चाहे राजनीति है, महाराष्ट्र में गाय को राज्यमाता घोषित

महाराष्ट्र की सरकार का एक चर्चित निर्णय आया है। राज्य ने गाय को राज्यमाता का दर्जा दिया है। इस आशय के घोषणा के बाद राजनीति भी चरम पर आ गई है। यह सच है कि इस प्रकार के संवेदनशीन निर्णय पर राजनीतिक दलों की भाषा सकारात्मक रहती है लेकिन उतनी ही कूटनीतिक भी रहती है।

सुरेश शर्मा, भोपाल।

महाराष्ट्र की सरकार का एक चर्चित निर्णय आया है। राज्य ने गाय को राज्यमाता का दर्जा दिया है। इस आशय के घोषणा के बाद राजनीति भी चरम पर आ गई है। यह सच है कि इस प्रकार के संवेदनशीन निर्णय पर राजनीतिक दलों की भाषा सकारात्मक रहती है लेकिन उतनी ही कूटनीतिक भी रहती है। महा अघाड़ी के दलों की ओर से तो विरोधात्मक प्रतिकि्रया नहीं आई है लेकिन ओबैसी की पार्टी के प्रवक्ताओं की ओर से जिस प्रकार की भाषा सामने आ रही है वह जरूर विरोध करने वाली है। लेकिन यह तो सभी को पता था कि उनका तीखा विरोध आयेगा। उनका विरोध गाय को लेकर नहीं अपितु उसके राजनीतिक हित अहित को लेकर है। गाय को राज्यमाता बना देने से महाराष्ट्र जैसे राज्य की राजनीति प्रभावित होगी। महा अघाड़ी के दल और विशेष रूप से शिवसेना उद्धव की राजनीति प्रभावित होने वाली है। वह विचारधारा के मंथन वाले दौर से गुजर रही पार्टी है। गाय का खुला समर्थन करने से ओबैसी की पार्टी को झटका लगेगा।

अब चाहे यह राजनीति हो लेकिन इतना सच है कि देश का बड़ा तबका और संत समाज गाय के संरक्षण की मांग लम्बे समय से करता आ रहा है। करपात्री महाराज के समय इंदिरा गांधी ने संत और गाय मरवा दिये थे और उन्हें संतों के आक्रोश का सामना करना पड़ा था। अब गाय को लेकर शंकराचार्य महाराज की ओर से लगातार मांग हो रही है। गाय का संरक्षण करने का तरीका सरकार को खोजना है लेकिन उसकी हत्या रूकना चाहिए। महाराष्ट्र की सरकार ने देश को गाय संरक्षण का तरीका दिया है। उन्होंने गाय को राज्यमाता घोषित कर दिया। अब गाय का संरक्षण करना राज्य की जिम्मेदारी में आ जायेगा। इस बड़े और महत्वपूर्ण कदम से भाजपा के विचारों को बड़ा सहारा मिलने वाला है। राहुल गांधी जिस प्रकार की राजनीति कर रहे हैं उसका भी जवाब इसी में छुपा हुआ है। गाय का राजनीति की प्रधानता में आना अच्छे संकेत हैं।

सनातन में गाय का महत्व

सनातन संस्कृति में गाय का बड़ा महत्व है। सारे जगतगुरू शंकराचार्य महाराज इस बात को समय-समय पर उठाते रहे हैं कि गाय को कटने से रोका जाना चाहिए। इससे पहले भी श्रीमती इंदिरा गांधी के समय करपात्री महाराज की अगुवाई में देश भर के संतों ने आन्दोलन किया था। इंदिरा गांधी ने संतों पर गोलिया चलवा दी थी। अनेकों संतों की मौत हुई थी। साथ में चल रही गायों की मौत भी इसी गोली चालन में हुई थी। अब भी इस मामले में किसी भी प्रकार का निर्णय नहीं हुआ है। गाय की महता के बारे में भारत के ग्रंथ भरे पड़े हैं। यही कारण था कि बाबरनामा में गाय को न काटने का स्पष्ट निर्देश दिया हुआ था। इसके बाद भी गाय को देश भर में काटा जाता है। अब इससे अन्य राज्यों का राह मिलेगी।

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