बांग्लादेश में तख्ता पलट देशी विदेशी शक्तियां एक साथ… आखिर हिन्दू व उनके मंदिरों पर हमले क्यों?
बांग्लादेश में शेख हसीना की सत्ता का तख्ता पलट हो गया। स्थिति यह हुई कि उन्हें देश छोड़कर भारत में शरण लेना पड़ी। लेकिन यह कुछ समय के लिए है उन्हें अपना ठीकाना कहीं और बनाना होगा। अब यह अलग बात है कि तख्ता पलट वहां की जरूरत थी या इसमें शभी नेपाल की भांति कोई कूटनीतिक चाल।
सुरेश शर्मा
बांग्लादेश में शेख हसीना की सत्ता का तख्ता पलट हो गया। स्थिति यह हुई कि उन्हें देश छोड़कर भारत में शरण लेना पड़ी। लेकिन यह कुछ समय के लिए है उन्हें अपना ठीकाना कहीं और बनाना होगा। अब यह अलग बात है कि तख्ता पलट वहां की जरूरत थी या इसमें शभी नेपाल की भांति कोई कूटनीतिक चाल। लेकिन वह सब हो गया जो किसी भी इस्लामिक देश की नियती होती है। बांग्लादेश में ऐसा होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता था क्योंकि शेख हसीना का निर्वाचन हमेशा ही विवादा में घिरा हुआ होता था। पूर्व प्रधानमंत्री और विपक्ष की नेता खालिदा जिया को जेल में डाल रखा था। उनका परिवार निर्वासित जीवन जीने का विवश था। इसके बाद अब कई ऐसी राजनीतिक संभावनाएं पैदा होने जा रही हैं जिससे कई नये घटनाक्रम सामने आ सकते हैं? भारत पड़ौसी देश है इसलिए उसका इन घटनाओं से प्रभावित होना स्वभाविक है। इसलिए भारत में भी राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से आगे बढ़े हैं। केन्द्र सरकार ने अपनी की गई कार्यवाही से सर्वदलीय बैठक में अवगत कराया। विपक्षी नेताओं ने सरकार के कदमों का साथ देकर भारत की विदेश नीति का समर्थन करके एकता का परिचय दिया। यही भारत की विशेषता रही है। लेकिन एक चिंता की बात यह है कि बांग्लादेश में सत्ता बदलाव के लिए हुआ आन्दोलन हिंसक हुआ जो आमतौर पर हो ही जाता है। लेकिन यह हिंसा सत्ता के खिलाफ होने के साथ वहां के अल्पसंख्यक हिंदू समाज के प्रति हो गई इसे गंभीर चिंता के साथ उस मानसिकता के रूप में भी देखा जाना चाहिए जो बर्बरता की ओर मानसिकता को बताती है। इसकी जरूरत नहीं थी?
हम भारत के लोगों को यह समझने की जरूरत है। आखिरकार बंगलादेश के तख्ता पलट में हिन्दू समाज के लोगों और उनके मंदिरों पर हमला करने की क्या जरूरत थी? वे तो तख्ता पलट का विरोध नहीं कर रहे थे? उनके व्यापार और घरों को नुकसान पहुचाने का मकसद आखिर क्या हो सकता है? मतलब साफ है कि बांग्लादेश हो या पाकिस्तान यहां का हिन्दू समाज उनकी नागरिकता केवल कागजी है। उनको दाेयम दर्जे का नागरिक माना जाता है। यही कारण है कि किसी भी आन्दोलन में उन पर हमला होता है। जबकि भारत में बंटवारे के समय बराबर का हिस्सा ले लेने के बाद भी पूर्ण दावेदारी है। वक्फ के नाम पर संपत्ति पर कब्जा है। बराबर की दादागिरी है। यह भारत का चरित्र है कि वह सबको साथ लेकर और ससम्मान अपने साथ रख रहा है। क्या यह सीख पाक और बंगलादेश को स्वीकार नहीं करना चाहिए? इसीलिए भारत सरकार ने वहां के अल्पसंख्यकों को लेकर चिंता की है। विपक्ष ने भी इस चिंता के साथ खुद को जोड़ा है। भारत की संसद में इस बारे में विदेश मंत्री का बयान आया है। उन्होंने साफ किया है कि हम भारतीयों को सुरक्षित वापस लाने के प्रयास कर रहे हैं और वहां अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए वहां की सेना के अधिकारियों से बराबर संपर्क में हैं?
