भारतीय राजनीति में गिरावट का नया इतिहास मोदी जहरीले और सोनिया विष कन्या

एक तरफ हम कहते हैं कि भारतीय लोकतंत्र परिपक्वय हो गया है। मतदाता को यह समझ में आने लग गया है कि देश के हित में किस पार्टी को सत्ता देना है और प्रदेश हित में किसको। कई बार ऐसा होता है कि राज्य किसी और दल को मिल

सुरेश शर्मा, भोपाल। एक तरफ हम कहते हैं कि भारतीय लोकतंत्र परिपक्वय हो गया है। मतदाता को यह समझ में आने लग गया है कि देश के हित में किस पार्टी को सत्ता देना है और प्रदेश हित में किसको। कई बार ऐसा होता है कि राज्य किसी और दल को मिल जाता है लेकिन लोकसभा में उसे एक भी सीट नहीं मिलती। तब क्या मतदाता जितना समझदार हो रहा है राजनीतिक नेता भी उतने ही समझदार और परिपक्वय होते जो रहे हैं? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि देश पर सबसे अधिक समय तक राज करने वाली कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन ाडग़े अपने ही राज्य कर्नाटक में चुनाव प्रचार के दौरान बहक गये। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर जिस भाषा का उपयोग किया उसने उन्हें खुद को भी शर्मसार कर दिया। लेकिन बदले में कर्नाटक के भाजपा विधायक ने कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी पर और गैर जि मदाराना भाषण दे दिया। मतलब कांग्रेस अध्यक्ष प्रधानमंत्री को जहरीला सांप कहते हैं तो भाजपा विधायक सोनिया गांधी को विष कन्या? क्या राजनीति की इस गिरावट को रोकने के लिए आगे आने वाला कोई नेता शेष नहीं बचा?

अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे। उनकी सरकार एक वोट से गिर गई थी। यह अनैतिकता थी, क्योंकि सांसद गिरधर गोमांग को कर्नाटक का सीएम बना दिया गया था। वे वोट डालने सदन में आये। इस प्रकार सरकार गिर गई। लेकिन अटल जी का उस दिन दिया गया भाषण ऐतिहासिक था। आज भी सुन कर लगता है लोकतंत्र कैसा हो इसकी कल्पना पुराने नेताओं ने क्या की थी? उन्होंने नेहरू जी पर की गई अपनी टिप्पणी का जिक्र किया और सदन के बाहर नेहरू जी की प्रतिक्रिया का भी उल्लेख किया। साथ में यह भी कह दिया कि आज किसी नेता के बारे में ऐसा टिप्पणी करना मतलब दुश्मनी को आमंत्रण दे देना होता है। यह संदेश आज के सभी नेताओं को समझने की जरूरत है।

आज ऐसे नेता कहां से लायें? जब देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष खुद ही प्रधानमंत्री का स मान नहीं करेंगे तब उनकी नेता का सम्मान कैसे बचाया जा सकता है? यह राजनीति का संक्रमण काल है। जिस विराट व्यक्तित्व के लोग देश की कमान संभाला करते थे। जिस प्रकार के लोग विरोधी दलों में होते थे। आज सभी तरफ गिरावट दिखाई देती है। राजनीति में दुश्मनी का दौर है। भाषण का स्तर देखिए जब सबसे पुरानी पार्टी का नेता खुद ही विवादित भाषण की शुरूआत करता है तब छुटभैया नेताओं की जुबान को कौन पकड़ेगा? एक मीडिया संस्थान की पत्रकार को उमा भारती ने फटकार लगा दी थी कि वर्षों की तपस्या के बाद जनाधार वाले नेता बनते हैं और पत्रकार अपने सवाल में उसको एक मिनिट में नकारा सिद्ध कर देता है। जबकि उस पत्रकार का कोई ल बा अनुभव नहीं होता। ऐसे में भाषा का स्तर बनाने के लिए कौन सामने आया? मतलब मीडिया भी नहीं। नेताओं का जनाधार कितना कमजोर हो गया कि आपसी आरोपों को मानहानि मानकर न्यायालय की शरण में जा रहे हैं जबकि पहले जनता की अदालत में बात रखी जाती थी और जनता जनादेश देती थी। उसे सभी स्वीकार करते थे। आज जनादेश किसी को दिया जाता है और सरकार कोई और बना भगता है।

मल्लिकार्जुन खडगे हैं तो कांग्रेस के अखिल भारतीय अध्यक्ष लेकिन आते कर्नाटक से हैं। जहां इस समय विधानसभा के चुनाव चल रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री के बारे में अमर्यादित टिप्पणी की। कनार्टक के भाजपा विधायक बासनगौड़ा ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने कोप्पल की सभा में श्रीमती सोनिया गांधी को विष कन्या कह दिया। उनका मन नहीं भरा और उन्हें चीन और पाकिस्तान का एजेंट भी कह दिया। भाषा की गिरावट और आरोपों का स्तर बहुत नीचे चला गया। ऐसा नहीं है कि यह इस प्रकार की भाषा की शुरूआत है। श्रीमती सोनिया गांधी ने मोदी को मु यमंत्री रहते मौत का सौदागर कहा था जबकि सोनिया गांधी के लिए भी कई भाजपा नेताओं ने अर्यादित भाषा में बोला है। मणिशंकर अय्यर, दिग्विजय सिंह और कई और नेताओं ने भी राजनीति में भाषा की मर्यादा नहीं रखी है। ऐसे भाजपा के कई नेता हैं।

क्या भारत के लोकतंत्र के इस शुद्धिकरण अभियान को जनता के बीच ले जाने की जरूरत है? क्या कोई राजनेता अनुपम उदाहरण पेश करते हुए आगे आकर इस भाषा की गंदगी का स्वच्छता अभियान शुरू करेगा? इस प्रकार के अनेकों सवाल भारतीय लोकतंत्र की रक्षा के लिए उठ रहे हैं। जिनका जवाब तलाशने की जरूरत है।

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