भारत की राजनीति प्रो मुस्लिम से एंटी व प्रो हिन्दू हुई… कांग्रेस के गले फंसे 370 व ठाकरे

भारत की राजनीति में दिनों दिन बदलाव आता हुआ दिखाई दे रहा है। एक समय था जब मुस्लिम पक्ष को लेकर ही राजनीति होती थी। उस समुदाय के वोट सरकार बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते थे। इस प्रकार की राजनीति आजादी के आन्दोलन के तत्काल बाद से शुरू हुई थी।

सुरेश शर्मा, भोपाल।

भारत की राजनीति में दिनों दिन बदलाव आता हुआ दिखाई दे रहा है। एक समय था जब मुस्लिम पक्ष को लेकर ही राजनीति होती थी। उस समुदाय के वोट सरकार बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते थे। इस प्रकार की राजनीति आजादी के आन्दोलन के तत्काल बाद से शुरू हुई थी। महात्मा गांधी और पंडित नेहरू ने योजना बनाकर मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन कांग्रेस के पक्ष में कर लिया था। बाद में कुछ क्षेत्रिय पार्टियों ने इस वोट बैंक में सेंधमारी की। इंिदरा काल तक ऐसा कोई भी प्रयास सफल नहीं हो पाया था। जब कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व कमजोर हुआ तब यह सेंधमारी होती ही चली गई। दूसरे पक्ष के वोट को समेटने के लिए जनसंघ की स्थापना हुई लेकिन वह मुखरता के बाद भी हिन्दू वोटों को एक साथ लाने में कामयाब नहीं हो पाया और वह सत्ता से कोसो दूर रहा। बाद में भाजपा बनी और राम मंदिर आन्दोलन ने हिन्दू मतदाताओं के रूप में एक समूह तैयार होना शुरू हुआ। इस समय देश की राजनीति प्रो मुस्लिम से बदलती दिखाई दे रही है। जिस गति से मुस्लिम मतदाता एकत्र हो रहा है उसकी प्रतिक्रिया में हिन्दू मतदाता भी एक साथ मतदान करता हुआ दिखाई दे रहा है। राजनीति में मुसलमान पीछे टूट रहा है क्योंकि राजनीतिक पार्टियां यह जानती हैं कि वह भाजपा के पक्ष्ज्ञ में जायेगा नहीं और हमें वोट देने के अलावा उसके पास कोई विकल्प नहीं है। इसलिए प्रो हिन्दू और एंटी हिन्दू की राजनीति शुरू हो चुकी है। नरेन्द्र मोदी के राजनीति के केन्द्र में आने के बाद हिन्दू मतदाता ने अपना रूझान वोट को एक साथ देने के प्रति बढ़ाया है। जबकि राहुल गांधी जातिगत जनगणना की बात करके हिन्दू विरोध की राजनीति की ओरे बढ़ते दिख रहे हैं। यह बात जितना अधिक समझ में आयेगी हिन्दू उसी अनुपात में एक साथ वोट डालने लग जायेगा। हरियाणा का चुनाव इसी बात को कह रहा है साथ में महाराष्ट्र के चुनाव में बाल ठाकरे का प्रवेश होना भी इसी बात का प्रमाण है। कश्मीर में धारा 370 वाला प्रस्ताव और महाराष्ट्र में ठाकरे का जवाब कांग्रेस के पास नहीं है।

