‘मोदी’ सरकार किसानों के साथ आन्दोलन ‘पंजाब’ में

किसान आन्दोलन एक बार फिर से शुरू हुआ है। अभी आन्दोलनकारी दिल्ली पहुंचने का संघर्ष कर रहे हैं। सरकार को पिछली बार खट्टा अनुभव है क्योंकि किसानों ने सरकार के भरोसे पर चोट पहुंचाई थी। इसलिए इस बार किसान का पूरा सम्मान लेकिन सरकार अपना काम करेगी। सरकार का जवाबदेही आम आदमी की सुरक्षा और सुविधा पहुंचाने की भी है।

सुरेश शर्मा, भोपाल। किसान आन्दोलन एक बार फिर से शुरू हुआ है। अभी आन्दोलनकारी दिल्ली पहुंचने का संघर्ष कर रहे हैं। सरकार को पिछली बार खट्टा अनुभव है क्योंकि किसानों ने सरकार के भरोसे पर चोट पहुंचाई थी। इसलिए इस बार किसान का पूरा सम्मान लेकिन सरकार अपना काम करेगी। सरकार का जवाबदेही आम आदमी की सुरक्षा और सुविधा पहुंचाने की भी है। इसलिए पंजाब का आन्दोलन पंजाब में ही समेट दिया गया। यदि पंजाब की आप सरकार किसानों को आन्दोलन के लिए उकसाती है तब उनके आक्रोश को भी उसे ही भुगतना चाहिए। यही कारण है कि हरियाणा सरकार ने पहले दिन ही सख्ती कर दी। केन्द्र सरकार ने किसानों को पूरा सम्मान दिया है। अभी तक तीन दौर की बात हो चुकी है। अनेकों मांगों पर सहमति बनने की बात भी सामने आ रही है। सरकार की किसानों से अपील है कि आन्दोलन पर अपना नियंत्रण रखें ताकि जनमानस को परेशानी न हो लेकिन आगे नहीं बढऩे दिया जायेगा? किसान एक बार फिर से मोहरा बन गये। क्योंकि मोदी सरकार ने किसानों का हित समझ कर कानून बनाये थे जिसे किसानों ने काला कानून बताते हुए बिना विकल्प दिये निरस्त करवा दिये। अब किसान सुझाव दे लेकिन वह तो एमएसपी पर कानून बनाने की मांग कर रहा है जिसके बारे में सरकार ने साफ कर दिया है और जानकारों के अभिमत भी बता दिये।

केन्द्र सरकार की सफलता यह है कि आन्दोलन को पंजाब में ही रोक दिया। अब रेल रोकेंगे तो पंजाब में, पटरी उखाड़ेंगे तो पंजाब में, आवाजाही रूकेगी तब भी पंजाब की। इसलिए पंजाब की सरकार चर्चा में शामिल हो गई। राजनीति उसी के गले पड़ गई। पिछली बार कांग्रेस ने भूमिका निभाई थी साफ हो गई और इस बार आप की भूमिका है देखते हैं चुनाव के बाद। एक बात और यह परिभाषा बदलने का दौर है। जब नौकरी करते थे तब कहा जाता था कि आपका नमक खा रहे हैं नमक हरामी मतलब धोखा नहीं देंगे लेकिन आज परिभाषा बदल गई और श्रम बेचते हैं बदले में धन लेते हैं। कौशल बेचते हैं बदले में कीमत लेते हैं। इसलिए किसान की अन्नदाता वाली भूमिका तभी खत्म हो जाती है जब वह अपने उत्पाद के लिए सरकार से मोलभाव करता है। इसलिए सरकार ने भी जता दिया किसान के नाते चर्चा के लिए पलक पावडे बिछा रहे हैं लेकिन आन्दोलनकारियों के साथ वैसा ही व्यवहार होगा जैसा होता आया है। इसलिए कोई गलतफहमी नहीं रहना।

किसान को एमएसपी के मामले में समझना होगा और गुमराह होने से बचाना होगा। एमएसपी किसान को बाजार से बचाने का रास्ता था, संरक्षण था उसे बाजार के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। इसलिए यह कानून बनाना थोड़ा कठिन काम है। इसके दो ही रास्ते हैं या तो किसान व कृषि विशेषज्ञ सरकार को रास्ता बता दें या फिर सरकार को भविष्य के प्रतिफल को समझ लेने के लिए समय दे दें। यदि राजनीति नहीं करेंगे तो अन्नदाता और करेंगे तो राजनेता। तब सरकार का सामना भी करना ही होगा। किसानों को एक बात और समझना चाहिए मोदी सरकार के कामों में उसे कब ऐसा लगा कि यह सरकार सभी पक्षों के लिए कहीं भी बिना रणनीति और विजन के काम कर रही है। इसके कितने ही उदाहरण दिये जा सकते हैं। फिर भी यह तो मानना ही होगा जब मोदी सरकार तीसरी अर्थव्यवस्था बनाने की बात कह रही है तब इसमें कृषि की कितना भूमिका होगी इसका आंकलन तो करना ही होगा। इस अर्थव्यवस्था के लक्ष्य कर रास्ता कृषि से होकर ही गुजरता है। इसलिए आन्दोलन की बजाए साथ देने का समय है।

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