दो बड़े दल, दो बड़े नेता और दोनों का अपना-अपना विजन… वैश्विक प्रोडेक्ट बन सकता है जलेबी

देश में दो सबसे बड़े राजनीतिक दल हैं। भाजपा और कांग्रेस। भाजपा की विचारधारा का इन दिनों डंका बज रहा है। कांग्रेस की विचारधारा का डंका बज चुका है। आजादी के बाद सात दशक तक कांग्रेस अपराजेय रही है। भाजपा केन्द्र में पन्द्रह साल तक सरकार की गारंटी के साथ काबिज है।

सुरेश शर्मा, भोपाल।

देश में दो सबसे बड़े राजनीतिक दल हैं। भाजपा और कांग्रेस। भाजपा की विचारधारा का इन दिनों डंका बज रहा है। कांग्रेस की विचारधारा का डंका बज चुका है। आजादी के बाद सात दशक तक कांग्रेस अपराजेय रही है। भाजपा केन्द्र में पन्द्रह साल तक सरकार की गारंटी के साथ काबिज है। कर्द राज्यों में तीन दशक तक उसकी सरकारें हैं और जनता में कहीं भी अविश्वास जैसा वातावरण दिखाई नहीं दे रहा है। मतलब भाजपा को हराने के िलए जनमानस के सामने उस जैसा विजन, नेतृत्व और संगठन देना होगा? फिलहाल ऐसा कहीं पर दिखाई नहीं दे रहा है। इसलिए गठबंधन समूह बनाये जा रहे हैं। यहां पर भी एक की अगुवाई भाजपा कीर रही है और दूसरे की कांग्रेस। देश में यह संदेश भी तेजी से जा रहा है कि एक गठबंधन सनातन का सहारा ले रहा है तो दूसरा इस्लाम का। वे इसी आधार पर वोट बैंक तैयार कर रहे हैं तब ऐसा माना जा सकता है। भाजपा तो खुलकर सनातन की बात कर रही है। यही जनसंघ के समय से उसकी विचारधारा रही है। कांग्रेस आजादी के बाद से सर्वधर्म समभाव की बात करती रही थी। लेकिन अब तो यह भी कहने की स्थिति में वहीं नहीं है। उलट स्थिति यह हो गई कि आजादी के समय जिन मस्लिम समुदाय को भारत में रखकर समभाव शब्द लिया गया था वह उसी का पोषण करती दिख रही है। इस वैचारिक द्वंद्व से मतदाता अपना मानस बना रहा है। दूसरा सबसे बड़ा आधार नेतृत्व और उसके विजन का है। एक तरफ नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री हैं और अपने समूह के नेता हैं। दूसरी तरफ हालांकि सर्वमान्य स्थिति नहीं है इसके बाद भी राहुल गांधी को ही नेता के रूप में देखा जाता है। मोदी का भारत के लिए विजन और राहुल गांधी के विजन की तुलनात्मक बात की जाती रही है। कौन कितने पानी में है यह समय-समय पर सामने आता रहता है। हरियाणा चुनाव में राहुल गांधी ने अपना विजन जलेबी के वैश्विक व्यापार के रूप में रखा था। तब क्या सच में जलेबी वैश्विक प्रोडेक्ट बन सकता है?

