पर्यावरण, पर्यटन, प्रोजेक्शन पर केन्द्रीत
मन की बात के सौ एपीसोड पूरे होने पर बडा कार्यक्रम
सुरेश शर्मा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा की जाने वाली मन की बात के सौ एपीसोड का प्रसारण देश के लिए एक बड़े कार्यक्रम के रूप में सपन्न हुआ। इस कार्यक्रम की गूंज विश्व भर में सुनाई दी और इसमें सहभागिता भी दिखाई दी। इस कार्यक्रम के केन्द्र में पर्यावरण सुधार और स्थिति की चिंता, जो लोग देश में अच्छा काम कर रहे हैं उनको सामने लाने और अन्य लोगों को कुछ नया करने की प्रेरणा, पर्यटन को उद्योग के रूप में स्वीकार करने और उसमें शामिल होने की जागृति लाना तथा संस्कृति के सहारे देश का विकास करने की बात रही है। नरेन्द्र मोदी ने अपने सौं वे आयोजन को जिस प्रकार से देश में उत्सव की भांति प्रचारित किया वह इसके प्रति जागरूकता का ही कारण था। भाजपा ने इस आयोजन को एक उत्सव के रूप में प्रस्तुत किया। यह उत्सव देश को नया उत्साह देगा तो भाजपा को एक राजनीतिक पार्टी के रूप में नये कलेवर के साथ पेश करेगा। स्वभाविक है कि किसी भी आयोजन से मिलने वाले राजनीतिक लाभ को कम करने के लिए विरोधी पक्ष उसकी अलोचना करता है। राहुल गांधी टवीट कर इस औपचारिकता को भी पूरा कर गये। उन्होंने सवाल वे ही उठाये जिनको वे अनेकों बार उठा चुके हैं। वही अडाणी और बेरोजगारी को लेकर मन की बात में कोई स्थान नहीं मिला आदि। यह आयोजन की तासीर के सवाल नहीं है क्योंकि मन की बात राजनीतिक न होकर प्ररेणादायी कार्यक्रम है।
मन की बात आखिर किसके मान की बात है? यह सवाल सबसे पहला बनता है। दूसरा सवाल यह बनता है कि विपक्षी दल जिन विषयों को उठा रहे हैं उनकी चर्चा इसमें क्यों नहीं की जा रही है? मन की बात देश के मन की बात है इसलिए देश की चर्चा इसमें अधिक है। यह देश राजनीतिक विवादों और आरोप प्रत्यारोपों के इतर भी सोचता है। जो भारत की संस्कृति और विरासत को जानते हैं वे सब इसे अच्छे से समझ सकते हैं। भारत का विश्व गुरू होना राजनीतिक विवादों के कारण नहीं अपितु विश्व को नई राह दिखाने के कारण रहा है। इसलिए उस भारत के मन की बात आज के संदर्भ करने का प्रयास मन की बात है। इसमें हर उस व्यक्ति को केन्द्र बनाकर देश को प्रेरणा देने का प्रयास है जिसने कुछ ऐसा किया है जिसको कुछ अधिक लोगों को करना चाहिए। इसमें पर्यावरण को संरक्षित करने की बात छुपी हुई है। आज पूरा विश्व पर्यावरण असन्तुलन की चिंता में डूबा हुआ है। वह समाधान की तरफ चल तो रहा है लेकिन पहुंच नहीं रहा। प्रधानमंत्री ने मन की बात में उसका समाधान एक ऐसे व्यक्ति के माध्यम से समझाने का प्रयास किया जो पहाड़ी क्षेत्रों जिसे वन क्षेत्र कहा जा सकता है में कचरा पन्नी बीनने से शुरू किया। प्रधानमंत्री ने जब मन की बात में उसका उल्लेख कर दिया तो उसके साथ चलने वालों की संख्या बढ़ गई और यह कार्य तेजी से होना शुरू हो गया। परमार्थ आश्रम के चिदानंद स्वामी के साथ हमको भी इस प्रकार के अभियान में शामिल होने का अवसर मिला था तब इसके महत्व की जानकारी मिली थी। यह मन की बात प्रधानमंत्री के मन की बात भी है। राजकाज, फाइलों का निपटान और विकास की आपाधापी ही प्रधानमंत्री का काम नहीं हो सकती? जनभागीदारी से समस्याओं के निदान के प्रति भी वे सोचते हैं यह मन की बात का सूत्र वाक्य है। इसे केन्द्र में रखने की जरूरत है।
पर्यावरण को लेकर मन की बात का सबसे अधिक ध्यान है। देश में स्वच्छता अभियान और उसमें सहभागिता का मतलब यही है। वन क्षेत्रों का विकास, उनको नुकसान पहुंचाने वाली वस्तुओं से उसको मुक्ति दिलाने के अभियान और वन संरक्षण की दिशा में की जाने वाले प्रयास इसका हिस्सा हैं। गांव, गरीब और सुदूर अंचलों की हस्तकला को सामने लाना, उसका उपयोग करने की बात ने वोकल फार लोकल तक पहुंचा दिया। यदि देश का मुखिया स्वयं इस प्रकार की बात कह कर प्रेरण देने का प्रयास करता है और बड़ी संख्या में उससे लोग जुड़ते हैं। जब प्रधानमंत्री यह कहते हैं कि छोटे काम को व्यवसाय के रूप में अपनाने वालों के साथ मोल भाव करने की बजाए उनके तय दामों में ही खरीदने की प्रवृति बढऩा चाहिए। इससे हम उनकी आर्थिक उन्नति में सहभागी बनते हैं। इससे कई समस्याओं का समाधान निकल जाता है। ग्रामीण अंचलों में रोजगार के अवसर निकलते हैं। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की जनसंख्या का असन्तुलन कम होता है। कई बातें एक आयोजन से बनती हैं।
