बाबा साहब आरक्षण के विरोधी थे

आरक्षण सबसे बड़ा बाधक है जातियों के बंधन से मुक्ति का

सुरेश शर्मा। संविधान निर्माता बाबा साहब अम्बेडकर आरक्षण के घोर विरोधी थे। उनका मानना था कि आरक्षण सहारा तो हो सकता है लेकिन विकसित होने का आधार नहीं हो सकता। वे इसका अनुभव कर चुके थे। उनका जातियों के प्रति वह लगाव नहीं था जिस प्रकार से उनके अनुयाई आज प्रदर्शित कर रहे हैं। उन्हें मिला अम्बेडकर उपनाम उनके ब्राह्मण शिक्षक द्वारा दिया गया था। बाबा साहब की खासियत यह थी कि महान बनने के बाद भी उन्होंने इसे अपने साथ चस्पा करके रखा। वे आज के नेताओं की भांति नहीं थे कि समाजिक असन्तुलन पैदा करके अपने समाज की प्रगति की बात करते हैं। जब सामाजिक विद्वेष को समाप्त करना है तो उसे सामाजिक विद्वेष से तो कम से कम नहीं सुधारा जा सकता है। आज जब समाज में बड़ा बदलाव आ चुका है तब इस बात पर विचार करने की जरूरत है कि क्या आरक्षण दलित व आदिवासी समाज के लिए लाभकारी है या समानता के लिए बाधक है? बाबा साहब ने संविधान में इसका दस साल के लिए प्रावधान किया था लेकिन आगे परिस्थितियों के लिए तय करने का आधार दिया था। लेकिन आरक्षण सुधार की नहीं जातियों के वोट पाने का आधार बनता चला गया। विसंगती तो देखिए जिस जाति के आधार पर आरक्षण प्राप्त किया जाता है उस जाति का उल्लेख करना दंडनीय अपराध है। इसलिए कहा जा सकता है कि आज जातियों के बंधन को तोडऩे और भाईचारे के लिए आरक्षण की टीस सबसे अधिक जिम्मेदार है। लेकिन बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे?

यह सच है कि दलित और आदिवासी समाज किन्हीं कारणों से उतना विकसित नहीं हो पाया था। इसे प्रचारित इस प्रकार से किया जाता है कि शिक्षा ब्राह्मणों के हाथ में थी और वे अस्पृश्यता के कारण उसे दलितों तक नहीं आने देते थे। लेकिन इसके अनेकों उदाहरण समाज में हैं। हम इन उदाहरणों को एकलव्य से शुरू करते हुए बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर तक आ सकते हैं। एकलव्य के गुरू द्रोणाचार्य थे जो ब्राह्मण थे और बाबा साहब को अम्बेडकर बनाने वाले भी ब्राह्मण थे। उन्हें विदेश में शिक्षा दिलवाने तक का उनका प्रयास सभी ओर से कहा जाता है। फिर भी यह मानने में किसी को कोई संकोच नहीं है। इसके बाद भी अम्बेडकर आरक्षण के पक्षधर नहीं थे। आरक्षण को संविधान में शामिल करने का आधार मद्रास कोर्ट का वह आदेश था जिसमें वहां आरक्षण का प्रावधान अंग्रेजों के समय से ही था। उसी आरक्षण को दस साल में समाप्त करने की बात कहते हुए बाबा साहब ने आरक्षण का प्रावधान संविधान मेंं किया था। उसे अब सुविधा या समानता प्राप्त करने के लिए नहीं दलित समाज के वोट के लिए आगे बढ़ाया जा रहा है। यही कारण है कि आरक्षण से समाज को समानता लाने में कितना सहयोग मिला है इसका परीक्षण कराने में सबको भय लगता है। बिहार चुनाव से पहले संघ प्रमुख के एक बयान को इसी संदर्भ में देखा जाता है। कुल मिलाकर भारत की राजनीति नकारात्मक विषयों पर केन्द्रीत होती जा रही है।

