‘हार्दिक’ पटेल के भाजपाई बनने के ‘मायने’
मोदी सरकार को आठ साल हो गये। आठ साल में कोई मोदी की हिन्दूत्ववादी छवि को रेखांकित करता तो कोई ताकतवर नेता की जिसे वैश्विक नेता माना जाने लग गया। कोई उनको हिन्दू-मुस्लिम द्वंद्व कराने वाला और उन्हें सबका साथ सबका विकास का पैरोकार। विपक्ष उन्हें संघीय व्यवस्था के विपरीत काम करने वाला बताने का प्रयास करता है तो कुछ दल ऐसे भी हैं जो मोदी को संघीय व्यवस्था के बेहतरीन संचालक के रूप में पेश करते हैं। उनका तर्क होता है कि कुछ गैर भाजपाई सरकारें हद को बहुत पहले पार कर चुकी हैं इसके बाद भी उनको हटाने का कोई प्रयास मोदी की ओर से नहीं दिखाई देता। ये सब बातें राजनीतिक और पत्रकारीय क्षेत्र में विशेष प्रकार के नेताओं और लेखकों की हैं। ऐसे में हार्दिक पटेल जब भाजपाई होने का रास्ता चुनता है तब ये सब बातें गौण हो जाती हैं और केवल यह दिखाई देने लग जाता है कि क्या किसी भी प्रतिभावान युवा को भाजपा के अलावा कोई राजनीतिक दल सुहाता नहीं है? ज्योतिरादित्यि सिंधिया, नितिन प्रसाद और हार्दिक से पहले भाजपा का दामन थामने वाले और गुजरात के युवा। आखिर इसका कोई तो संदेश होगा?
संदेश है जिसे हिन्दू-मुसलमान विवाद कहा जा रहा है वह अल्प सोच है। यह सांस्कृतिक लड़ाई है। मुगलों ने मंदिर तोड़े तब उनका समय था आज सनातन सभ्यता का। ऐसे में संघ प्रमुख की इस बात को समझना चाहिए कि सभी मस्जिदों में शिवलिंग देखने की क्या जरूरत है? युवा मोदी की नीतियों को पसंद कर रहा है। जिसमें रोजगार के साथ स्व रोजगार भी है। आन्तरिक व बाह्य सुरक्षा भी है। सामाजिक व धार्मिक सन्तुलन भी है। लकीर के फकीरों की छोडि़ए उनका क्या है अन्यथा हर समझने वाले युवा को मोदी भा रहा है। यही कारण है कि युवा राहुल गांधी को छोडक़र कोई यूं ही हार्दिक पटेल नरेन्द्र मोदी के पाले में उनका सिपाई बनने नहीं जाता।