जबरदस्ती का प्रत्याशी बता कर सीएम मोहन यादव ने दिग्गी को घर में ही घेरा
इस बार राजगढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे दिग्विजय सिंह भाजपा के निशान पर आ चुके हैं। सबसे पहले मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने उनको निशाने पर लिया और उन्हें जबरदस्ती का प्रत्याशी बताकर चुनाव को एक दिशा देने का काम कर दिया।
सुरेश शर्मा भोपाल। इस बार राजगढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे दिग्विजय सिंह भाजपा के निशान पर आ चुके हैं। सबसे पहले मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने उनको निशाने पर लिया और उन्हें जबरदस्ती का प्रत्याशी बताकर चुनाव को एक दिशा देने का काम कर दिया। क्षेत्र की महिलाओं के साथ एक आयोजन में मोहन यादव ने इस प्रकार का तंज कसा है। वैसे भी दिग्विजय िसंह इस बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ना चाह रहे थे केन्द्रीय नेतृत्व के आदेश पर उन्हें चुनावी समर में उतरना पड़ा है। भोपाल की तरह उनका समीकरण फंसता हुआ दिखाई दे रहा है।
प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव चांचौड़ा विधानसभा के बीनागंज में एक आयोजन में शामिल हुए। भाई दूज के आयोजन में महिलाओं का आयोजन था। मुख्यमंत्री ने बहनों को याद दिलाया कि आपके क्षेत्र से िम. बंटाढ़ार चुनाव मैदान में आ चुके हैं। मोहन यादव ने कहा कि भाजपा ने यहां से रोड़मल नागर के रूप में जबरदस्त प्रत्याशी दिया है जबकि दिग्विजय सिंह जबरदस्ती बनाये गये प्रत्याशी हैं। वे खुशी ने चुनाव में उतरे ही नहीं हैं। मरे मन से चुनाव मैदान में उतरने वाले इस व्यक्ति को भी घर बिठाना है।
उल्लेखनीय है कि मोहन यादव ने जिस प्रकार का तंज कसा है वह दिग्विजय सिंह पर सटीक बैठता है। पिछले लोकसभा चुनाव में वे भोपाल से चुनाव लड़े थे। हर बार की अपेक्षा अधिक वाेटों से चुनाव में पराजित हुए थे। इस समय दिग्विजय सिंह राज्यसभा के सदस्य हैं और उनका कार्यकाल भी दो वर्ष से अधिक का शेष है। उन्होंने यह भी कहा था कि कार्यकाल राज्यसभा का शेष है इसलिए चुनाव लड़ने की जरूरत नहीं हे। हायकमान ने जबरदस्ती मैदान पर उतार दिया। इसलिए चुनाव लड़ने अा गये हैं। मोहन यादव ने कहा कि देश में राम मंदिर का निर्माण हुआ है। वातावरण राममय है। दिग्विजय सिंह सनातन विरोधी हैं यही कारण था कि भोपाल से हारे थे जबकि राजगढ़ तो सनातन मानने वालों का क्षेत्र है। यहां से उन्हें हराने की अपील मोहन यादव की। इस प्रकार दिग्विजय के क्षेत्र में आकर मुख्यमंत्री ने बहत ही चतुराई से दिग्गी राजा को घेर लिया।
मध्यप्रदेश में धीरे-धीरे महल कर राजनीति कमजोर होती जा रही हे। भाजपा में शािमल होने वाले सिंधिया के भी ऐसे ही हालात हें। ऐसे में राजगढ किले की दिवारे भी हिलने लग गई हैं। लक्ष्मण िसंह चांचौड़ा से विधानसभा का चुनाव बड़े अन्तर से हार चुके हैं। जबकि मुकाबला त्रिकोणीय माना जा रहा था। अब यही हाल दिग्विजय सिंह के होने वाले हैं यही बात भाजपा के नेता कहते हुए दिखाई दे रहे हैं। मोहन यादव ने समीकरण साधना शुरू कर दिये हैं।
पहले कमलनाथ और पटवारी ने बनाया दिग्गी को फुटबाल
राजनीति में हर दिन समान नहीं होते हैं। बात दिग्विजय सिंह की ही कर लेते हैं। जब से उन्होंने उत्तराधिकार बेटे को देने का निर्णय लिया उनकी राजनीतिक धमक कमजोर होती हुई दिखाई दी है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कमलनाथ ने जेब से पर्ची निकाल कर बता दिया था कि दिग्विजय सिंह भोपाल से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। उनका मन था या नहीं पता नहीं चल पाया था। भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा सिंह को उनके सामने उतारा और बुरी तरह से पराजय हो गई। यह साख को बड़ा बट्टा था क्योंकि साध्वी को हिन्दू आतंकवाद की प्रयाेगशाला बनाने में दिग्विजय की भूिमका भी थी। अबकी बार मना करने के बाद भी जीतू पटवारी ने राजगढ़ से मैदान में उतरवा दिया। अब यहां की स्थिति के बाद सब कुछ समझ में आ जायेगा।