18 वर्षों से अनुकंपा नियुक्ति के लिए भटक रहा भारत गायकवाड Bharat
किशोर दा के गीतों से सभी के चेहरों पर खुशियां बटोरने पर मिलती है केवल शुभकामनाएं
विश्वनाथ सिंह इटारसी। ‘तुम जो इतना मुस्कुरा रहे हो, क्या गम है जिसको छुपा रहे हो’ और ‘आया रे खिलौने वाला खेल खिलौने लेकर आया रे’। उक्त दोनों गीत इटारसी के निवासी भरत गायकवाड पर सटीक बैठते हैं। किशोर दा के मधुर गीतों की धुन से अपनी अलग पहचान स्थापित कर चुके इस भरत की जिंदगी के दूसरे पहलुओं पर अभी तक राजनीतिज्ञों की नजर क्यों नहीं पड़ी, समझ से परे है। इनके पिता शरणप्पा गायकवाड ने अपना पूरा जीवन पीडब्ल्यूडी विभाग में स्टोर कीपर के पद पर रहकर विभाग के साथ ही परिवार का जीविकोपार्जन भी किया। यही नहीं 24 नवंबर 2004 को ऑन ड्यूटी ऑफिस में ही दोपहर 2 बजे अपनी अंतिम सांस भी ली। 18 वर्षों से ना तो इनकी मां मीराबाई को ही अनुकंपा नौकरी मिली और तो और भरत के जीवन में विभाग के चक्कर काटने का एक दर्द भरा अध्याय भी जुड़ गया। राजनीतिज्ञों से लेकर सीएम हेल्पलाइन, राज्य सूचना आयोग, कलेक्टर से लेकर ना जाने कहां-कहां तक भारत ने अपनी दर्द भरी दास्तां बयां की। मजे की बात तो यह है कि इतना दर्द झेलने के बाद टेंपो चलाकर जो पैसे मिल जाते थे उससे लोगों के लिए मनोरंजन पर खर्च कर उन्हें खुशी भी प्रदान करता रहा। जिस पर इसे नगर से लेकर दूरदराज इलाकों के बड़े-बड़े लोगों की केवल शुभकामनाएं ही मिलती रही। आज भरत गायकवाड अपनी मां की सेवा में ही अवैवाहिक जीवन इस उम्मीद में व्यतीत करना शुरू कर दिया है कि नौकरी मिलेगी और जीवन का हर दिन दिवाली जैसा व्यतीत होगा। कांग्रेस सरकार द्वारा जन सूचना अधिकारों के लिए लागू किया गया जन सूचना अधिकार एक्ट भी इसे इसके अधिकार दिलाने में नाकाम साबित हुआ है। भरत कहते हैं कि दौड़ भाग में पैसों के साथ ही समय की भी बर्बादी होती है। आज तक मुझे विभाग या किसी जिम्मेदार द्वारा कोई सकारात्मक उत्तर नहीं मिल सका है। इसलिए पशोपेश की स्थिति बनी हुई है। यही नहीं शिवराज सरकार बालिकाओं को अनुकंपा नियुक्ति देकर भले ही अपनी पीठ थपथपा ले परंतु जमीनी सच्चाई या कुछ और ही बयां कर रही है।