पर्यटन मन की बात का दूसरा प्रमुख विषय है। प्रधानमंत्री ने स्वयं सौंवे एपीसोड में कहा है कि विदेश जाने से पहले हम अपने देश में ही कुछ पर्यटन क्षेत्रों में जरूर जावें। यह भी ध्यान रखना होगा कि वह क्षेत्र अपने राज्य से नहीं दूसरे राज्यों में हो। इससे रोजगार के अवसर मिलेंगे और पर्यटन क्षेत्र का प्रचार-विस्तार भी होगा। इसका अभिप्राय यही है कि देश के पर्यटन क्षेत्र में संख्या बढ़ती है तब उस क्षेत्र के लोगों के आर्थिक प्रगति की राह खुलती है। मध्यप्रदेश में महाकाल लोक बनाया गया है। उज्जैन पहले से ही धार्मिक क्षेत्र है और धार्मिक पर्यटन के लिए भी लोग आते हैं। इसमें आस्था भी शामिल रहती है। यहां के होटल, रिक्शा और खानपान की दुकानों का रोजगार चलता रहता था। लेकिन जब से लोक बना है तब से रोजगार मेंं बूम आया है। जो रिक्शा वाला सो-दो सौ कमाता था वह दो हजार तक पुहंच गया है। होटल कम पडऩे लग गये हैं। लोगों ने यात्रियों को रूकने और अन्य सुविधाएं देने का व्यापार शुरू कर दिया है। इस लोक के बनने के बाद उज्जैन के आसपास के बदलाव को देखा जा सकता है। पर्यटन के अन्य क्षेत्रों को भी इसी प्रकार से चयनित करने की प्रेरणा मन की बात से मिली है और आने वाले समय में यह बदलाव का बडा आधार बनेगा।
प्रधानमंत्री ने स्वयं अपने राजकाज के साथ उन लोगों को प्रोजेक्ट करने का काम किया है। जिनकों सोहरत हासिल करने के लिए इवेंट कंपनियों को लाखों देना होते। इस प्रयास से ही वोकल फार लोकल का विचार देश के सामने रखा या। आज स्थानीय वस्तुओं को खरीदने का चलन बढ़ा है। आने वाले समय में एक बार फिर से हम मॉल संस्कृति और मार्ट संस्कृति से दुकानदारों की ओर वापसी करेंगे। इससे स्थानीय लोगों के काम को सहारा मिलेगा और आर्थिक सन्तुलन बनेगा। यह बड़ी प्रेरणा देश के सामने खुद प्रधानमंत्री ने रखी है। गांव का उत्पाद है। उत्पादों का प्रचार है और उसके प्रति आकर्षण बढऩा देश के लिए आगे की राह को आसान करेगा। मन की बात की सफलता इसी प्रकार के प्रयासों से निर्भर रही है न कि इसके राजनीतिक लाभ-हानि से। विपक्षी नेताओं को इस बात का डर लगा रहता है कि जनता यदि यह समझ जायेगी कि विश्व में भारत का मान बढ़ाने वाला, देश को आत्म निर्भर बनाने वाला और आर्थिक रूप से संपन्न बनाने वाला प्रधानमंत्री इस प्रकार के विजन के साथ काम कर रहा है तब उसको जनता के सामने अपना विश्वास जमाना कठिन हो जायेगा। इसलिए राहुल गांधी ने बीस हजार करोड़ का सेल कंपनियों में निवेश का सवाल उछाला जिसका जवाब अडाणी दे चुके हैं। बेरोजगारी का सवाल तो शास्वत है क्योंकि प्रतिवर्ष छात्र शिक्षण संस्थाओं से रोजगार की तलाश में आयेंगी ही और यह स्टाक कम होने वाला नहीं है। इसलिए रोजगार के अवसर बनेंगे भी और अगले साल फिर कम दिखाई देंगे।
सांस्कृतिक उत्थान के बिना किसी देश की स्थायी प्रगति नहीं हो सकती है। इसलिए भारत का विकास उसकी संस्कृति के साथ, उसकी चेतना के साथ करने का स्थायी लाभ मिलेगा। यही मन की बात में भी बताया गया है। हम अपनी जड़ों से जुड़ें। संस्कार और संस्कृति के साथ मिलकर विकास करें तब जाकर देश को इसका लाभ होगा। इस बात का उल्लेख भी करना ही होगा कि जनजागृति के लिए भाजपा ने सौंवे एपीसोड को चर्चा का केन्द्र बना दिया। देश के सभी क्षेत्रों में इसका व्यापक प्रचार करके देश में पार्टी की उपस्थिति को बता दिया और इसका राजनीतिक लाभ मिलेगा इसकी राह भी आसान कर ली। मन की बात एक विशिष्ठ आयोजन है जिससे दूरगामी असर देश को मिलेंगे। इन्ही प्रभावों से विपक्ष भयभीत है।