सट्टा बाजार भी कहने लग गये दिग्विजय खतरे में

राजगढ़ लोकसभा सीट को दिग्विजय सिंह के चुनाव लड़ने के बाद हाॅट सीट के रूप में जाना गया। यहां उनकी इस घोषणा को बड़ा महत्व दिया गया कि यह उनका अन्तिम चुनाव है। इससे मिलने वाली सहानुभूति से उनकी जीत की संभावनाओं पर बात की गई।

सुरेश शर्मा भोपाल। राजगढ़ लोकसभा सीट को दिग्विजय सिंह के चुनाव लड़ने के बाद हाॅट सीट के रूप में जाना गया। यहां उनकी इस घोषणा को बड़ा महत्व दिया गया कि यह उनका अन्तिम चुनाव है। इससे मिलने वाली सहानुभूति से उनकी जीत की संभावनाओं पर बात की गई। इसके बाद जब अधिक मतदान हुआ तो यह चर्चा शुरू हुई कि क्या राजा साहब चुनाव जीत पायेंगे? अब तो फालौदी सट्टा बाजार और इंदौर के बाजार ने भी कह दिया है कि उनकी सीट और प्रतिष्ठा खतरे में है।
राजगढ़ सीट से दिग्विजय सिंह ने तीन चुनाव लड़े थे। यह चौथा चुनाव वर्षों बाद लड़ा गया है। 1984 के चुनाव में इंदिरा हत्या का मामला था इसलिए जीत का कोई खास मायने नहीं था। फिर जीत तो जीत ही होती है। अगला चुनाव राजा साहब भाजपा के संगठन मंत्री प्यारेलाले खंडेलवाल से 58 हजार से अिधक मतों से हार गये थे। अगला चुनाव 1991 का जीता लेकिन मात्र 1470 वोटों से। इससे यह संदेश समझा जा सकता है कि दिग्विजय अपने क्षेत्र कितना असर रखते हैं। विधानसभा का पिछला चुनाव उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह बड़े अन्तर से हार गये थे। इसलिए इस बार के चुनाव में दिग्विजय की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है।
उनकी अपील का असर माना गया। अन्तिम चुनाव है सम्मान के साथ बिदा कर दीजिए। भाजपा ने यहां अमित शाह को प्रचार के लिए भेजा उन्होंने इस अपील पर तंज कसा कि आशिक का जनाजा है जरा धूम से निकलना चाहिए। पार्टी की फोकस सीट होने से प्रबंधन का असर हुआ है कि वहां मतदान अपेक्षा से अिधक हुआ था। अब समीक्षा के अनुमानों का मिलान सट्टा बाजार के साथ भी होने लगा है। फलौदी और इंदौर का सट्टा बाजार दिग्विजय की जीत के प्रति बिलकुल भी आश्वस्त नहीं है। अब तो चर्चा यह चल निकली है कि हार भोपाल जैसी होती है या कम अन्तर करने में वे कामयाब होंगे।

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