‘पेपर’ लीक को मिलनी चाहिए व्यवसायिक ‘मान्यता’

जब परीक्षा का महत्व ही कम होता जा रहा है तब पेपर लीक होने को अपराध मानने का कानून किस काम का? जब शिक्षा रोजगार के लिए ही हो गई तथा नकल करने की सुविधा धीरे-धीरे दी जाने लग गई है तब पेपर के मामले में इतनी सख्ती क्यों होना चाहिए?

सुरेश शर्मा, भोपाल। जब परीक्षा का महत्व ही कम होता जा रहा है तब पेपर लीक होने को अपराध मानने का कानून किस काम का? जब शिक्षा रोजगार के लिए ही हो गई तथा नकल करने की सुविधा धीरे-धीरे दी जाने लग गई है तब पेपर के मामले में इतनी सख्ती क्यों होना चाहिए? यह सवाल आज के तकनीक युग में उछलना स्वभाविक है। सरकार एक तरफ डिजीटल प्रयास कर रही है वहीं दूसरी तरफ उसी डिजीटल को संभालने के लिए कानून बना रही है। अब तो समय यह आना चाहिए कि परीक्षा को ओपन कर देना चाहिए। जिस छात्र में ज्यादा ज्ञान है कौशल है उसे अगली क्लास में भेज देना चाहिए। यह भी हो कि अगली कक्षा में एक ही साल मे जाने देना चाहिए लेकिन यह हो कि उसकी श्रेणी कैम्पस सलेक्शन करने वालों को बता देना चाहिए। उसको जिस काम के लायक समझा जायेगा उसे ले लिया जायेगा। इसलिए अब परीक्षा की व्यवस्था को बदलने के प्रयास करना चाहिए। हालांकि यह बात अभी समझ मे नही आयेगी क्योकि जब शिक्षा का इतना कबाड़ा कर ही दिया गया है तब कुछ और कबाड़ा सही। हमारी पुरानी शिक्षा प्रणाली में गुरूकुल हुआ करते थे। उनके अपने सिद्धान्त थे। शिक्षा सबके लिए होती थी। उनको संस्कार दिये जाने थे और सभी विधाओं में निपुण किया जाता था। सब अपने-अपने आधार पर रोजगार तलाश लेते थे।

अब शिक्षा से संस्कार गायब हो गये। पढ़कर व्यक्ति विनम्र नहीं होता। विद्या ददाति विनयम यह मूल चरित्र गायब हो गया और नारा शेष रह गया है। हमने भारत के आधार पर शिक्षा देने की बजाए विदेशों को ध्यान में रखकर शिक्षा देने का काम शुरू कर दिया है। अंग्रेजी का चलन बढ़ रहा है हिंदी का स्थान दोयम हो गया है। अधिक समय हिंदी काम आती है अंग्रेजी तो कम से कम काम आती है। केवल प्रभाव दिखाने की भाषा हो गई है अंग्रेजी और कामकाज की भाषा हिंदी है। लेकिन उसे दोदम मानकर चलने का प्रयास हो रहा है। संस्कृत हमारे देश की मूल भाषा है। इसमे लिखे ग्रंथों को आजादी के बाद दोयम कर दिया गया। जबकि इसमें अविष्कार के सूत्र दिये गये हैं। जिस प्रकार का वर्णन इनमें है यदि उस पर शोध शुरू कर दिये जायेगे तब हम विश्व को दिशा देने की स्थिति में आ जायेंगे। हम इसरो के माध्यम से विश्व की अगुवाई के लिए तो पहले से ही खड़े दिखाई देने लग गये हैं। इसलिए भाषा और संस्कार की वापसी ही भारत की ताकत बन पायेगी।

इस समय परीक्षा को लेकर विभिन्न विचार आने लग गये हैं। परीक्षा की परिभाषा ही बदल रही है। उसको सरल बनाने पर काम हो रहा है। किताब खोलकर उत्तर देने का प्रावधान हो रहा है। शार्ट सवाल हो रहे हैं जिनका हां या ना में जवाब मांगा जा रहा है। बिना परीक्षा पास किये अगली कक्षा मे भेजने का अवसर दिया जा रहा है। ऐसी स्थिति मे पेपर लीक को इतना बड़ा अपराध क्यों माना जाये? इसलिए सरकार को चाहिए कि अनुमान लगाने के कौशल का उपयोग की छूट दे देना चाहिए। इससे लोगों को रोजगार के अवसर मिलेगे। छात्रों के भविष्य की परवाह जब अभी नही है तो आगे और कुछ समय ऐसा चलता रहेगा तो कौन सा पहाड़ टूट जायेगा

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