हेमंत के शपथ समारोह में कांग्रेस ही थी सबसे कमजोर कड़ी
झारखंड में हेमंत सोरेन ने अकेले ही मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इंडी गठबंधन ने वहां पर एकता दिखाने का प्रयाय किया। लेकिन जिस प्रकार की एकता का प्रभाव होता है वह एकता हाथ नहीं लग पाई। महाविकास अघाड़ी की हार ने शरद पवार और उद्धव ठाकरे को रोक दिया।
सुरेश शर्मा, भोपाल । झारखंड में हेमंत सोरेन ने अकेले ही मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इंडी गठबंधन ने वहां पर एकता दिखाने का प्रयाय किया। लेकिन जिस प्रकार की एकता का प्रभाव होता है वह एकता हाथ नहीं लग पाई। महाविकास अघाड़ी की हार ने शरद पवार और उद्धव ठाकरे को रोक दिया। वे ऐसा आत्म विश्वास नहीं जुटा पाये क्योंकि दंभ और दावों को झुठलाते हुए हार करारी हो गई। कांग्रेस ने भी महाराष्ट्र में शर्मनाक प्रदर्शन किया है। शर्मनाक प्रदर्शन तो आम चुनाव के बाद कांग्रेस का सभी जगह हुआ है फिर भी हेमंत ने राहुल गांधी को काफी आदर दिया। हेमंत की पत्नी राहुल गांधी के पास वाली सीट पर बैठी थी। कल्पना सोरेन विधायक भी चुनी गई हैं। झारखंड में कांग्रेस के सहारे के बिना हेमंत की सरकार को वह ताकत नहीं मिल पायेगी जिस प्रकार की इस समय दिख रही है। इसलिए राहुल और खडगे राष्ट्रीय पार्टी का प्रतिनिधित्व करने वाले दो प्रमुख नेता थे।
ममता थीं लेकिन वे इंडी गठबंधन में हैं भी और नहीं भी हैं। इसलिए उनका रोल अलग ही रहा। तेजस्वी और अखिलेश यादव शिरोमणी हैं लेिकन दो ही अपने-अपने राज्य में सत्ताधारी दलों से हार का स्वाद चखकर आये हैं। विजेता जैसी मानसिकता उनमें कैसे और किस प्रकार से आ सकती है? अखिलेश के माथे तो संभल की हिंसा का लेवल भी लगा है जो पुलिस पर चस्पा करके अपने माथे से उतारना चाह रहे हैं। इसके बाद भी इन दोनों नेताओं को राहुल गांधी और खडगे वाली कांग्रेस से बेहतर ही कहा जायेगा। कारण यह है कि इस समय राष्ट्रीय पार्टी होने के बाद भी कांग्रेस सबसे कमजोर दौर में है। वह क्षेत्रीय दलों से सीटें मांगती हुई दिखाई देती है। महाराष्ट्र में लोकसभा अिधक जीतने के बाद भी वह विधानसभा में कुछ नहीं कर पाई क्योंकि समूचे देश में कांग्रेस का अपना कोई प्रभाव बचा नहीं है। हरियाणा में संभावना थी इसलिए सहयोगी दलों काे भाव नहीं दिया और हार का स्वाद चख लिया। जम्मू कश्मीर में वह पहले दिने से ही कमजोर दिखी थी। अब्दुल्ला परिवार के रहम पर वहां कुछ सीटें जीती। स्ट्राइक रेट शर्मनाक रहा। यूपी के उपचुनाव से तो वह बाहर ही हो गई और सपा के लिए भी बोझ बन गई। राज्यों में कोई खास प्रभाव दिखाई नहीं दिया।
इसलिए हेमंत साेरेन के शपथ समाराेह में जिस प्रकार का उत्साह दिखाया जा सकता था वैसा इवेंट हो नहीं पाया। बुझे चेहरों के साथ मंच की शोभा बढ़ाने वाले राहुल सभी सहयोगी दलाें में ऊर्जा नहीं पैदा कर पाये। इसलिए इस समारोह में सबसे कमजोर कड़ी राहुल गांधी और उसकी कांग्रेस की रही। इसका एक आधार यह भी है कि हेमंत से आधी सीट पाने वाली कांग्रेस न तो डिप्टी सीएम मांग पाई और न ही अपने किसी नेता को केबिनेट मंत्री की शपथ ही पहले दौर में दिला पाई। यही तो कांग्रेस की कमजोरी?