सवाल यह है कि क्या इस विषय पर भारत सरकार को कोई कठोर कदम उठाने की जरूरत है? अभी देखा जा रहा है कि आखिर यह विवाद कितने दिन तक चलता है? भारत की सरकार उन देशों से भी संपर्क कर रही है जिनकी इसमें भूमिका है। उनसे भी संपर्क है जिसको इससे प्रभाव हो रहा है। इसलिए कुछ खास विषयों को समझने की जरूरत है। इन दिनों कूटनीति का नया सिलसिला चला है। अब किसी देश को सेना से गुलाम बनाने की जरूरत नहीं होती है। उसे आर्थिक रूप से गुलाम बनाया जाता है। सबसे पहले श्रीलंका को चीन ने आर्थिक गुलामी के करार पर ला खड़ा किया था। उसे भी पाकिस्तान की भांति गुलाम रखने की चीन की योजना थी। वह भारत का करीबी और पड़ौसी देश रहा है। वहां शान्ति सेना के माध्यम से भारत ने उस समय भी बड़ी भूमिका निभाई थी जब लिट्टे का संघर्ष चल रहा था। जब चीन ने आर्थिक गुलामी की ओर श्रीलंका को ले ही लिया गया था भारत ने सहायता करके उसे बचाया। नेपाल के चुनाव में प्रचंड दहल की सरकार बनी। उनका झुकाव भारत की ओर रहा। भारत नेपाल का स्वभाविक मित्र रहा है। 1952 में तो वहां के राजा त्रिभुन ने नेहरू जी के सामने भारत के साथ विलय का प्रस्ताव दिया था। लेकिन वहां अधिक हिन्दू होने के कारण नेहरू ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था। उस नेपाल में चीन ने हस्तक्षेप किया और सत्ता का तख्ता पलट करवाकर अपने समर्थक को प्रधानमंत्री बनवा दिया। अब ओली वहां के प्रधानमंत्री हैं।
इसके बाद अगला पड़ाव बांग्लादेश का आया। यहां चीन व पाक की एजेंसी ने मिलकर खेला किया। इसमें अमेरिका का हाथ भी बताया जा रहा है। यह सब भारत को अपने लिए खतरा माान रहे हैं। भारत एक बड़ी आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। जिससे चीन और यहां तक अमेरिका भी परेशान हैं। इसलिए भारत के आसपास सत्ता का समीकरण इसी प्रकार का किया जा रहा है। यह इस समय कहा जा सकता है कि भारत के आम चुनाव में विपक्ष को इतना ताकतवर बनाने के पीछे भी इन सबकी भूमिका रही है। विदेशों से संचालित होने वाला सोशल मीडिया मोदी के खिलाफ अफवाह फैलाने की भूमिका निभा रहा था। जिससे भ्रमित होकर भारत के मतदाताओं ने अपना मतदान या तो कम किया या विरोध में किया। इसलिए बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना जो भारत और चीन के साथ समान संबंध रखना चाहती थीं निशाने पर आ गईं और उन्होंने सत्ता का गंवा दिया। जहां भी इस प्रकार से सत्ता का बदलाव हुआ है उन देशों ने अपने महापुरूषों का इसी प्रकार से अपमान किया है। बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की प्रतिमाओं को जिस अनादर के साथ तोड़ा गया है उससे यह लगता है कि हिंसक तत्व काफी सोच समझ कर सामने आये थे।
बांग्लादेश में तख्ता पलट एक राजनीतिक घटनाक्रम है। इसमें विदेशी ताकतें शामिल हैं। जिस प्रकार से खालिदा जिया को पहले ही दिन रिहा किया गया उससे यह संदेश साफ पढ़ा भी जा सकता है। लेकिन यह तख्ता पलट धार्मिक आयोजना नहीं था। इसलिए सवाल यह उठता है कि वहां के नागरिक हिन्दूओं पर हमले क्यों हुए? यह इस्लामिक मानसिकता है। यह बात एक बार फिर से प्रमाणित हो गई। इस बात को भारत के उन सभी को समझना होगा जो भारत की किसी भी छोटी सी घटना पर शोर मचाते हैं। हालांकि भारत का कोई भी नागरिक धार्मिक आधार हिंसा का न तो प्रवर्तक है और न ही समर्थक। लेकिन वह यह भी बर्दास्त नहीं कर सकता है कि पड़ौसी देशों में इस प्रकार की मानसिकता सामने आये। बांग्लादेश में हिन्दू अल्पसंख्यकों पर हमले और प्रमुख मंदिरों को तोड़ने से बाबर काल की याद ताजा करा देता है। इसकी प्रतिक्रया भारत में न हो इसके लिए सरकार को चिंता करने की जरूरत है। अभी तक किसी भी इस्लामिक धार्मिक संस्था ने बांग्लादेश में हिन्दूओं पर हुए हमलों की निंदा नहीं की है। जबकि इसकी जरूरत है। एक साथ खड़ा दिखने के लिए भी इसकी जरूरत है।
क्या यह गंभीर चिंतन का विषय नहीं है कि एक विदेशी षडयंत्र के तहत भारत में मोदी काे बहुमत नहीं लेने दिया गया। जिस दिन मोदी सरकार शपथ ले रही थीउसी िदन से आतंकवादियों ने हमारी सेना पर हमले करना शुरू कर दिये। अनेकों जवान शहीद हुए? कौन जिम्मेदार है? नेपाल में भारत समर्थक प्रधानमंत्री बदल दिये गये क्योंकि भारत की सरकार को भारत के लोगों ने ही कमजोर कर दिया गया। कौन जिम्मेदार है। अब बांग्लादेश की भारत समर्थक प्रधानमंत्री का तख्ता पलट दिया गया। वहां हिन्दूओं पर हमले हो रहे हैं। कौन इसकी जवाबदारी लेगा क्या भारत सरकार काे कमजाेर करने वाले आसूं बहायेंगे? यदि मोदी की सत्ता बदलना थी तो वैसा निर्णय लेते? आखिर देश को कमजोर करने का निर्णय क्यों हुआ? हमें सबक लेने की जरूरत है। जब भारत का तिरंगा देख कर युद्ध विराम हो जाया करते थे अब बंगलादेश जैसा छोटा सा देश अपने नागरिक हिन्दूओं को मार रहा है। विचार तो करने की बात है। लेकिन भारत आज भी ताकतवर देश है। चुनाव की घटनाओं से वह उभर चुका है। सरकार के निर्णय उतने ही ठोस होंगे जैसे पहले हुआ करते थे। उन्ही निर्णयों की प्रतीक्षा है। लेकिन यह सवाल उतनी ही मौजू है कि बंगलादेश में तख्ता पलट में हिन्दूओं पर हिंसा करने का कौनसा लाॅजिक बनता है? इसके बिना भी यह सब हो सकता था?
संवाद इंडिया
(लेखक हिंदी पत्रकारिता फाउंडेशन के चेयरमैन हैं)