सभी दलों के नेताओं को अपने में समा रही है भाजपा मुस्लिम करें भाजपा पर पुनर्विचार

पिछले दस बरस से देश में और कई राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। सरकारों के कामकाज को लेकर कोई विशेष टिप्पणी भाजपा के आलोचक समीक्षकों की सामने नहीं आई हैं। राजनीतिक दलों का एक पक्ष जरूर रहता है

सुरेश शर्मा। पिछले दस बरस से देश में और कई राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। सरकारों के कामकाज को लेकर कोई विशेष टिप्पणी भाजपा के आलोचक समीक्षकों की सामने नहीं आई हैं। राजनीतिक दलों का एक पक्ष जरूर रहता है कि राजकाज में भाजपा सभी वर्गों के प्रति समानता चाहे रखती होगी लेकिन राजनीतिक रूप से उसका ध्यान हिन्दू समाज की ओर अधिक है। जब बात राजनीतिक रूप से कही जाती है तब इस विचार समान भाव से करना होगा कि चुनावी राजनीति में वोट कि चिंता तो करना ही होती है। यदि भारत का मुसलमान भाजपा के प्रति वोट देने के विचार की समीक्षा करता है तब आने वाले समय में वह अपनी नीतियों में बदलाव कर सकती है। यूपी में मुस्लिम नेता को मंत्री बनाकर और केरल से लोकसभा के चुनाव की टिकिट देकर भाजपा ने अपने हाथ बढ़ाये हैं। आने वाले लोकसभा चुनाव में यदि मुस्लिम समाज भी अपनी नीति में बदलाव के संकेत देता है तब देश की राजनीति में व्यापक बदलाव की संभावना देखी जा सकती है। वैसे भी भाजपा ने सभी दलों के खास नेताओं को अपने खपाने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। इसके सार्थक परिणाम उन राज्यों में आने वाले हैं जहां सांगठनिक रूप से भाजपा ताकतवर नहीं है। इनका प्रयोग कई राज्यों में परिणामदायक दिखाई दिया है। दक्षिण के राज्यों में भाजपा के जनाधार में बढ़ोतरी यदि लोकसभा सीटों में बदलती है तब भी देश की राजनीति में बड़े बदलाव की संभावना देखी जा सकेगी।
भाजपा ने अपनी राजनीित में बड़ा बदलाव किया है। केरल में मल्लापुरा सीट से अब्दुल सलाम को भाजपा ने अपना प्रत्याशी बनाया है। सलाम ने टिकिट मिलने के बाद कहा है कि भारत मुसलमानों और ईसाईयों के िलए स्वर्ग के समान है। यूपी में भाजपा की योगी सरकार में दानिश आजाद अंसारी को राज्यमंत्री बनाया है। इससे पहले मोहसीन रजा को मंत्री बनाया था। इसे भाजपा की मुस्लिम समाज में प्रवेश की पहल के रूप में देखा जा सकता है। कुछ पार्षद भी इस समुदाय के हैं जो भाजपा में काम कर रहे हैं। पिछले दिनों जब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जम्मू कश्मीर के दौरे पर गये थे तब वहां के मुसलमानों की प्रतिक्रिया को भी भारत को नये युग में प्रवेश के रूप में देखा जा रहा है। अब मुस्लिम समुदाय की ओर से प्रतिक्रिया का इंतजार किया जा रहा है। मोदी सरकार की नीति है कि वह भारत के प्रत्येक नागरिक के िवकास और समाजिक उत्थान की चिंता करती है।सरकार की नीतियों को लेकर न तो कभी मुस्लिम समुदाय की ओर से शिकायत आई है, न ही कभी विपक्ष के नेताओं की ओर से ही कुछ कहा गया है और न ही मोदी आलोचक समीक्षकों की ओर से ही कोई शिकायत आई है। इसलिए वोट और राजनीति के मामले को सामाजिक टकराव की रूप में नहीं देखा जा सकता है।
एक बात व्यवहारिक रूप से स्वीकार करना होगी कि सत्ता के िलए बहुमत चाहिए और बहुमत के लिए वोट। वोट को संभालने के किसी भी यत्न को िवरोधी प्रयास नहीं माना जा सकता है। इसलिए जब भाजपा दस साल सरकार में रहकर समन्वय की बात कर रही है और मुस्लिम समाज की आेर से और अधिक उग्र होकर विरोध में वोट किये जा रहे हैं तब राजनीतिक रूप से समन्वय की अधिक अपेक्षा करने की बात नहीं सोचना चािहए? सरकार की ओर से यही भाव जारी रहेगा। सवाल यह भी उठता है कि आज के राजनीतिक समीकरणों में कोई एक दल या दलों का समूह भाजपा को हराकर सरकार पर कब्जा करने की स्थिति में दिखाई दे रहा है? कांग्रेस उत्तर भारत में लगभग खत्म या कमजोर जैसी हो गई हे।  दक्षिण में कुछ राज्यों में उसका अपना प्रभाव है जबकि कुछ राज्यों में उसका गठजोड़ है। मोदी खुद दक्षिण में भाजपा का प्रभाव बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। उनकी यात्रा बराबर हो रही है। कर्नाटक में उसका अपना प्रभाव है फिर भी जदएस के साथ समझौता किया है। आन्ध्रा में टीडीपी से बात बन गई है। जगन रेड्डी के साथ भी िरश्ते अच्छे हैं। तमिलनाडु में कुछ नेता मिल गये और कुछ अधिकारी साथ आ गये। यिद ऐसे नेताओं के आने का सिलसिला चलता रहा तो कुछ और नाम भी सामने अा सकते हैं। इसिलए भाजपा का दक्षिण में प्रभाव बढ़ने की समीक्षा खुद मुस्लिम समाज को भी करना चाहिए।
