‘गाय’ खाद्य सामग्री नहीं है भारत के लिए है ‘मां’

यह भारत वर्ष है। हमको यहां की जीवन पद्यति हिन्दुत्व को न केवल मानना है बल्कि मानने से पहले उसे समझने का प्रयास भी करना चाहिए। भारत वर्ष प्राचीन काल से ही गाय को गौमाता कहता आया है। पुराने ग्रंथ इस बात के साक्षी हैं कि सभी धर्मों के

भोपाल। यह भारत वर्ष है। हमको यहां की जीवन पद्यति हिन्दुत्व को न केवल मानना है बल्कि मानने से पहले उसे समझने का प्रयास भी करना चाहिए। भारत वर्ष प्राचीन काल से ही गाय को गौमाता कहता आया है। पुराने ग्रंथ इस बात के साक्षी हैं कि सभी धर्मों के लेखकों ने यह माना है कि गाय के साथ भारतीय संवेदनाएं जुड़ी हुई हैं। इसलिए भारत के बहुसं यक विचार को अन्य समुदाय के लोग भी स्वीकार करेंगे तब आपसी विश्वास, भाईचारा और जिस गंगा जमुनी तहजीब की बात करते हैं वह बनी रह सकती है। शास्त्रों के अनुसार भी गाय में सभी देवताओं का निवास है। गाय की पूजा करने से 33 कोटी देवताओं की पूजा हो जाती है। यह उल्लेख है कि गाय के गोबर में लक्ष्मी जी निवास करती हैं इसलिए किसी भी पूजनीय कार्यों में गाय के गोबर के लेप का प्रावधान है वहीं मूत्र में गंगा जी का वास कहा जाता है। जिस प्रकार गंगाजल वर्षों बरस रखने के उपरान्त भी खराब नहीं होता इसी प्रकार से गौमूत्र भी खराब नहीं होता। आयुर्वेद के अनुसार भी गाय का अपना महत्व वर्णित किया गया है। उसकी व्या या भी इसी प्रकार से की जा सकती है। कृषि प्रधान भारत के लिए गौवंश का अपना महत्व रहा है इसलिए भी इसके संरक्षण की बात की जाती रही है। इसलिए गाय को खाद्य सामग्री मानना ाारत वर्ष में बड़ी भूल है?

भारत वर्ष के मनीषियों ने उन सभी को धार्मिक आधार पर महत्वपूर्ण मान लिया जिनका मानव जीवन के लिए महत्व था। गंगा, गाय और पीपल के उदाहरण दिये जा सकते हैं। इनका वैज्ञानिक महत्व है जिसका वर्णन समय-समय पर होता रहता है। इसलिए भारत में गाय को मां के समान पूजा जाता है। समय के साथ व्यवहार और मान्यताएं कमजोर हुई हैं। इसका मतलब तो यह नहीं हो जाता है कि मान्यताएं और स मान की कमी का इस प्रकार का प्रतिकार कर दिया जाये कि गाय को खाद्य सामग्री मानकर उसका भक्षण किया जाये। यहां विदेशों का उदाहरण इसलिए मान्य नहीं हो सकता क्योंकि वहां हिन्दू जीवन पद्यति को मानने वाले नहीं हैं। भारत वर्ष में गुलामी काल में भी चाहे हिन्दू मान्यता को प्रभावित करने का प्रयास हुआ हो फिर भी अन्य धर्म के लोगों ने गाय के महत्व को स्वीकार किया और इसके बारे में अपने-अपने निर्देश दिये। कई मुस्लिम शासकों ने भी गाय को काटने के विरूद्ध आदेश दिये थे। लेकिन गुलामी मानसिकता और मुगलों के अत्याचार के बाद सनातन अनुयायी कमजोर होते गये। आजादी के बाद की सत्ता ने भी भारतीय संस्कृति की ओर मूंह नहीं किया और मैकाले को अपना आदर्श मानते रहे।

आजादी के बाद यह पहला ऐसा दौर आया है जहां सत्ता की मानसिकता भी हिन्दू जीवन पद्यति को संरक्षण और संवर्धन की दिखाई देती है। इसलिए कुछ लोगों में (अभी भी सभी में नहीं) पुरानी मान्यताओं के प्रति अनुराग पैदा हो रहा है। कुछ संगठन इन मान्यताओं का संरक्षण करने का प्रयास कर रहे हैं। गाय को खाद्य सामग्री न समझा जाये इसके लिए प्रयास कर रहे हैं। लेकिन डरे सहमे लोग इसके साथ नहीं आ पाते हैं। इन्हें अपनी संस्कृति पर संशय है वे आलोचना भी करते हैं। जिस प्रकार बहुसं यक अन्य पंथों की मान्यताओं का स मान करते हैं इसी प्रकार अपनी मान्यताओं का स मान चाहते भी हैं। जब कोई ऐसा चाहने वाला बोलता है तब टकराहट दिखाई देते हैं। यही सब दिख रहा है?

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