केजरीवाल, सिसोदिया सहित दिग्गजों की हार के अपने मायने….दिल्ली में भाजपा की जीत के संदेश

दिल्ली विधानसभा के चुनाव संपन्न हो गये। वहां आम आदमी पार्टी की अपने दम वाली सरकार तीसरी बार नहीं बन पाई? आप ने पहली बार कांग्रेस को हराकर कांग्रेस के साथ ही मिलकर सरकार बनाई थी। उसके बाद 2015 और 2020 में एक तरफा विधायक जीता कर सरकार बनाई।

सुरेश शर्मा, भोपाल।

विधानसभा के चुनाव संपन्न हो गये। वहां आम आदमी पार्टी की अपने दम वाली सरकार तीसरी बार नहीं बन पाई? आप ने पहली बार कांग्रेस को हराकर कांग्रेस के साथ ही मिलकर सरकार बनाई थी। उसके बाद 2015 और 2020 में एक तरफा विधायक जीता कर सरकार बनाई। यह किसी भी राजनीतिक दल के लिए इतिहास है कि उसने गठन के बाद सरकार बनाई और वह भी उस समय जब देश में मोदी का जादम चरम पर था। अगली बार भी आप ने उसी परिस्थितियों में सरकार बनाई जब मोदी पहले से अधिक बहुमत के साथ केन्द्र की सरकार में लौटे थे? दिल्ली के सभी सात सांसद जीतने के बाद भी विधानसभा में विधायक दहाई में नहीं पहुंच पाये थे? अबकी बार लड़ाई कांटे की भी थी और नाक की भी। इस बार केजरीवाल को पटकनी दे दी गई। केजरीवाल और पार्टी के दूसरे दिग्गज चुनाव हार गये। पार्टी को महज 22 विधायक मिले। जिस दिल्ली से आप ने उदभव देखा था उसी दिल्ली ने मन से उतार दिया और आप की सरकार भाजपा के हाथों में दे दी। अब यहां डबल इंजन की सरकार बनने जा रही है। मतदाता के हिसाब से देखा जाये तो भाजपा को और आप के बीच दो प्रतिशत और दो लाख वोटों का ही अन्तर है। इसके बाद भी सीटें का अन्तर दो गुणा हो गया। सभी सीटों की जीत का अन्तर अच्छा रहा जिससे यह सब गणित बना। लेकिन दिल्ली में भाजपा की 27 साल के बाद फिर से सरकार बनने का अपना मायने है। अब देश में टकराव की राजनीति नहीं समन्वय की राजनीति शुरू होगी। दलीय टकराव और सरकारों के बीच टकराव का खामियाजा जनता को भुगतना होता है। केजरीवाल का यही व्यवहार दिल्ली के मतदाता को प्रभािवत करने लग गया था। मोदी का चेहरा, भाजपा का संगठन और संघ का साथ ऐसे परिणाम लाने में कामयाब रहा। आप की हार की उम्मीद तो सर्वे बताने लग गये थे लेकिन चौंकाने वाली बात खुद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया का हार जाना रहा। यह आने वाली राजनीति की नई पटकथा है। भाजपा की इस जीत के भी मायने हैं।

सबसे पहले चुनावी समीकरण की बात कर लेते हैं। दिल्ली के चुनाव परिणाम बताते हैं कि भाजपा 48 सीटों के साथ दो तिहाई बहुमत लेकर सरकार में लौट रही है। जबकि दो बार का ऐतिहासिक व प्रचंड समर्थन लेकर आप के महज 22 विधायक ही सदन में पहुंच पा रहे हैं। दूसरी तरफ जनादेश वाला पक्ष देखते हैं तब आप भाजपा को बराबर टक्कर देती दिखाई दे रही है। भाजपा को 45.56 प्रतिशत और 43 लाख 23 हजार 110 वोट मिले हैं। वहीं आप को 43.57 प्रतिशत और 41 लाख 33 हजार 898 वोट मिले हैं। दोनों दलों के बीच 1.99 प्रतिशत और 1 लाख 89 हजार 212 वोटों का अन्तर है। इस प्रकार आप के नेता अपना बचाव कर सकते हैं कि जनता ने उन्हें भी कम वोट नहीं दिये। लेकिन उनके नेतृत्व को अस्वीकार कर दिया। कुछ विधायकों का समर्थन अच्छा रहा जिससे वोटों की संख्या बढ़ गई? केजरीवाल और सिसोदिया को हरा देना अन्य नामचीन नेताओं को चुनाव में सबक सिखा देना और मुख्यमंत्री आतीशी को लगातार पीछे रखकर जीता देना यह प्रमाणित करता है कि आप को दिल्ली ने रिजेक्ट कर दिया। कुछ नेताओं को क्षेत्र के मतदाताओं ने नवाजा इसलिए वोट भी बढ़ और प्रतिशत भी।

