईं हुई थीं। अम्मा महाराज से मिलने दिग्विजय सिंह आने वाले थे। इस सूचना ने पत्रकारों के कान खड़े कर दिये। वे आये और मिलना भी हुआ। मुख्यमंत्री की गाड़ी पोच में नहीं लगी बाहर सड़क पर लगाई गई थी। देखने वाला दृश्य यह था कि दिग्विजय सिंह राजमाता को जुहार करते हुए गेट से बाहर तक गये थे। उन्होंने एक बार भी राजमाता की ओर पीठ नहीं की। यह वह स मान था अ मा महाराज का जो दिग्विजय सिंह राजनीतिक विरोधी होते होते हुए भी देते थे। राजमाता भाजपा में थी मतलब वे प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल में थीं। लेकिन माधव राव सिंधिया तो कांग्रेस में ही थे। उनके साथ भी दिग्विजय सिंह की राजनीतिक अदावत बनी रही। माधव महाराज का कद इतना बड़ा था कि दिग्विजय सिंह की चमक उनके सामने उतनी नहीं थी लेकिन राजमाता जैसी नहीं थी। अब दिग्विजय सिंह की राजनीतिक प्रतिस्पर्धा सिंधिया परिवार की तीसरी पीढ़ी के साथ भी जारी है। लेकिन यह इतनी घनघोर हो जायेगी इसकी कल्पना किसी को भी नहीं थी।
माधव राव सिंधिया जितने प्रभावशाली उतने ही शालीन भी। वे किसी को इतना महत्व ही नहीं देते थे कि कंधे पर बैठकर कोई कान काट ले जाये। लेकिन ज्यातिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस की राजनीति में दिग्विज सिंह को महत्व दे दिया और उनके राघौगढ वाले महल तक में चले गये जबकि सिंधिया घराने का कोई भी महाराज ऐसा नहीं करता था। दिग्विजय सिंह घराने का स मान तो करते हैं लेकिन राजनीतिक रूप से ज्योतिरादित्य को अधिक आगे बढऩे के खिलाफ हैं। कमलनाथ सरकार के समय सिंधिया के सामने बनी परिस्थितियां दिग्विजय की राजनीतिक चौसर पर तैयार की गईं थी कमलनाथ ने पासा फैंका था। उसी में सरकार पलट गई। सिंधिया भाजपा में इतने प्रभावशाली हो गये कि दिग्विजय का सपना चूर हो गया। सिंधिया को कांग्रेस से बिदा करने का प्रतिफल जयवर्धन सिंह का बडा कद करना था। लेकिन कमलनाथ ने ही वह नहीं होने दिया। अब जयवर्धन को क्षेत्रीय क्षत्रप बनाने के प्रयास में सिंधिया से सीधी भिडंत हो रही है। वह भी इतनी तीव्र की देश का ध्यान खींच लिया है। भगवान के यहां अर्जी लगाने का काम शुरू हो गया है।
दिग्विजय सिंह की बाबा महाकाल के सामने अर्जी में भावना और उपमा थी। अब कांग्रेस में कोई सिंधिया पैदा न हो। लेकिन सिंधिया के जवाब में देश की सुरक्षा और स मान का भाव छुपा हुआ दिखाई देता है। जिसमें देश विरोधी और बंटाढ़ार जैसे मारक शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। सिंधिया यहां आक्रामक हैं। वे देश विरोधी की नई उपाधी दिग्विजय सिंह को दे रहे हैं। बंटाढ़ार तो दो दिवंगत भाजपा नेता अरूण जेटली और अनिल माधव दबे पहले ही दे गये थे। इस घनघौर राजनीतिक अदावत का असर निश्चित ही ग्वालियर चंबल और गना अशोक नगर के जिलों पर पडेगा यह मान लेना चाहिए। जयवर्धन की डगर भी अब सहज नहीं रहने वाली है।