वक्फ संशोधन कानून ने तो आंखे ही खोल दी… 370 के बाद वक्फ कानून भी विडम्बना

सुरेश शर्मा

वक्फ कानून संशोधन बिल का विपक्ष ने सामुहिक और तीखा विरोध किया है। इंडी गठबंध्ान बनाने के समय, चुनाव की एकजुटता और यूपी की जोड़ी से भी बड़ी एकता इस बिल के पेश करते समय दिखाई गई। जब मुस्लिम सांसद बिल का विरोध करने के िलए खड़े हुए तब उनके तर्कों को सुनकर यह धारणा बन रही थी कि ऐसा बिल पेश करना भारत का स्वभाव नहीं है। लेकिन जब विभाग के मंत्री किरण रिजीजू ने अपना पक्ष रखा और इस कानून के बारे में बताया। इसके प्रावधानों के बारे में बताया गया तो ऐसा लगा मानों यह तो धारा 370 से भी खतरनाक प्रावधान किया हुआ है। अजीब यह है कि नेहरू-गांधी परिवार ने आजादी के बाद भारत को मुसलमानों के हाथों गिरवी रखने का प्रयास क्यों किया? 370 से कश्मीर को अब्दुला परिवार को सौंपा गया और वक्फ कानून बनाकर 9 लाख एकड भूिम एक समाज विशेष को दे दी गई? इसमें भी ऐसा प्रावधान कर दिया गया कि किसी भी भूमि पर वक्फ का दावा हो जाये तो उसे फिर कोई चुनौती नहीं दी जा सकेगी। देश के कानून में ऐसा एक ही बोर्ड है जिसके निर्णय को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है? ऐसा कोई प्रावधान कोई आजाद देश में उस स्थिति में कोई कैसे कर सकता है जब आजादी के बाद बंटवारे में इसी समाज को पाकिस्तान के रूप में एक देश दे दिया गया। अब मोदी सरकार ने वक्फ की सभी संपत्तियों के राजस्व परीक्षण का प्रावधान किया है। समाज के अन्य तबकों का वक्फ में शामिल करने का प्रावधान किया है। इसलिए विपक्ष के द्वारा किया गया बिल पेश करने का विरोध केवल वोट बैंक की राजनीति ही है। उसी समय बांग्लादेश में हिन्दू समाज के साथ मारकाट हो रही थी उसके बारे में आैपचारिकता भी इसी विपक्ष ने नहीं दिखाई। यह भेदभाव भारत की राजनीति के लिए खतरनाक दिशा है।

2024 लोकसभा के चुनाव परिणामों पर यदि कुछ देर के लिए दृष्टि डाली जाये तो समझ में आयेगा कि यूपी ने भाजपा को उतना साथ नहीं दिया जितना पिछले दो आम चुनावों में दिया था। वहां का मुस्लिम समाज हर बार भाजपा को नहीं जीतने देने के लिए मतदान करता है। लेकिन इस बार उसका साथ हिन्दू समाज ने या तो किसी नेता के समर्थन के लिए या किसी सहज विरोध के कारण नहीं दिया। जिससे भाजपा को पिछली बार से आधी सीटें ही मिल पाईं। जिससे भाजपा अपने दम पर बहुमत से दूर हो गई? अयोध्या की वह सीट भी भाजपा हार गई जिसके कारण वह देश में प्रभाव बनाने का दावा कर रही थी। एक बात सच है कि अयोध्या का मतदाता अब खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है और बचाव के लिए ऐसे तर्क तलाश रहा है जिससे वह खुद भी सहमत नहीं है। उसके चेहरों पर पर ग्लानि साफ दिखाई दे रही है। लेकिन देश भर का मुस्लिम मतदाता ने यह साफ कर दिया कि वह कम खाकर भी मोदी को सत्ता से दूर रखना चाहता है। यही कारण है कि वक्फ बिल के विरोध में समूचा विपक्ष खड़ा हो गया और मुस्लिम मतदाताओं को यह दिखाने का प्रयास करने लगा कि वह उनका सबसे बड़ा हितैषी है।

भाजपा सरकार में आने से पहले ही वक्फ बोर्ड कानून के पक्ष में नहीं थी। उसे यह पता था कि इस कानून की आड़ में देश में ऐसा वातावरण बनाया जा रहा है जिससे आजाद भारत में कानूनी रूप से सामाजिक भेदभाव हो रहा है। नेहरू जी ने जब वक्फ कानून बनाया उसी समय भारत के मंदिरों को हिन्दू समाज से छीनकर सरकार के कब्जे में लेने का कानून भी बना दिया था। इस कानून हिन्दू समाज को सर्वाधिक कमजोर किया है। वहीं मुस्लिम समाज को आर्थिक रूप से संपन्न बनाने की व्यवस्था की है। यह बात अलग है कि इस कानून को मठाधीशों ने अपने पक्ष में कर लिया और समाज के ठेकेदार बन बैठे। अब यह ठेकेदारी समाप्त हो जायेगी? इस कानून की कमियों का ही परिणाम है कि सेना और रेलवे के बाद वक्फ ही सबसे अधिक भूमि का मालिक है। इसमेंं ऐसे स्थानों को भी वक्फ ने अपनी संपत्ति बना लिया था जहां पर 1500 साल से अधिक समय से मंदिर संचालित हो रहा है। वंशानुगत चली आ रही भूमि को भी वक्फ की बता कर कब्जा कर लिया गया। अब इन सभी भूमियों को राजस्व के साथ मिलान करके ही वक्फ को सौंपा जायेगा? वक्फ बोर्ड के निर्णयों को न्यायालय में चुनौती देकर अधिकार पाने की व्यवस्था की गई है। सरकार ने सभी विषयों का ऐसा जवाब दिया कि मुस्लिम सांसदों ने भी तौबा कर ली। सांसद ओवैसी को भी कहना पड़ा कि तारीख गवाह है कि उन्होंने पुरजोर तरीके से अपनी बात को रखा। सरकार ने भी राजनीतिक समझदारी की कि बिल को जेपीसी को सौंप दिया। सरकार पांच साल के लिए है इसलिए अगले सत्र में इसको पास करा लिया जायेगा।

