सत्यपाल मलिक से बंधी आस तो विपक्ष आया साथ

संगीन आरोपों पर अविश्वास की छाया

सुरेश शर्मा। जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल लगातार सुर्खियों में बने रहते हैं। सबसे पहले उन्होंने किसान आन्दोलन में सरकार का विरोध किया था। जिस सरकार उन्हें राज्यपाल बनाया उसी के विरोध में और आन्दोलन के पक्ष में खडे रहे। इसके बाद 300 करोड़ की रिश्वत देने की सनसनी उन्होंने पैदा की और भ्रष्टाचार में केन्द्र सरकार के द्वारा आदेश देने का मामला उछाल दिया। सरकार ने इस मामले को सीबीआई को देकर सच सामने लाने का ऐलान कर दिया। सरकार की नीति है कि भ्रष्टाचार मामले में जीरो टालरेंस अपनाया जाये। इन दिनों नया लेकिन बहुत ही संगीन मामला उन्होंने उछाला है कि पुलवामा के जवानों के लिए हवाई सुविधा मांगी गई थी लेकिन केन्द्र सरकार ने उपलब्ध नहीं कराई जिससे हमारे 40 जवान शहीद हो गये। सरकार की ओर से अभी इतना ही कहा गया है कि ऐसा था तब सरकार का हिस्सा रहते हुए इस प्रकार की बात क्यों नहीं कही गई? फिर आरोप संगीन हैं। आरोप न केवल गम्भीर हैं अपितु देशहित से भी जुड़े हैं इसलिए इन पर प्रतिक्रिया होना स्वभाविक है। विपक्षी दलों को इन आरोपों में कोई दम दिखाई दिया हो या न दिया हो मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करने वाले किसी भी विषय पर विपक्ष आंख बंद करके खड़ा हो जाता है इसलिए वह तो साथ आ गया। अब बारी जनता की है उसे अपनी प्रतिक्रिया देना है लेकिन तीन-तीन गंभीर आरोपों के बाद भी वह चुपी लगाये हैं। यूं भी कह सकते हैं कि वह अभी विश्वास नहीं कर पा रही है। सर्जिकल स्ट्राइक की अनुमति देने वाली सरकार भला ऐसा क्यों करेगी? भ्रष्टाचार को लेकर कठोर रहने वाली सरकार दो फाइलों पर करोड़ों देने वाले का समर्थन करेंगी? तत्काल भरोसा संभव नहीं है। बची बात सीबीआई पूरा कर देगी वह जांच कर रही है।

कितना गंभीर विषय है कि जवानों को हवाई जहाज उपलब्ध नहीं कराये गये इसलिए उन्हें आतंकवादियों के हाथों शहीद होना पड़ा। इसलिए केन्द्रीय गृह मंत्रालाय पर सत्यपाल मलिक ने गंभीर आरोप लगाये हैं। इन आरोपों को विपक्ष ने भी हवा दी और मोदी विरोधी मीडिया और यूटयूबर ने भी इसे उछालने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यदि आतंकवादियों के डर से सेना को हवाई जहाज से ले जाना पड़े तब आतंकवादियों से लड़ेगा कौन? वह सेना है उसका काम ही देश समाज के शत्रुओं से लड़ना है उसे परदे में रखकर ले जाने का काम शुरू हो गया तो देश की सुरक्षा कौन करेगा? इसलिए सत्यपाल मलिक की बात मानवता के हिसाब से सहानुभूति पैदा करने वाली है सेना के हिसाब से उसकी कमजोरी बताने वाली है। भारत की सेना कमजोर न होकर किसी भी परिस्थिति से निपटने की क्षमता रखने वाली है। गलवान घाटी की बात हो या फिर अरूणाचल में हुई वारदात की बात है मलिक होते तो कह देते कि सेना को ऐसे खुले में क्यों छोड़ दिया गया उसे पहियों वाले बैरिकेट में क्यों नहीं चलाया गया यह तो सरकार की गलती है। समझने की जरूरत है।

सत्यपाल मलिक जिम्मेदारी के आरोप गैर जिम्मेदारी से लगा रहे हैं। सेना के मामले में इस प्रकार की बेतुकी बातें करके सेना का ही अपमान किया जा रहा है। क्या मलिक और अन्य राजनीतिक कार्यकर्ता सेना को घुंघट में लाना चाहते हैं। जो सेना दुश्मन देश के छक्के छुड़ाने की ताकत रखती है उसे आतंकवादियों की धमकी के बाद गुपचुप तरीके से ले जाना चाहिए था? यह बात कहने में सहानुभूति जनक लगती है लेकिन भारतीय सेना के जवानों को सहानुभूति की जतरूरत नहीं है। मलिक सबसे पहले सरकार के खिलाफ किसान आन्दोलन पर मुखर हुए थे। उन्होंने इस समय सरकार से भागीदारी खत्म नहीं की। इसलिए उनका किसान नेता होने के कारण किसान और सरकार के बीच सेतु की भूमिका निभाना थी लेकिन उन्होंने किसानों को भड़काने का काम किया जो टूलकिट वाले और भारतीय विपक्ष कर रहा था। किसानों को कानून से क्या समस्या है उसका समाधान कराकर कानूनों को अधिक किसान हितैषी बनवाने की भूमिका अदा करना चाहिए थी लेकिन ऐसा करने की बजाए किसानों से सहानुभूति की राजनीति कर गये। इसे किसान हितैषी कैसे कहा जा सकता है? मलिक के सरकार का हिस्सा होते हुए भी किसान इतने लम्बे आन्दोलन के बाद भी खाली हाथ घर वापस आये। आन्दोलन दिशाहीन था इसलिए अपने कुछ साथी खोकर आज किसान चुप बैठा है।