व्यापार के जानकारों का अभिमत है कि कोई भी वह प्रोडेक्ट समय की सीमा का पार करके बाजार काे प्राप्त कर सकता है जिसको गरम रखने की जरूरत न हो। यहां ताजगी का भी सवाल नहीं है। जलेबी ठंडी हो जाने पर खाने का वह मजा नहीं देती जो राहुल गांधी अपनी बहन प्रियंका को बता रहे होते हैं। इसलिए जलेबी को वैश्विक उत्पाद बनाये जाने के िलए कच्चा माल बनाने का तय फार्मूला कंपनी का होना चाहिए और उसे पेटेंट कराकर हर स्थान पर उपलब्ध कराने की योजना पर काम करना होगा। जबकि निर्माण का कार्य तो स्थानीय स्तर पर ही किया जा सकता है। सभी शोध के बाद यही एक बात सामने आई है कि जलेबी का निर्माण स्थानीय स्तर पर ही हो पायेगा लेकिन उसके उपयोग में आने वाला कच्चा माल हरियाणा का हलवाई उपलब्ध करा सकता है। इसकाे वैश्विक केवल फ्रेंचाई योजना के तहत ही किया जा सकता है। अभी तक भारत के वैज्ञानिकों ने फल-सब्िजयों को सात दिन तक यथास्थिति में पहुंचाने के शिवाय नामक कन्टेनर तैयार किये हैं। लेकिन वे ठंडा रख सकता हैं। गरम बनाये रखने की कोई तकनीक हो सकती है क्या अभी जानकारी में नहीं आई है।

जलेबी वैश्विक प्रोडेक्ट बनेगी या नहीं यह वैज्ञानिकों की शोध का विषय है। क्योंकि वे ऐसा कोई कन्टेंनर बनायेंगे जो उत्पाद को यथा स्वभाव गंतव्य तक पहुंचा सकेगा? लेकिन यह एक विजन जरूर है। राहुल गांधी देश के विकास और उत्पाद संरक्षण की दिशा में किस हद तक जाकर सोचते हैं। आलू से सोना बनाने की बात का वीडियो जब अाया था जब कांग्रेस ने इसको झूठा और गत सेंस में तैयार किया गया बता दिया था। जलेबी पर राहुल विजन का अभी तक खंडन नहीं आया है। इसका अर्थ यह हुआ कि यह देश के विकास के लिए राहुल विजन का एक हिस्सा है। नरेन्द्र मोदी के नोटबंदी, जीएसटी जैसे आर्थिक सुधारों की राहुल खिल्ली उड़ाते हैं। लेकिन मनमोहन के आर्थिक सुधारों का वे समर्थन करते हैं। यहां विरोधाभाष है। नोटबंदी मोदी का विचार था जबकि जीएसटी का विचार तो मनमोहन सिंह के समय से चल रहा था। मेक इन इंडिया विचार का मजाक बनाया गया जबकि इसके परिणाम सामने हैं। जिन संस्थानों को कांग्रेस काल में स्थापित किया था वे मेक इन इंडिया विचार के कारण निर्यात करने वाले संस्थान हो गये। नौकरी को रोजगार बनाने का विचार कांग्रेस शासन काल का था। उस समय उद्यम के लिए तकनीक भारत में उपलब्ध नहीं थी। आज तकनीक भारत के पास है इसलिए स्टार्टअप की बात कही जाने लगी है। हमारे विजन के साथ तकनीक का तालमेल यह बताता है कि हमारी सोच कितनी वैज्ञानिक है? इस मामले में मोदी और राहुल की तुलना करने की स्वतंत्रता दी जा सकती है?

