‘उदारता’ यही है कि आज भी देश में हैं ‘बांग्लादेशी’
बांग्लादेश तख्तापलट के बाद हिन्दू समाज के स्थानीय नागरिकों के प्रति जिस प्रकार की बर्बरता बरत रहा है बेहद चिंता की बात है। इस बर्बरता में वहाँ की महिलाओं का भागीदार होना दुर्भाग्यपूर्ण है। यदि एक समुदाय अपने ही दूसरे समुदाय जो वहाँ का नागरिक भी है।
भोपाल। बांग्लादेश तख्तापलट के बाद हिन्दू समाज के स्थानीय नागरिकों के प्रति जिस प्रकार की बर्बरता बरत रहा है बेहद चिंता की बात है। इस बर्बरता में वहाँ की महिलाओं का भागीदार होना दुर्भाग्यपूर्ण है। यदि एक समुदाय अपने ही दूसरे समुदाय जो वहाँ का नागरिक भी है उसके प्रति इस प्रकार की बर्बरता करना कितना चिंता जनक और असंवैधानिक होगा। यह सच है कि भारत सहित अन्य देशों ने इस बर्बरता का विरोध भी किया और इसे अमानवीय भी माना है। वहाँ की आंतरिम सरकार ने हिन्दू मंदिरों में जाकर सुरक्षा का आश्वासन भी दिया। लेकिन इसका कोई परिणाम सामने आता हुआ दिख नहीं रहा है। तख़्ता पलट और उसके बाद भी हिंसा अब उतनी चर्चा में नहीं है फिर भी वहाँ के हिन्दू समुदाय के लोगों के साथ कट्टरपंथियों की ज़्यादती यहाँ जारी है। ऐसे में कई सवाल उठते हैं? इन सवालों के उत्तर में भारत की भूमिका के बारे में गम्भीर क़िस्म के सवाल उठते हैं? पहला सवाल यह है कि क्या जिस भी हिंदू के साथ अत्याचार होगा उसे भारत की नागरिकता दे दी जाना चाहिए और क्या बस यही विकल्प है? इस प्रकार के कई सवाल अपने उत्तर खोजने की प्रतीक्षा में है। अब दूसरा सवाल यह उठता है जब बांग्लादेश अपने अल्पसंख्यक नागरिकों के साथ जिस प्रकार के ज़ुल्म कर रहा है उसके बाद भारत में रह रहे करोड़ों बांग्लादेशियों को क्या भारत में ही रहने देना चाहिए? उन्हें सुन सुन कर निकालने की कोई योजना पर काम नहीं करना चाहिए? कुछ राज्यों ने ऐसा करना शुरू किया है। दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष यह हैं कि हमारे विरोधी पक्ष के राजनैतिक दल इस प्रकार की संवैधानिक घटनाओं का भी विरोध करते हैं और उसका कारण केवल वोट होता है?
पिछले दिनों से सर्वाधिक चर्चा में असम के मुख्यमंत्री हिमंता विसवा सरमा बने हुए हैं उन्होंने सबसे पहले मुस्लिम विवाह एवं तलाक़ क़ानून बनाया उसके बाद सरकारी कार्यालय में धर्म के आधार पर दो घंटे का अवकाश दिए जाने की प्रक्रिया को रद्द किया और अब उन्होंने कहा है कि बांग्लादेशी नागरिकों को चिन्हित किया जाए भारत की पंथनिरपेक्ष (सेक्युलर) राजनीति ना तो संविधान को देखती है और न ही देश की सुरक्षा को? उसे केवल और केवल अपना वोट पक्ष दिखाई देता है। तब आलोचना करने में उसे सोने में सुहागा जैसा दिखाई देता है। वैसे भी ई देश की राजनीति में वोट की सुरक्षा में अधिक व्यस्त रहती है।
उसे आम नागरिक की सुविधाओं पर उतनी जिन प्यार नहीं रहती हैं परिणाम यह है देश में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या जितनी हो गई है कि कई विधान सभा सीटों का समीकरण बदल सकती है यही राजनैतिक स्वार्थ बोल को बहार निकालने में भी बाधा बनता है केंद्र और विभिन्न राज्यों में एस ए भाजपा की सरकारें होने के कारण इन्हेंइन्हें वापस अपने देश भेजने की बात होती है। इन वोट कबाड़ने की राजनीति के कारण वापसी की बात परवान नहीं चढ़ पाती है।
अब भाजपा ने इस बारे में ठोस प्रयास शुरू किए हैं। उन्हें यह अवसर भी इन घटनाओं ने ही दिया है।असम के सीएम ने इस प्रकार के आदेश दिये हैं। भारत की सरकार भी इस बारे में एक व्यापक रणनीति बनाने जा रही है। भारत की आंतरिक राजनीति में पश्चिम बंगाल के घटनाक्रम भी हमें सचेत करते हैं। यदि आने वाले कुछ समय में कोई ठोस और परिणाम दायक काम नहीं किए गए तो भारत का भूगोल प्रभावित हो सकता है। इसलिए हमें समय संकेत दे रहा है कि देशहित में अधिक उदारता बरतने की ज़रूरत नहीं है। इस बात को विपक्ष दल भी जितना जल्दी समझ लेंगे देश हित में होगा है।