देश में सबसे बड़ा विषय यही रहा है कि भारत में अस्पृश्यता रही है। इसके कई प्रमाण भी सामने आते हैं। जो लोग उम्र दराज हैं उन्होंने इस प्रकार के घटनाक्रम को देखा भी है। इसलिए केवल यह मान लेना कि अस्पृश्यता प्रतिरोध की भावना से होती थी न्याय नहीं होगा? दुखद पक्ष यह है कि काम के आधार पर होने वाले व्यवहार को जाति तक पहुंचा देना अनुचित था। जिसे कालान्तर में सुधार लिया गया। भगवान श्रीराम का केवट के साथ शिक्षा ग्रहण करना और श्रीकृष्ण का बिना भेदभाव के साथ ग्वालों के साथ खेलना भेदभाव न होने को बल प्रदान करता है। जिसे हम अस्पृश्यता मानकर आज विपरीत या बदले की भावना से भेदभाव करते हैं। उस समय से भी अधिक ताने आज देते हैं वह वास्तव में कर्म के कारण होता था। जिसे समूची जाति के साथ जोड़ दिया गया चाहे उस जाति के कुछ लोग शुद्ध कर्म ही क्यों न करते हों। इसे एक उदाहरण के साथ समझा जा सकता है। हम सब घर में बाथरूम का प्रयोग करते हैं। पानी की टंकी एक ही होती है जो छत पर रखी होती है और पूरे घर के नल कनेक्शन उसी टंकी से होता है। अब हम बाथरूम में प्रवेश करते हैं। एक स्थान होता है जहां व्यक्ति शौच आदि से निवृत्त होता है। वहां पर भी नल लगा होता है और आज के हिसाब से आधुनिक फुव्वारा भी लगा होता है जिससे अमिताभ बच्चन गाना गाते एक फिल्म मेंं दिखते हैं। एक बेशिन होता है जहां व्यक्ति मंजन करता है और एक स्थान होता है जहां स्नान किया जाता है। वहां भी नल और फव्वारा लगा होता है। यहां फव्वारे का स्वरूप बड़ा होता है। यहां सवाल यह उठता है कि जब पानी की टंकी एक है तब यह अलग-अलग व्यवस्था करने की क्या जरूरत है? एक नल से सभी काम किये जा सकते हैं। यहां हर जाति के व्यक्ति के घर में कमोवेश ऐसी ही व्यवस्था होती है। नहाने और शौच के लिए ही नल अलग-अलग क्यों न हैं? कोई भी एक नल से सभी काम नहीं करता? इसका कारण यह है कि काम की तासीर के हिसाब से नलों का निर्धारण होता होता है। जो गंदगी के साथ काम आने वाला नल है उसके साथ अस्पृश्यता होती है। यही उस समय होता था। आज वे सभी प्रथाएं समाप्त हो गई हैं क्योंकि देश ने प्रगति कर ली है और व्यवस्थाओं को बाजार ने आधुनिक बना दिया है। इसी कारण अस्पृश्यता होती थी लेकिन वह प्रतिशोध और शोषण के लिए नहीं होती थी। बाद में जातियों को इस काम में मान लेने के कारण सामाजिक बुराई हुई जिसको ठीक करने में समय लगा।

अब वह पुरानी बातें आज के आधुनिक युग में उपयोग की जा रही है और उनका अन्तहीन उपयोग आने वाले समय में भी उस समानता के लिए बाधक बनेगा जिसको ठीक करने के प्रयास बाबा साहब अम्बेडकर ने किया था। आज राजनीतिक पार्टियां दलितों और आदिवासियों के वोट लेने के लिए किसी भी कद तक जा रही हैं। देश में प्रतिभाओं की अनदेखी करके आरक्षण जारी रखा जा रहा है। जबकि अब समय आरक्षण से आये परिवर्तन को परखने और प्रतिस्पर्धा से आगे आने का आ गया है। ऐसा नहीं होने से जिस भारत की कल्पना आज हम कर रहे हैं उस लक्ष्य को पाना संभव नहीं होगा। इसलिए अम्बेडकर के महान विचारों को संभालने और उसके अनुरूप सामाजिक व्यवस्थाओं को प्राप्त करने में आरक्षण सबसे बड़ा बाधक है। इसका आशय यह कतई नहीं है कि आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए। इसका आशय यह है कि आरक्षण से आये सुधार के आधार पर उसको समय की मांग के अनुसार परिस्कृत किया जाना चाहिए। बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर को उनके कार्यों के कारण सम्मान मिलना चाहिए उनकी जाति के आधार पर नहीं? दुखद पक्ष यह है कि बाबा साहब ने देश को आज का भारत बनाने के लिए क्या किया इस पर चर्चा करने की बजाए उनके जातिगत समीकरणों को अपने दल की ओर मोडऩे के लिए सभी प्रयास किये जा रहे हैं?

जिस देश में महापुरूषों को धर्म और जातियों के आधार पर देखा जाता है उनके काम को छुपाया जाता हो उस देश के भविष्य के बारे में समझा जा सकता है। जिस देश में महापुरूषों को अपमानित करने का प्रयास किया जाता हो वहां के बारे में विचार किया जा सकता है। जिस देश के बौने नेता महापुरूषों को अपशब्द की भाषा से संबोधित करते हों उसके बारे में देश को विचार करना ही होगा। बाबा साहब देश के महान सपूत थे दलितों भर के सुधारक नहीं। महात्मा गांधी विश्व कल्याण के जनक थे। वीर सावरकर ने आजादी के आन्दोलन में महान क्रांतिकारी की भूमिका निभाई थी। पंडित नेहरू ने आधुनिक भारत के निर्माण की नींव रखी थी। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देश को एक करने का महान लक्ष्य पूरा किया था। इसलिए महापुरूषों के बारे में अवधारणा तय करने का अधिकार उन नेताओं को नहीं हो सकता है जो अभी महापुरूष तो दूर विजन वाले भारत निर्माण में भूमिका निभाने पुरूष तक नहीं बन पाये हैं? इसलिए इस बात पर विचार करना चाहिए कि बाबा साहब के विचारों को भारत बनाने के लिए आरक्षण का नया विकल्प खोजना चाहिए।

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