पिछले कई वर्षों की राजनीति में यह बड़ा बदलाव आया है? संसद की उन दिनों की डिबेट को देखने से पता चलता है जब दिग्गज नेता सदन के सदस्य हुआ करते थे। उस समय की डिबेट में अपने राजनीतिक विचार तो होते ही थे लेकिन देश के विकास के लिए भी अपने-अपने सुझाव होते थे। जनसंघ के अटल बिहारी वाजपेयी व लालकृष्ण आडवाणी, वाम विचार के सोमनाथ चटर्जी व इन्द्रजीत गुप्त, समाजवादी मधु लिमये व जार्ज फर्नाडीस, युवा तुर्क चन्द्रशेखर सहित कांग्रेस के नेतागण, उनकी तो सरकार ही हुआ करती थीं। विचार और विजन देश के लिए िबलकुल स्पष्ट होते थे। आज इसका सर्वथा अभाव है। भाजपा और कांग्रेस के नेताआें के विचारों को अलग कर देते हैं। देश के अन्य दलों के नेताओं के विजन पर गौर करते हैं। सबसे बड़ा दल समाजवादी पार्टी है जिसके लोकसभा में 37 सांसद हैं। उसके नेता अखिलेश यादव का देश व प्रदेश के लिए क्या विजन है। जातिगत बातें, मुस्लिम तुष्टीकरण और एमवाई उनका विजन बनकर रह गया है। उसके बाद ममता बनर्जी के टीएमसी के 29 सांसद हैं। विजन को तलाशने में लोग लगे हैं। बंगाल के विकास के लिए तीन बार की सीएम क्या सोच रखती हैं कभी तेजी से सामने नहीं आया? द्रमुक 24 सांसदों के साथ इसके बाद का दल है। सनातन को दीमक, मच्छर बताने के अलावा कोई देश प्रदेश के िलए उनका विजन ख्यात हुआ हो ऐसा सामने नहीं आया। ऐसे ही अन्य दलों के बारे में क्रमश: विचार कर सकते हैं। लेकिन ऐसा कोई तथ्य सामने नहीं आयेगा जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के विचारों से समानता या टक्कर देने की स्थिति में नहीं टिक पायेगा? कांग्रेस राजनीतिक रूप से भी सबसे अनुभवी दल है। उसके नेताओं ने देश को विशिष्ठ दिशा दी है। आज ऐसा क्या हो गया कि वह वैश्विक प्रोडेक्ट बनाने की बात भारत में जलेबी में देख रही है?

अब एक मनोवैज्ञानिक पक्ष। आखिर राहुल गांधी के दिमाग में ऐसी ही बातें क्यों आती हैं जो हास्य की तरफ अधिक जाती हैं और व्यवहार की तरफ कम? इसका उत्तर मिलता है कि यह भाषा का अन्तर है। जब राहुल गांध्ाी अपनी बात अंग्रेजी में कहते हैं तब वे अभिप्राय समझाने में हिन्दी में कहे की अपेक्षा अधिक अच्छा समझा सकते हैं। एक वे ऐसे परिवार में जन्में हैं जहां पर इस प्रकार की बातों की जानकारी नहीं हो पाई। परिवारिक कारण भी ऐसे ही रहे हैं। तब यह जानकारी उनके करीबी लोगों के द्वारा सही से बता नहीं पाना भी है। उन्होंने जलेबी की बात ही नहीं की हो और उनके दिमाग में ड्राइ जलेबी का विचार आया हो और उसको प्रस्तुत कर दिया हो। हिन्दी में प्रस्तुत करने के कारण वह हास्य की तरफ चला गया हो। फिर भी यह तो सामने आ ही जाता है कि राहुल गांधी के पास भारत की पूरी समझ नहीं है। उन्हें इतने दिनों में वह सब सीख लेना चाहिए था जिसकी भारत की राजनीति में जरूरत है। पंडित नेहरू हिंदी नहीं जानते थे इसलिए उन्होंने हिंदी काे भारत की भाषा नहीं बनने दिया लेकिन उन्हें कभी हिंदी विरोधी चस्पा नहीं किया जा सका? लेकिन राहुल गांधी तक आते-आते यह परिवार भारत की मूल धारा कट गया और इसका दोष कांग्रेस पार्टी का ही है। क्योंकि वह उनकी परिवार विरासत को तो भुनाना चाहते हैं लेकिन उनको भारत के सामाजिक परिवेश से दूर रख रहे हैं? इसलिए राहुल गांधी को जलेबी वैश्विक प्रोडेक्ट नजर आ गया। लेकिन मोदी के विजन से मुकाबला करने के लिए अपने सलाहकारों में भारत को समझने वाला भारतीय संस्कारों का व्यक्ति भी उन्हें जोड़ना होगा। तभी वे आने वाले समय में मोदी विचार और भाजपा के संस्कारों को टक्कर दे पायेंगे?

संवाद इंडिया
(लेखक हिन्दी पत्रकारिता फाउंडेशन के चेयरमैन हैं)

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