जम्मू कश्मीर का राज्यपाल रहते दो फाइलों पर हस्ताक्षर करके लिए उन्हें 300 करोड़ की रिश्वत देने का आरोप भी उन्होंने लगाया था। इसमें एक संघ के पुराने साथी का उल्लेख किया गया था। हालांकि इतना तो हुआ कि जिन संघ से आये भाजपा नेता का उल्लेख किया गया था उन्हें भाजपा से वापस संघ में भेज दिया गया और वहां भी वे परदे के पीछे ही रह रहे हैं। इस मामले की सीबीआई से जांच कराने का आदेश सरकार ने दे दिया था। इसी मामले में मलिक को बुलाया जा रहा है। वे इस आरोप की पुष्टि करने की बजाए किसान नेताओं के आंचल का सहारा ले रहे हैं। जब किसान नेताओं का आंचल हवा से उड़ रहा है तब से सहानुभूति का कार्ड खेल रहे हैं। सीबीआई के पास तो जायेंगे नहीं लेकिन थाने में जाकर धरना देने का प्रयास कर रहे हैं। यह वह राजनीति है जिससे अपनी जांघ को उघड़ने से बचाने के लिए कई जांघों को नंगा करने से परहेज नहीं किया जाता है। सत्यपाल मलिक की बातों को विपक्षी नेताओं ने अपने लिए मुफीद समझा है। वे इसके समर्थन में आ रहे हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे किसान आन्दोलन में आये थे। वे तथ्यों पर बहस नहीं कर रहे हैं बल्कि सनसनी पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं।

विपक्ष भ्रष्टाचार के आरोपों और कार्यवाही से परेशान है। कांग्रेस हो केजरीवाल हर एक लाइन के बाद यही शब्द निकलता है कि केन्द्र सरकार भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी है? लेकिन विपक्ष का कोई भी नेता किसी भी मंत्री के खिलाफ कोई आरोप लगाने का साहस नहीं जुटा पाया है। केजरीवाल भी विधानसभा के नियमों की आड़ लेकर आरोप लगाते हैं और उसका सीधा प्रसारण का विज्ञापन देकर जनता में उस विषय की अवधारणा बनाने का प्रयास कर रहे हैं। आप के सभी नेताओं को शराब नीति घोटाले में लाकर सीबीआई और ईडी ने बता दिया कि राजनीति का शुद्धिकरण करने आये ये लोग किस स्थिति में पहुंच गये हैं। मीडिया क्षेत्र से विस्थापित कुछ पुराने पत्रकार भोजन के हर निवाले के साथ मोदी की आलोचनाओं का स्वाद मिलाते हैं। वे अपनी वाक्यकला से वह दिखाने का प्रयास करते हैं जिसे करते-करते उनकी यह हाल हुआ है। लेकिन इतना सब प्रयास भी वर्तमान सरकार के बारे में बने नैरेटिव को बदल नहीं पा रहा है। देश की अधिकांश जनता तो इस पर पहले झटके में ही विश्वास करने को तैयार नहीं है। जिनका मानस ही राजनीतिक रूप से मोदी व भाजपा विरोधी है उनकी बात करने का कोई मतलब नहीं है। क्योंकि वे तो ऐसा ही बोलेंगे जो उनका धर्म है। इसलिए सत्यपाल मलिक जिस प्रकार की राजनीति कर रहे हैं वे उन्हें चर्चा तो दिला सकती है। किसान नेता और चरण सिंह के साथी रहे हैं इसलिए उन्हें किसान नेताओं का साथ भी मिल सकता है लेकिन उनके आरोपों को पंख तो तभी लग सकते हैं जब उनमें सत्यता हो और जनता उन पर विश्वास कर ले। विपक्षी नेताओं का मोहरा बनने का अधिक लाभ उन्हें मिलने वाला नहीं हैं। मोदी सरकार ने केवल एक प्रतिक्रिया दी है यदि इन बातों में दम था तब सरकार का हिस्सा रहते उन्हें क्यों नहीं उठाया गया?

सरकार किसान का सम्मान करती है यह आन्दोलन के समय और बाद में सिद्ध हो गया था। इसी सम्मान की आड़ लेकर मलिक राजनीति खेल रहे हैं। राजनीति का जवाब चुप रह कर देने की रणनीति में सरकार किसान की मर्यादा का पूरा ख्याल रख रही है। अब किसान नेताओं को भी इस बात का ख्याल रखने की जरूरत है कि वह सरकार के साथ कैसा व्यवहार करे। लेकिन अमित शाह की प्रतिक्रिया से यह मान लेना चाहिए कि मलिक सरकार की प्राथमिकता में तो आ ही गये हैं।

संवाद इंडिया

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