‘फारूख’ अब्दुल्ला भी बोले सबके हैं ‘श्रीराम’
वह तारीख जिसकी जानकारी विपक्षी दल चाहते थे वह पता चलने के बाद से भावनाओं में बदलाव की घटनाएं भी सामने आ रही हैं। एक किसी रणवीर शौरी नामक फिल्म स्टार का बयान आया है और उन्होंने श्रीराम से माफी मांगी है तथा भविष्य के लिए सदबुद्धि देने का आग्रह भी किया है।

भोपाल। वह तारीख जिसकी जानकारी विपक्षी दल चाहते थे वह पता चलने के बाद से भावनाओं में बदलाव की घटनाएं भी सामने आ रही हैं। एक किसी रणवीर शौरी नामक फिल्म स्टार का बयान आया है और उन्होंने श्रीराम से माफी मांगी है तथा भविष्य के लिए सदबुद्धि देने का आग्रह भी किया है। उनका यह कहना है कि उन्होंने उस समय मंदिर के स्थान पर अस्पताल बनाने की मांग में खुद शमिल किया था। आज समझ में आया कि मंदिर का अपना महत्व होता है और अस्पताल का अपना। श्रीराम का मंदिर भी समाज की जरूरत है। इस प्रकार के बयान देने वालों की कतार है। जिन्हें यह अहसास हो रहा है कि उनका स्टेंड उस समय गलत था और आज जो हो रहा है वह जरूरी है। देर सवेर यह मानना ही होगा कि आस्था और विश्वास के देश में श्रीराम का होना और उसकी प्रतिष्ठा की स्थापना की कितनी जरूरत है। अस्पताल अपना काम करेगा और मंदिर अपना। कई बार यह समझने में समय लगता है जब हम यह मानें कि बर्तन की तरंगों से मानसिक सन्तुलन बनाने में सहयोग मिलता है यह विज्ञान कहता है और इसी प्रकार की तरंग सुबह मंदिर में बजने यंत्रों से आती है यह धर्म है। जब दोनों मिलते तब वह मंदिर होता है। इसे समझने के लिए विवेक चाहिए और प्रगतिशील बनने का दिखावा करना इससे दूर कर देता है।
इसी बीच में जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला का बयान चर्चा का विषय बना हुआ है। उन्होंने कहा है कि श्रीराम किसी एक समुदाय या दल के नहीं अपितु विश्व के हैं। इतना ज्ञान अब आया है या पहले से उपलब्ध था इसकी खोज जारी है। पता लगने पर बता दिया जायेगा। लेकिन इतना सच है कि यह ज्ञान यदि न्यायालय के निर्णय से पहले आ जाता तो पांच वर्ष नहीं लगते? जिस राज्य के वे मु यमंत्री रहे हैं वहां से कश्मीरी पंडितों का इस प्रकार का पलायन नहीं होता। यहां वह फार्मूला लागू होता है कि अस्पताल अपना काम करता है और मंदिर अपना। ज्ञान का बखान करना एक बात है और ज्ञान का सयम पर उपयोग करना दूसरी बात है। अब्दुल्ला साहब यदि कश्मीर में आतंक को परवान चढऩे से पहले बोल लेते तो शायद कुछ कम बुरा होता? दुखद यह है कि वे आज भी पाकिस्तान के साथ बात करने की वकालत करते हैं लेकिन भारत सरकार जब हाफिज सईद को सौंपने की मांग करती है तब उसकी वकालत नहीं करते हैं। यही देश के साथ दोहरा चरित्र है।
अब श्रीराम का भव्य मंदिर बनकर शुरू होने को तैयार है। रामलला किस दिन विराजेंगे यह सबको पता चल गया और इसके आयोजन भी होना शुरू हो गये हैं। विश्व की निगाह है इस भव्य और गरिमापूर्ण आयोजन पर। तब स्वभाविक है कि भारत के नेताओं का ध्यान भी इसी तरफ पहुंच रहा हे। यदि फारूख अब्दुल्ला श्रीराम को पूरे विश्व का बता रहे हैं यह राजनीतिक मजबूरी है। श्रीराम ने सरकारों की नैया अपने कार्यकाल में भी पार लगाई थी और अब फिर से नैया के खेवनहार बन रहे हैं। विपक्ष को इसी बात का डर सता रहा है कि पहले पाप किये थे अब रामनाम से जितने संभव हैं धो लिए जाएं।