हरियाणा विधानसभा के चुनाव में मतदाताओं को यह लग गया था कि भारत की राजनीति में मुस्लिम समर्थन का बोलबाला देश के लिए घातक है। यह सामाजिक रूप से उससे भी अधिक घातक है। मेवात का वातावरण देखकर तो ऐसा ही उसे लगा। हिन्दू धार्मिक यात्राओं पर पथराव की बढ़ती घटनाओं ने सामाजिक समन्वय की पोल खोल दी तथा गंगा जमुनी तहजीब को एकतरफा प्रमाणित कर दिया। इसके बाद खुद को सुरक्षित और बेटियों की सुरक्षा के लिए वोट बैंक बनने की दिशा में तेजी से बढ़ा गया। मुस्लिम समाज का भाजपा के विरोध में खुलकर वोट देने की भी विपरीत प्रक्रिया हुई और हरियाणा में चुनाव बदल गया। हरियाणा के चुनाव से एक बात ने राजनीति को बदल दिया कि कांग्रेस आज भी अपने दम पर किसी भी राज्य में सत्ता छीनने की स्थिति में नहीं आई है। इसलिए महाराष्ट्र में उसकी ताकत कमजोरी में बदल गई। हिन्दू मतदाताओं का कुछ समर्थन उद्धव ठाकरे के साथ होने का लाभ लोकसभा में कांग्रेस ने उठाया था अब बाल ठाकरे को सामने खड़ा करके नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस की गर्दन पर हाथ रख दिया है।

बाल ठाकरे की राजनीति को महाराष्ट्र में मुख्य रूप से बताते हुए उन्होंने उनकी विचारधारा का प्रबल समर्थन किया। यह चुनौती कांग्रेस के सामने रख दी कि वह उद्धव के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है इसलिए वह बाल ठाकरे के महाराष्ट्र में योगदान की तारीफ करते हुए उनकी विचारधारा को बेहतर बताने का साहस दिखा दे। अन्यथा कांग्रेस हिन्दू विरोध की राजनीति करती है। इसका लाभ उद्धव को मिल सकता है लेकिन उससे अधिक भाजपा को इसका लाभ होगा। एकनाथ शिंदे ने पहले ही ठाकरे की विचारधारा को अपनी विचारधारा बताकर उद्धव के सामने समस्या पैदा ही हुई हे। अब मोदी ने भी कांग्रेस पर निशाना साधकर हिन्दू पक्ष की राजनीति का प्रवेश महाराष्ट्र में करवा दिया है। अब वहां हिन्दू सायलेंट नहीं रहने वाला है। जिस प्रकार से उसने हरियाणा में खेला कर दिखाया था। यह चर्चा भी सबकी जानकारी है ही कि संघ ने महाराष्ट्र में चुनाव को संभालने का काम करना शुरू कर दिया है। ऐसे में कांग्रेस अब महा अघाड़ी के लिए समस्या हो गई है। यह केवल बाल ठाकरे की इंट्री के बाद समस्या बनी इतना भर नहीं है। जम्मू कश्मीर में कांग्रेस उमर की सरकार को बाहर से समर्थन दे रही है। उमर सरकार ने धारा 370 की वापसी के लिए सदन में प्रस्ताव रखकर कांग्रेस को एक्सपोज कर दिया है। कांग्रेस न तो समर्थन कर रही है लेकिन वह विरोध भी नहीं कर रही है। इसका प्रभाव महाराष्ट्र में दिखाई दे रहा है। कांग्रेस उस समय की परिस्थितियों के कारण 370 जम्मू कश्मीर में लगाई थी लेकिन आज की परिस्थितियां अलग है फिर समर्थन करने की क्या जरूरत है। विरोध खुलकर करना होगा।

धारा 370 की राजनीति ने भी प्रो हिन्दू रूप ले रखा है। जम्मू कश्मीर के घटनाक्रमों ने यह बताया था कि यहां से कश्मीरी पंडितों को बेघर किया गया था। उस समय कांग्रेस की केन्द्र में सरकार थी। अब वे वहां चुनाव में भागीदार हुए हैं। भाजपा ने कश्मीर चुनाव में एक दर्जन से अधिक मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे। एक भी नहीं जीत पाया। यह सच है कि कुछ स्थानों पर वे दूसरे नम्बर पर रहे लेकिन मुस्लिम समर्थन करने नहीं आया। मोदी के विकास के प्रयासों के सामने धार्मिकता का प्रभाव अधिक हुआ। कश्मीर के मुसलमान ने भी भारत के मुसलमानों की भांति भाजपा को पसंद नहीं किया। इसलिए 370 की वापसी ने हिन्दू मतदाताओं को झकझौरा है।