दिल्ली में केजरीवाल ने लगातार गलतियां की। उन गलतियों को भाजपा और कांग्रेस ने जनता के सामने पेश कर दिया। जनता ने स्वीकार किया कि केजरीवाल जिस प्रकार की राजनीति कर रहा है वह न तो वैकल्पिक राजनीति नहीं हो सकती है और दिल्ली के हित में ही हो सकती है। इस बात को भी भाजपा और संघ ने मतदाताओं के दिल में उतारने में कामयाबी हािसल की। केन्द्र सरकार के साथ लगातार टकराव, मोदी पर हर असफलता का आरोप लगाना तो केजरीवाल की आदत में शुमार हो गया था ही। चुनाव के समय उन्होंने यमुना में हरियाणा सरकार द्वारा जहर मिला देने का आरोप गंभीर हो गया था। इसकी प्रमािणकता के बारे में भाजपा ने पूछा और चुनाव आयोग ने भी। क्योंकि यह दिल्ली के करोड़ों लोगों के जीवन का सवाल था? आप व विशेष रूप से केजरीवाल ने इसका जवाब चुनाव आयोग पर आरोप लगाने के रूप में दिया। यहां अविश्वास की खाई ने पाखंड का रूप ले लिया। इसमें मास्टी स्ट्रोक हरियाणा के सीएम नायब सिंह सैनी ने दिल्ली से कुछ पहले की जमुना का पानी पीकर लगा दिया। अब लोगों को लग गया कि केजरीवाल वास्तव में आपदा हैं। यहीं से चुनाव उनके हाथ से निकल गया था। इसके अलावा भी अनेकों ऐसी गलतियां हैं जिससे चुनाव में आप की हार की संभावना देखी जाने लगी थी। लेकिन यह घटना वह ट्रर्निंग प्वाइंट है जिससे आप की हार की संभावना बन गई थी। लेकिन इसके बाद भी केजरीवाल चुनाव हार जायेंगे यह संभावना कोई नहीं देख रहा था। नई दिल्ली के मतदाताओं ने केजरीवाल को इतने अन्तर से हरा दिया यह बड़ी बात है।
कांग्रेस ने आप को हराने का काम किया? इस सवाल को राजनीतिक समीक्षा की सुगमता के लिए उठाया जा सकता है। इसे समझने के  पहले यह समझना होगा कि केजरीवाल की हार 4089 वोट से हुई जबकि कांग्रेस के संदीप दीक्षित को 4568 वोट मिले? यह स्वभाविक है कि ऐसा कहा जा सकता है। लेकिन जिन 4568 लोगों ने संदी को वोट दिया वे सभी केजरीवाल की ओर ही शिफ्ट होंगे ऐसा क्यों मान लिया जाये? यदि इनमें से पांच सौ हजार वोट भी प्रवेश को मिल जाते तो भी जीत भाजपा की ही होती? अन्यथा केजरीवाल को महज 479 वोट ही अिधक मिलते? यह समीकरण भी हार के करीब ही है। क्योंकि 240 वोट इधर-उधर हो जाते तब भी परिणाम इधर-उधर हो जाता।

भाजपा ने इस चुनाव में वही रणनीति का इस्तेमाल किया जो वह हरियाणा और महाराष्ट्र में उपयोग कर चुकी है। भाजपा के पास देश भर में संगठन और चुनाव के लिए निपुण कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज है। जनमानस को कैसे बदला जा सकता है इसमें वे पारंगत हैं। एक राज्य के चुनाव में उन सबका उपयोग भाजपा का नेतृत्व कर ता है। संघ से आया संगठन मंत्री इस क्षमता को जानता है और उसे पार्टी का नेतृत्व सलाह देता है। इस प्रकार भाजपा अपने क्षेत्र के हिसाब से समझ रखने और प्रभािवत करने वाले कार्यकर्ता को उस चुनाव क्षेत्र में भेज देती है। वह समय से पहले ही वहां संभावनाओं को देख लेता है और उसके हिसाब से रणनीति बनाई जाती है। इस प्रकार से मतदाता को विश्वास हो जाता है। संगठन की इस क्षमता के बाद नरेन्द्र मोदी को चेहरा और संघ का सकि्रय सहयोग उसके साथ हो जाता है और जीत की संभावना बन जाती है। इस समय एक रणनीति और कारगर हो रही है। मिल्कीपुर में भाजपा की जीत के लिए एक विवाद है कि मुस्लिम महिलाओं के बुर्के उठाकर देखा जा रहा है? आखिर यह क्या है? आसपास की मुस्लिम महिलाएं फर्जी मतदान के लिए चुनाव वाले क्षेत्र में आती हैं और बुर्कें की आड़ में फर्जी मतदाान कर जाती हैं। जब से यूपी सरकार व चुनाव आयोग ने यह सक्ती की है तब से इन चुनाव क्षेत्रों में भी भाजपा की जीत होने लगी है। यही मिल्कीपुर में हुआ और यह गणित फेल होने पर अयोध्या के विजेता रोने लग गये और अखिलेश का पारा भी बढ़ गया।

भाजपा की इस जीत का संदेश क्या है? दिल्ली में केजरीवाल ने जिा वैकल्पिक राजनीति का वादा किया था। वह भ्रष्टाचार की ओर चला गया। गले-गले तक भ्रष्टाचार ने आप के सभी नेताओं को जकड़ लिया और उन्हें जेल भेजने का काम हो गया। इससे मतदाता ने अपना निर्णय आप के विरूद्ध दे दिया। भाजपा ने केजरीवाल को एक्सपोज किया। केन्द्र की सुविधाओं को दिल्ली को भी देने का वादा किया। केजरीवाल की रेवड़ियों को बंद करने या नहीं करने का कोई वादा नहीं किया? साथ में यह कह दिया कि आप सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं को जारी रखा जायेगा? इस प्रकार भाजपा एक और राज्य फतह करने में कामयाबी हासिल की। इस प्रकार भाजपा उत्तर भारत में हिमाचल को छोड़कर सभ्ाी राज्यों पर काबिज हो गई। आिखर भारत का कौन नागरिक होगा जो अपने देश को परम वैभव की ओर जाता नहीं देखना चाहेगा। इस दिशा में मोदी सरकार का विजन और दिशा को कोई चेलेंज नहीं कर पाया है। न ही कोई विकल्प ही दे पाया है। यही कारण है कि कांग्रेस तीसरी बार भी शून्य पर ही रही।

संवाद इंडिया
(लेखक हिन्दी पत्रकारिता फाउंडेशन के चेयरमैन हैं)

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