अब देश में मांग उठने लगी है कि जिस प्रकार से मुस्लिम समुदाय के लिए वक्फ बोर्ड कानून बनाकर उनकी संपत्तियांे पर उनका ही अधिकार दिया गया हैद्ध वैसे ही हिन्दू समाज के मंदिरों पर से भी सरकारी अधिग्रहण को समाप्त करके समाज को सौंप दिया जाना चाहिए। वहां आने वाले चढ़ावे का समाज को समृद्ध करने के लिए उपयोग में लाया जाने दिया जाये। उस आय से स्कूल बनें। चिकित्सा की व्यवस्था हो। संस्कृत विद्यालय बनें और मंदिरों के लिए पुजारी और विद्वान तैयार किये जायें? गरीबों के उत्थान के लिए मदद की व्यवस्था भी की जा सके। सरकार को अब यह मान लेना चाहिए कि धर्म की स्थापना के लिए हिन्दू मंदिरों को समाज को सौंप देना चाहिए। यदि वक्फ बोर्ड कानून में संशोधन करते समय दूसरा एक बिल और आ जाये तो समाज के लिए शुद्ध हवा में सांस लेने जैसा संदेश जायेगा? इस मांग का दबाव होना शुरू हो गया है और इसमें तेजी आयेगी?

इसमें कोई संदेह नहीं है कि वक्फ कानून के प्रावधानों को सुनकर देश के आम व्यक्ति को भी यह समझ में आ गया है कि नेहरू गांधी परिवार ने देश को कितना बपौती समझा और जैसा चाहा वैसा उपयोग किया है। अब देश को देश के लिए तैयार करने का काम किया जा रहा है। विपक्ष ने जिस प्रकार का हंगामा मचाया वह इतनी गंभीर बात है कि उसे देश की सेहत की कोई चिंता नहीं है। देश की सेहत से अधिक उसे अपने वोटों के समीकरण की चिंता है। कांग्रेस की सरकारों ने कानून के स्वरूप को बिगाड़ा? मनमोहन सिंह की सरकार के समय जब सरकार सोनिया गांधी के कब्जे में थी तब इस वक्फ बोर्ड कानून को इतना अधिकार संपन्न बनाया जिसके निर्णयाें को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती हे। देश ऐसा काेई भी बोर्ड ऐसा नहीं है जिसको इतने या ऐसे अधिकार मिले हों। सरकार के निर्णयों को भी न्यायालय में ले जाने का अधिकार है लेकिन वक्फ बोर्ड के निर्णयों को चुनौती विहिन बना दिया गया। इसका प्रभाव यह हुआ कि वक्फ के पास देश की संपत्ति मेंं से 9 लाख एकड़ भूमि चली गई। इसमें समझने वाली बात यह है कि भारत से पाकिस्तान जाने वालों की भूमि को वक्फ की संपत्ति बना दिया गया जबकि पाक से भारत आने वाले हिन्दूओं की संपत्ति को वहां की सरकार ने सरकारी संपत्ति बना लिया। इतना ध्यान में भी नहीं रखा गया। आज भी विपक्षी दल और सपा-कांग्रेस इसी मानसिकता में जी रहे हैं। इस मानसिकता का उन मतदाताओं पर गहरा असर हो रहा है जिन्होंने मोदी को कमजोर करने के लिए इन्हें वोट दिया है।

अब सवाल यह उठ रहा है कि आखिरकार वक्फ का दबावपूर्ण समर्थन करने वाला विपक्ष बांग्लादेश में तख्ता पलट के बाद वहां के नागरिक हिन्दूओं पर हुए बर्बर अत्याचार पर आवाज क्यों नहीं उठा पाया? यह भारत के हिन्दूओं के सामने बड़ा सवाल है। यह सवाल झकझौर रहा है कि आखिरकार भारत का हिंदू मतदाता आजादी के 77 वर्ष बाद भी कट्टरवादसे परे होकर वोट कर रहा है जबकि उसे पता है कि देश का मुस्लिम मतदाता भाजपा को हराने के लिए वोट करता हे। भाजपा को हराने की सजा इसलिए दी जा रही है कि वह हिन्दू मतदाताओं को अपने पास रखने के लिए उनका पक्ष राजनीति में अधिक लेती है। सरकारी योजनाओं में कभी भी भेदभाव का आरोप नहीं लगा है। ऐसे में अब समीक्षा की जा रही है कि बांग्लादेश के हिन्दूओं को भी भारत के विपक्ष का साथ नहीं मिल पाया क्योंकि उन्हें मुस्लिम वोटों की उससे अधिक चिंता है। वह धारा 370 से भी खतरनाक वक्फ कानून का समर्थन कर सकता है लेकिन हिन्दू पर अत्याचार का नहीं?

संवाद इंडिया
(लेखक हिंदी पत्रकारिता फाउंडेशन के चेयरमैन हैं)

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