जब महाराष्ट्र के मतदाताओं को हिन्दू ह्दय सम्राट बाला साहब ठाकरे के पुत्र का इस प्रकार का बयान सुनाई देगा तब उसकी मंशा क्या होगी? उद्धव ने कहा कि जब मुसलमानों को कुबार्नी खुले में नहीं देने दी जाती तब हिन्दूओं को दिवाली के दिन खुले में आतिशबाजी क्यों करने दी जाती है? जब इंडी गठबंधन के समर्थक दल हिन्दूत्व काे कीड़ा मकौडा, मच्छर बताते हुए उसे समाप्त करने की बात करते हैं। जब अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव हिन्दू विरोधी राजनीति डंके की चोट पर करते हैं। जब राहुल गांधी हिन्दू जाितयों का निर्माण और उद्योग के साथ टकराव पैदा कराने का प्रयाय करते हैं। जब जातिगत जनगणना की बात करके समाज में दूरियां पैदा की जा रही है जब तो प्रो हिन्दू और एंटी हिन्दू की राजनीित की चर्चा स्वभाविक रूप से होगी ही। भाजपा के साथ कुछ अन्य राजनीतिक दल भी प्रो हिन्दू राजनीति करके देश के जनमानस को यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि इस देश को आज के राजनीतिक तौर-तरीको से बड़ा नुकसान संभव है। ऐसे में कांग्रेस की शक्ति के क्षीण होने का सिलसिला शुरू होता है। इसे उसके क्षेत्रीय नेता सहयोग कर रहे हैं। कर्नाटक की सरकार के समाचार इसमें सहायक हो रहे हैं। तब कांग्रेस हिन्दू विरोधी दिखाई देने लग जाती है। वह एंटी हिन्दू होने के कारण अन्य दलों के लिए भी समस्या पैदा कर सकती है। यह बात समझ में आना शुरू हो गई है।

भारत की राजनीति में यह बड़े बदलाव का समय है। इस समय मुस्लिम वोट बें की तुलना में हिन्दू वोट बैंक भी तैयार हो रहा है। यह समीक्षक कह सकते हैं कि यह देश के हित में होगा या नहीं? लेकिन जब मुस्लिम वोट बैंक घातक नहीं हुआ तो हिन्दू वोट बैंक कैसे घातक बताया जा सकता है। इस समय देश की राजनीति के लिए सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि मुस्लिम मतदाता डंके की चोट पर भाजपा को हराने के लिए वोट दे रहा है और उन भाजपा के नेताओं संख्या लगातार बढ़ती जा रही है जो खुलकर मतलब डंके की चोट पर हिन्दू समर्थन की बात करने लग रहे हैं। यह टकराव है। लेकिन इस टकराव का कारण मुस्लिम समुदाय का हराने के लिए वोट देना है। विरोध में वोट देना और हराने के लिए वोट देने के अन्तर ने इस प्रकार की राजनीति को जन्म दे दिया है। यह तो देश के कर्णध्ाारों को समझना होगा कि इसे आगे ऐसे ही बढ़ाना है या सामाजिक समन्वय का कोई फार्मूला निकालना है। अभी यह बीमारी सरकार के निर्णयों में दिखाई नहीं दे रही है लेकिन इसे कितने दिन तक कोई रोक पायेगा? फिर भी आजादी के समय मुस्लिम पक्ष की राजनीति का बीज बोया था उसके समानान्तर हिन्दू पक्ष की राजनीति भी फल देने लग गई है। अब फल चखते रहे या किसी अन्य तरीके काे इजाद करने पर मंथन करना शुरू करें। कुछ समय ऐसा ही ररहेगा।

संवाद इंडिया
(लेखक हिन्दी प्रत्रकारिता फाउंडेशन के चेयरमैन हैं)

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