जो कमलनाथ की शक्ति है उसी से खतरा भी

भोपाल, (विशेष प्रतिनिधि)। मध्य प्रदेश की राजनीति में आने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ अपनी कार्यप्रणाली में थोड़ा बहुत बदलाव करने का प्रयास कर रहे हैं।

भोपाल, (विशेष प्रतिनिधि)। मध्य प्रदेश की राजनीति में आने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ अपनी कार्यप्रणाली में थोड़ा बहुत बदलाव करने का प्रयास कर रहे हैं। वह पहले टारगेटेड टिप्पणी करते थे अब जनता में हलचल हो इस प्रकार के शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह उनके अनुभव का परिवर्तन किए जाने वाला प्रमाण है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी में वे सबसे ताकतवर नेता पहले भी थे तथा अब भी वे सबसे ताकतवर है। वे उद्योगपति हैं। धनाढ्य है। सुविधाओं से युक्त है। यही उनकी शक्ति है, यही उनकी कमजोरी भी किस समय बनी हुई है। विवेक तंखा के मुंह से जब यह बात सामने आ गई तब कांग्रेस के भीतर हुई हलचल से शक्ति और उस शक्ति से होने वाले नुकसान के बारे में चर्चा चल निकली है। मध्यप्रदेश में एंटी इनकंबेंसी का लाभ स्वाभाविक रूप से कांग्रेस को ही मिलेगा। इसके लिए कांग्रेस का नेतृत्व मानस भी बनाए हुए हैं। इसलिए भाजपा की रणनीति कांग्रेस के अन्य प्रमुख नेताओं का विचार यह साफ करता है कि कमलनाथ को उनकी शक्ति का ही नुकसान होगा।

एक उद्योगपति परिवार का कमलनाथ इंदिरा गांधी का सबसे प्रिय कार्यकर्ता और बाद में दत्तक पुत्र के रूप में गिने जाने का भी यही कारण था। इंदिरा जी ने देश में सबसे सुरक्षित सीट कमलनाथ को पुरस्कार के रूप में दी थी। गांधी परिवार के सभी प्रधानमंत्रियों के साथ वे मंत्रिमंडल में रहे। इससे उनकी राजनीतिक शक्ति का आकलन किया जा सकता है। मध्यप्रदेश में अंगद की तरह तरह पैर जमाए शिवराज सरकार को सत्ता से हटा देने की शक्ति भी कमलनाथ के माध्यम से ही प्रदेश को दिखाई दी है। वे सरकार चलाने में सफल हुए या असफल इस पर मतभेद हो सकते हैं। लेकिन वे शक्ति संपन्न राजनेता हैं इसमें मतभेद कम ही है। यही बात कांग्रेस के अन्य नेता भी कहते आ रहे हैं। भाजपा के लिए किसको लेकर रणनीति बनाना बड़ा काम नहीं है।

जिस शक्ति के कारण मध्य प्रदेश के जबरदस्त संगठन भाजपा, मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज की लोकप्रियता और कार्यकर्ताओं के अथक मेहनत के बाद भी कमलनाथ ने सत्ता बदलाव किया था। इन दिनों वही उनकी कमजोरी है। मुख्यमंत्री रहते हुए जिस प्रकार चलो चलो करके विधायकों और मंत्रियों को आगे खिसकाते रहे। उसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ राजनीति की अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करने का परिणाम सरकार के गिरने के साथ हुआ। इन दिनों कांग्रेस के अंदर खाने में यही चर्चा है कि कमलनाथ पार्टी में न केवल स्वमंभू बन गए हैं बल्कि भस्मासुर जैसी स्थिति तक पहुंच गए हैं। मुख्यतः राजनीति या संगठन में नेतृत्व की जिम्मेदारी होती है कि वह भविष्य का नेतृत्व तैयार करें।। उसे दांव पेंच सिखाएं और आगे के लिए बढ़ा दें। अपने 5 साल के प्रदेश के कार्यकाल में कमलनाथ ने राज्य में किसी भी उदयीमान नेता को पर्दे के सामने नहीं आने दिया। यह संदेश संगठन और जनता के बीच तेजी से चला गया है। अरुण यादव, अजय सिंह, जीतू पटवारी सहित अनेकों युवा ऐसे हैं जिनकी प्रतिभाओं पर ग्रहण लग गया। सिंधिया समर्थक रामनिवास रावत कांग्रेस के प्रति वफादारी दिखा कर रुक गए थे। उनका चेहरा भी कहीं दिखाई नहीं दे रहा। इसलिए कुछ देर चर्चा के बाद कांग्रेस का लगभग नेता यह कहता हुआ दिखाई देता है। कमलनाथ साधन संपन्न और रणनीतिकार नेता है, लेकिन योग्य व्यक्तियों को महत्व देकर सत्ता प्राप्त करने का कौशल उनमें नहीं है। इसलिए आने वाले चुनाव में सत्ता प्राप्ति का सपना कांग्रेस पार्टी पूरा कर पाएगी उस पर अभी से सवाल उठने लगे हैं।

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