कांग्रेस ने इंडी गठबंधन बनाया था। उसके सहयोगी दल चुनाव से पहले ही साथ छोड़ रहे हैं। सबको एक ही डर है कि सरकार तो मोदी की ही आ रही है। सबको यह भी डर है कि गठबंधन के कारण उनके पक्ष में पड़ने वाला मुस्लिम वोट दूसरी पार्टी का दरवाजा न देख ले? इसलिए एक दूसरे के प्रति संदेश साफ दिखाई दे रहा है। ममता का साथ नहीं मिल पाया है। महाराष्ट्र में सीटों का बंटवारा बार-बार लटक रहा है। आप और कांग्रेस का गठबंधन मौका परस्ती है क्योंकि कांग्रेस की दोनों ही राज्यों में सरकार आप ने ही छीनी है। फिर भी गठबंधन करने का राजनीतिक आधार क्या है? समूचा विपक्ष मुस्लिम वोटों के िलए आपस में संदेह कर रहा है जबकि भाजपा बहुसंख्यक वोटों का प्रतिश्ात बढ़ाने के लिए लगतार प्रयास कर रही है। स्वभाविक रूप से कांग्रेस भाजपा के लिए चुनौती हो सकती है लेकिन केसी वेणुगोपाल और जयराम रमेश विचार से कांग्रेसी कम वामपंथी अधिक हैं। राहुल को कब्जे में कन्हैया कुमार ने ले रखा है। जिसने पिछला लोकसभा चुनाव वाम दलों से लड़ा था। यह भी कहा जा सकता है कि कांग्रेस का संचालन वाम विचार से ओतप्रोत नेता कर रहे हैं। पार्टी का नेतृत्व हिन्दू विचार के करीब नहीं है क्योंकि सोनिया गांधी मूलत: इसाई हैं और राहुल-प्रियंका के धर्म का कोई ठोस आधार नहीं है। वे कहते तो खुद को हिन्दू हैं लेकिन वंशबेल कई धर्मो का समायोजन है। ऐसे में देश के बहुसंख्यक समाज के साथ उसका तालमेल जल्द ही ढ़ोग लगने लग जाता है।
भाजपा ने अपनी रणनीति में एक और बड़ा बदलाव किया है। राजनीति में निराश और अपने दल में अपना भविष्य असुरक्षित समझने वाले नेताओं के िलए भाजपा ने अपने दरवाजे खोल दिये हैं। इसका असर यह हो रहा है कि जिन राज्यों में भाजपा के पास शक्ति नहीं है वहां टीम बन रही है और उसके पास जहां अपनी शक्ति है वहां उसकाे कोई दल चुनौती नहीं देख सकता है। मध्यप्रदेश और छग में जिस प्रकार से प्रभावशाली नेता और कार्यकर्ताओं का पार्टी में प्रवेश हो रहा है उससे इन राज्यों की शेष बची सीटों को पार्टी प्राप्त कर सकती है। इस सभी समीकरणों को भाजपा एक रणनीति के तहत कर रही है। इसलिए भारत के मुस्लिम समाज को यह सब समझने की जरूरत है। उसे भाजपा को अछूत मानने की प्रथा को जल्द समाप्त करना चािहए। जब राजनीतिक दलों में भाजपा को बछूत मानने का चलन खत्म हो गया तो इस समाज में क्यों है? यह भ्ाी समझने की जरूरत है कि मुस्लिम देशों में माेदी की लोकप्रियता बराबर बढ़ रही हे। इसके प्रमाण के रूप में कतर में भारतीय सैनिकों को फांसी की सजा दी गई थी। मोदी सरकार की कूटनीति और प्रभाव के कारण उन्हें अब सकुशल भारत लाया जा चुका है। कतर इस्लामिक देश है।
यूएई में 28 एकड़ में एक भव्य मंदिर बनाने के लिए जमीन वहां के शासक ने ही दी है। जब मोदी मंदिर का शुभारंभ करने गये तब उनको शेख वहां उपस्थित थे। इस बदलाव को भारत के मुसलमानों को समझना होगा। भारत का मुस्लिम समुदाय इस्लामिक देशों से अधिक सुविधाओं के साथ यहां रह रहा है। जबकि सब जानते हैं िक आजादी के समय भारत का बंटवारा मजहब के आधार पर हुआ था। मुसलमानों ने पाक ले लिया था और शेष बचे समुदायों को भारत मिला था। जहां अिधकांश हिन्दू ही थे। भारत के मुसलमानों को धार्मिक आजादी है। उन्हें कहीं भी कुछ भी बोलने की आजादी है। उनका बहुसंख्यक होने पर आचरण भी देश हजम कर रहा है। बात चाहे कश्मीर की हो या नूंह की। उनका समर्थन बहुसंख्यक समाज से अधिक किया जाता है। इसलिए भारत की राजनीतिक मुख्यधारा को समझने का समय है। 2024 के आम चुनाव में यदि बंगाल और कर्नाटक की भांति भाजपा के विरोध में वोट दिया गया तो समाज को अपनी बात को सुधारने के लिए पांच साल इंतजार करना होगा। मोदी जैसा नेता जिसका सरकार चलाने का अंदाज टोपी अस्वीकार करने के बाद अब काफी बदला है। अब बदलने की बारी मुस्लिम मतदाताओं की है।
(लेखक हिंदी पत्रकारिता फाउंडेशन के चेयरमैन हैं)  संवाद इंडिया

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