रेशमी शहर से हर साल 350 करोड़ जा रहे एमपी-छत्तीसगढ़ व झारखंड, कब खुलेगा कोकून बैंक?

भागलपुर
रेशमी शहर के नाम से देश भर में प्रसिद्ध भागलपुर में रेशम और कॉटन के कपड़े बड़े पैमाने पर तैयार किये जाते हैं। इसके लिए बड़ी मात्रा में बुनकरों को कोकून की जरूरत होती है। भागलपुर में कोकून बैंक नहीं होने के कारण भागलपुर के बुनकरों का सालाना करीब 350 करोड़ रुपया मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ और झारखंड चला जा रहा है। दूसरे प्रदेशों से कोकून खरीदने के कारण कपड़ा महंगा होता है, जबकि बुनकरों का मुनाफा कम हो जाता है। इससे परेशान बुनकर लंबे समय से कोकून बैंक की मांग कर रहे हैं। लेकिन इस दिशा में अबतक कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया जा सका है। बता दें कि यहां केंद्रीय रेशम बोर्ड द्वारा चार करोड़ की लागत से कोकून बैंक खोलने का पूर्व से ही प्रस्ताव है। बैंक खुल जाने से भागलपुर व आसपास के बुनकरों को दूसरे राज्यों पर कोकून के लिए आश्रित नहीं रहना पड़ेगा।

धागा के अभाव में अधिक मात्रा में नहीं बन पा रहे कपड़े

बिहार बुनकर कल्याण समिति के पूर्व सदस्य अलीम अंसारी ने बताया कि कोकून बैंक नहीं खुलने से भागलपुर के बुनकरों का सालाना 350 करोड़ रुपये छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश व झारखंड चला जा रहा है। रेशमी नगर में प्रचुर मात्रा में सिल्क व कॉटन के कपड़े तैयार किये जाते हैं। बुनकरों को बड़ी संख्या में कोकून इन राज्यों से खरीदना पड़ता है। हाल के समय में भागलपुर में कोकून संकट काफी गहरा गया है। छत्तीसगढ़ व झारखंड से भी इसकी आपूर्ति कम हो गयी है। वहां के बुनकर अब खुद कपड़े तैयार करने लगे हैं। ऐसी स्थिति में बुनकरों की मांग के अनुसार कोकून उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। धागे के अभाव में अधिक मात्रा में कपड़े नहीं बन पा रहे हैं।

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