‘मुश्किल’ में दिग्विजय और सांसत में ‘कांग्रेस’
एक बात तो मानना होगी दिग्विजय सिंह कांग्रेस के ऐसे नेता हैं जिनकी पार्टी और प्रदेश में अन्य दलीय नेताओं से अधिक पहुंच है। कमलनाथ प्रयास कर रहे हैं प्रादेशिक नेता बनने की लेकिन दिविजय सिंह के बराबर आने में समय लगेगा।
भोपाल। एक बात तो मानना होगी दिग्विजय सिंह कांग्रेस के ऐसे नेता हैं जिनकी पार्टी और प्रदेश में अन्य दलीय नेताओं से अधिक पहुंच है। कमलनाथ प्रयास कर रहे हैं प्रादेशिक नेता बनने की लेकिन दिविजय सिंह के बराबर आने में समय लगेगा। इसलिए दिग्विजय सिंह के कमजोर होने से कांग्रेस की सेहत पर भी प्रभाव पड़ता है। 2004 के समय दिग्विजय सिंह को ही बंटाढ़ार सिद्ध किया गया था इसलिए कांग्रेस सबसे कम विधायक जिता पाई थी। दस साल का राजनीतिक वनवास भी कांग्रेस के वनवास बन गया था। 2018 के चुनाव में लाख कमलनाथ का विजन और प्रदेश के लिए नया होना आधार हो लेकिन दिग्विजय के समन्वय के बिना वह संभव नहीं था। उन्होंने नेताओं को एक साथ लाने का काम किया था। आज भी वे कांग्रेस जोड़ो अभियान में लगे हैं। उनको यह पता है कि यह 2018 जैसा अवसर नहीं है। फिर भी वे प्रयास कर रहे हैं ऐसे में दिग्विजय को घेरने के लिए भाजपाई प्रयास चलते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चाहे चुनावी एजेंडे में कमलनाथ को पहले ला खड़ा किया हो फिर भी बिना दिग्विजय कांग्रेस के तारणहार कमलनाथ नहीं हो सकते। इन दिनों दिग्विजय सिंह का मिशन कांग्रेस तो चल ही रहा है मिशन उजागर भी चल रहा है। दिग्विजय को वीडी शर्मा ने घेर लिया तो कांग्रेस की जान सांसत में आ गई है।
व्यापमं मामला मध्यप्रदेश के राजनीतिक इतिहास का बड़ा केन्द्र बिन्दु है। इसके दो भाग हैं। एक मेडीकल और इंजीनियर और दूसरा बाद में जोड़ा गया अन्य। जिसमें पटवारी तक आते हैं। शिवराज ने मेडीकल की गड़बड़ियों का प्रकरण दर्ज कराया तो कांग्रेसी एप्रीन पहनकर सदन में आ गये थे। लेकिन बाद में उसे भूल गये। सूचना के अधिकार कानून के तहत अन्य सेवाओं का भर्ती तरीका निशाने पर ले लिया गया। दिग्विजय इसकी बारीकी जानते हैं? उन्होंने इसके बाद भी भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा का नाम इससे जोड़ दिया। वीडी ने दिग्विजय को मानहानि मामले में फंसा लिया। यह मामला वैसा ही है जैसा राहुल गांधी के गले की फांस बना हुआ है। दिग्विजय अपने बेटे को राजनीतिक रूप से स्थपित नहीं कर पाये हैं इसलिए वे खुद को मुश्किल में पा रहे हैं। इसका प्रभाव कांग्रेस की चुनावी रणनीति पर पड़ने वाला है। इसलिए कांग्रेस की जान सांसत में आ रही है। याद करना होगा कि आयकर विभाग ने एक छापा मारा था और मामले का लिंक दस जनपथ तक पहुंच गया था। लेकिन सबकुछ सैट कर लिया गया। दिग्विजय सिंह इसी सैट की फिराक में लगे हैं?
राजनीति में कोई सगा नहीं होता? इसलिए सत्ता का खेल तो इन चुनावों से पहले ही चलने लग गया। वीडी ने दिग्विजय को घेर कर अपना कद बढ़ा लिया और दौर में शामिल हो गये। दिग्विजय सिंह कमलनाथ को राजनीतिक अज्ञानी बता कर पार्टी के संरक्षक प्रदेश में बनना चाहते हैं। यह खो-खो का खेल है जो चुनाव तक चलता रहेगा। इसमें जनता की कोई भागीदारी और रूचि नहीं है फिर भी जनता मजे तो ले ही सकती है। राजनीतिक पारी इसी प्रकार के ऐपीसोड बनाकर ही फिल्म का निर्माण करती है। दिग्विजय सिंह वीडी की गिरफ्त में आ गये हैं। देखने वाली बात यह होगी कि उनको बचाने कौन सामने आता है?