‘राजाधिराज’ को ही पाती लिख डाली तेरा राज ‘भ्रष्ट’
सुरेश शर्मा, भोपाल। पिछले समय मध्यप्रदेश की केबीनेट की बैठक उज्जैन में आयोजित की गई थी। उसकी अध्यक्षता राजाधिराज महाकाल महाराज ने की थी। इन दिनों खुद राजाधिराज अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए खुद निकल रहे हैं। महाकाल लोक का शुभारंभ करने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आये थे तब उन्होंने भी अपनी सरकार को राजाधिराज की सरकार बताया था। ऐसे में इन दिनों खुद को आदर्श हिन्दू और सबसे बड़ा हनुमान भक्त बताने में लगे पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने महाराजाधिराज के दरबार में एक पाती लगाकर कथित पचास प्रतिशत कमीशन वाली सरकार को हटाने का आग्रह कर आये। यह आस्था का मामला है। यदि किसी सरकार को हटाना है तब मतदाताओं से अपील करना होता है। उनके सामने जाकर अपनी सरकार बनने के कारण बता कर उत्साह पैदा करना होता है। महाकाल महाराज से प्रदेश की सरकार की केबिनेट की बैठक की अध्यक्षता पहले ही शिवराज सिंह चौहान करवा चुके हैं। ऐसे में महाकाल की ही सरकार को उनके सामने ही लिखित में भ्रष्ट बताने की अर्जी आखिर कमलनाथ क्यों लगाकर आये है? अब इसका प्रचार भी किया जा रहा है। एक और प्रमाण है। अभी तक एक भी सिंहस्थ कांग्रेस की सरकार के समय आयोजित नहीं हुआ है ऐसे में अब कमलनाथ का यह खत क्या गुल खिलायेगा देखने वाली बात है?
प्रदेश की राजनीति में 50 प्रतिशत कमीशन का नेरेटिव सेट करने का प्रयास किया जा रहा है। राहुल को छोडक़र नई टीम ने इसके लिए एकदम से प्रयास किये। मानो कोई आक्रमण हो। ठेकेदारों के एक संगठन के नाम से चि_ी साथ में नत्थी की गई। उसमें कमीशन का उल्लेख दिखाया हुआ है। धड़ाधड़ टवीट हुए। मीडिया में हलचल मच गई। कर्नाटक का चलीस प्रतिशत था मध्यप्रदेश में और दस प्रतिशत अधिक कमीशन है। सरकार के प्रवक्ता डा. नरोत्तम मिश्रा के यहां मीडिया सवाल लेकर आ धमका। उत्तर मिला कहां का है यह ठेकेदारों वाला संगठन? कौन है जिसका अध्यक्ष के रूप में उल्लेख किया गया है। पता चला पता फर्जी है। इस नाम का व्यक्ति कोसों दूर भी नहीं रहता। इस नाम को कोई दूसरा ठेकेदार भी नहीं जानता। सरकार की ओर से शाम तक बता दिया गया कि यह पत्र फर्जी है। इसे खुद ही तैयार किया गया है। योजनाबद्ध तरीके से एक के बाद एक टवीट हुए हैं। जनता में बाजी पलट गई। सरकार और सख्त हुई और चालीस से अधिक एफआईआर करा दी गई। एक ही भाषा एक ही मजमून। ऐसे में कोई दूसरा विकल्प नहीं था बाबा के दरबार के अलावा?
यह दूसरी चूक हो गई। बाबा की सरकार ही भ्रष्ट है यह बाबा को बता दिया गया। वह भी लिखित में। यही राजनीति उस समय की गई थी जब जाम सांवली में हनुमान जी को अंडा युक्त केक चढ़ाना बताया था। हनुमान जी महाराज ने बीसियों बरस से सरकार के दर्शन नहीं होने दिये। अब तो सीधे कालो के काल महाकाल को चुनौती दी गई है। न जाने आने वाले समय में क्या होने वाला है? उस समय कांग्रेस को मात्र 38 सीट मिल पाई थी। 2023 में कितनी मिलेंगी अनुमान नहीं लगाया जा सकता है?
राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा सबसे अधिक चल रही है कि आखिर कमलनाथ भाजपा के तौर तरीकों की ओर इतना अधिक क्यों घुस रहे हैं? हिन्दूत्व की राजनीति भाजपा ने की और कांग्रेस का रास्ता सर्वधर्म समभाव का रहता था। हालांकि एंटोनी कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि बहुसंख्यक समाज की ज्यादा अनदेखी को भाजपा ने तुष्टिकरण सिद्ध करने में कामयाबी पा ली थी। फिर भी पूरी तौर पर भाजपा के तौर तरीकों को अपनाने का मतलब तो यह हुआ कव्वा चला हंस की चाल और अपनी चाल भी भूला..? राजनीति का एक सूत्र समझने की जरूरत है। कमलनाथ जब प्रदेश में फ्रेस पीस थे और उनके साथ किसान कर्जमाफी का चतकदार नारा था तब भी वे स्पष्ट बहुमत नहीं ले पाये थे अब तो आजमाया हुआ चेहरा और कर्जमाफी को लेकर भांति के आरोप हैं। ऐसे में उनके भाजपा की विचारधारा के अनुसार राजनीति करने को क्या माना जाये? वे अपनी सरकार बनाने का प्रयास कर रहे हैं या भाजपा के खेल में शामिल हैं? उस स्थिति में यह आशंका होगी ही जब गोवा में कम सीटों पर सरकार कांग्रेस से भाजपा छीन लेती है और मध्यप्रदेश में हंग विधानसभा के होते हुए भी कमलनाथ को पूर्व मुख्यमंत्री बनने का मौका मिल जाता है। आखिर आज की भाजपा के दोनों गुजराती बंधु इतने दयालु क्यों हो गये? यहां शिवराज फैक्टर होता तो सरकार गिरने वे मुख्यमंत्री नहीं बनते…?