मप्र का बजट: हवाई वायदों से बचते हुए जमीन पर पाँव टिकाए रखने का प्रयास

म.प्र सरकार ने गत दिवस आगामी वित्तीय वर्ष का जो बजट प्रस्तुत किया वह वर्तमान परिस्थितियों के लिहाज से संतुलित है। बजट में नया कर नहीं लगाए जाने से जहाँ आम जनता ने राहत की सांस ली वहीं कर्मचारी वर्ग के भत्ते एवं पेंशन आदि को लेकर किये गए प्रावधान स्वागत योग्य हैं ।

-रवीन्द्र बाजपेई
म.प्र सरकार ने गत दिवस आगामी वित्तीय वर्ष का जो बजट प्रस्तुत किया वह वर्तमान परिस्थितियों के लिहाज से संतुलित है। बजट में नया कर नहीं लगाए जाने से जहाँ आम जनता ने राहत की सांस ली वहीं कर्मचारी वर्ग के भत्ते एवं पेंशन आदि को लेकर किये गए प्रावधान स्वागत योग्य हैं । किसानों के प्रति भी वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने काफी उदारता दिखाई। बजट के केंद्र बिंदु में धार्मिक पर्यटन, शिक्षा का विस्तार, ढांचागत योजनाओं पर विशेष जोर और छोटे शहरों को विकास की दौड़ में आगे लाना है। हालांकि कल्याणकारी योजनाओं पर किये जाने वाले खर्च की राशि कम नहीं है किंतु लाड़ली बहना जैसी योजना में दी जा रही मासिक राशि को यथावत रखने और भविष्य में उसे बीमा और पेंशन जैसी योजना से संबद्ध करने का प्रावधान मुफ्त में दी जा रही सुविधाओं से अर्थव्यवस्था के साथ ही उत्पादकता पर पड़ रहे दुष्प्रभाव से प्रभावित है। 4 लाख 21 हजार करोड़ का यह अब तक का सबसे बड़ा बजट होने से इस बात का प्रमाण है कि दो दशक पहले तक बीमारू राज्य की श्रेणी में रहने वाले म.प्र ने विकास के रास्ते पर तेज चाल से बढ़ने का आत्मविश्वास अर्जित कर लिया है। राजनीतिक स्थिरता और विकासमूलक सोच के कारण देश के इस हृदय प्रदेश में विकसित होने की महत्वाकांक्षा हिलोरें मारने लगी है। हाल ही में संपन्न वैश्विक निवेशक सम्मेलन मैं आये निवेश प्रस्तावों ने राज्य सरकार का मनोबल और बढ़ाया जिसकी झलक श्री देवड़ा द्वारा प्रस्तुत बजट में स्पष्ट तौर पर दिखाई देती है।

उक्त सम्मेलन में आये निवेश संबंधी अनुबंध यदि तय योजनानुसार कार्य रूप में बदले तो प्रदेश में औद्योगिक क्रांति के साथ ही बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन हो सकेगा। मेडिकल कालेजों में सीटें बढ़ाने और कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए आई. टी. आई खोलने और उनमें उन्नत तकनीक के प्रशिक्षण पर जोर देना सार्थक सोच है। डॉ. मोहन यादव सरकार के इस बजट में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए जो प्रावधान किये गए वे बीते कुछ वर्षों में प्रदेश और देश के कुछ हिस्सों में मिले अनुभवों से प्रभावित हैं। उज्जैन के महाकाल मंदिर परिसर का कायाकल्प किये जाने से वहाँ के पर्यटन में जबरदस्त उछाल आया है। यही अनुभव ओंकारेश्वर में भी किया जा सकता है। काशी विश्वनाथ परिसर से शुरू ये मुहिम राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए तुरुप का पत्ता साबित हुई। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होने के उपरांत उ.प्र के उस पिछड़े क्षेत्र में आर्थिक प्रगति का नया युग प्रारंभ हुआ है। प्रयागराज में मकर संक्रांति से महाशिवरात्रि तक चले महाकुंभ ने धार्मिक पर्यटन में छिपी आर्थिक संभावनाओं को उजागर कर दिया। उससे प्रेरणा लेकर म.प्र सरकार इस दिशा में जो कदम उठा रही है वे व्यवसायिक गतिविधियों के साथ ही रोजगार सृजन में सहायक होंगे ये कहना गलत नहीं होगा। किसी भी बजट की मजबूती आय और व्यय में संतुलन से आँकी जाती है। उस दृष्टि से श्री देवड़ा का बजट बराबरी पर खड़ा है। प्रदेश पर बढ़ता कर्ज भी चिंता का विषय है। ऐसा लगता है इसीलिए वित्त मंत्री ने नई मुफ्त सुविधाओं का ऐलान नहीं किया। लेकिन उसके बाद भी नई सड़कें, हवाई पट्टियां और ऐसे ही अन्य निर्माण किये जाने के प्रावधान अर्थव्यवस्था के गतिशील बने रहने के संकेत हैं। सौभाग्य से म.प्र में अपार वन संपदा है। इसके चलते आधा दर्जन से अधिक राष्ट्रीय उद्यान हैं। इसके अलावा सौंदर्य की नदी के तौर पर प्रतिष्ठित नर्मदा है जिसकी परिक्रमा लाखों श्रद्धालु प्रति वर्ष करते हैं। वाटर स्पोर्ट्स के लिए भी म.प्र धीरे – धीरे विख्यात होता जा रहा है।

सड़कों का जाल बिछ जाने से प्रदेश में परिवहन सुलभ हो गया है। उसे और सुविधाजनक और सस्ता बनाने हेतु राज्य परिवहन को पुनर्जीवित करने का प्रावधान सही कदम है। इससे निजी क्षेत्र की परिवहन सेवा द्वारा की जा रही लूटपाट रुकेगी और प्रतिस्पर्धा के कारण यात्रियों को बेहतर सुविधाएं मिल सकेंगी। प्रदेश सरकार द्वारा आर्थिक संसाधनों की कमी को देखते हुए निजी क्षेत्र के साथ भागीदारी करने की नीति समझदारी भरा निर्णय है। कुल मिलाकर यह बजट हवा – हवाई वायदों से बचते हुए जमीन पर पाँव टिकाए रखने का समुचित प्रयास है। यदि निवेशकों से बेहतर तालमेल बनाकर उनसे मिले प्रस्तावों को मूर्तरूप दिया जा सके और प्रदेश में उपलब्धियों संसाधनों का बुद्धिमत्तापूर्ण दोहन किया जाए तो म.प्र आने वाले कुछ वर्षों में विकसित राज्य की कतार में खड़ा नजर आयेगा। प्रदेश सरकार के इस बजट ने यदि प्रदेश वासियों को कुछ खास नहीं दिया तो उन पर करों का बोझ भी नहीं बढ़ाया। हाँ, एक बात जो अखरती है वह है पेट्रोल – डीजल पर बेतहाशा टैक्स। यदि सरकार इन्हें सस्ता करे तो प्रदेश में इनकी बिक्री बढ़ सकती है जो राजस्व की कमी को पूरा करने में मददगार बनेगी। स्मरणीय है म.प्र में पेट्रोल – डीजल काफी महंगा होने से सीमावर्ती जिलों के लोग पड़ोसी राज्यों में जाकर खरीदी करते हैं, जहाँ दाम अपेक्षाकृत कम हैं।

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