‘सेम’ का हुआ तो हुआ अब राहुल बोले क्यों ‘कहा’?

भोपाल। यह राजनीतिक विवशता ही थी कि श्रीमान राहुल गांधी को अपने गुरू और कांग्रेस की वैश्विक फोरम के अध्यक्ष को सेम पित्रोदा को सार्वजनिक लताड़ लगाना पड़ी। पंजाब की एक सभा में राहुल गांधी ने कहा कि सेम पित्रोदा जी आपको शर्म आना चाहिए आपने ऐसा बयान दिया। आपको माफी मांगना चाहिए। राहुल का यह बयान जरूर कुछ मरहम लगायेगा। लेकिन घाव जो फिर से हरे कर दिये गये उनका ईलाज इतने भर से हो जायेगा इसकी समीक्षा करने की जरूरत है। जिस पंजाब ने कांग्रेस को सरकार दी। वहां पर दर्द को भूल कर कांग्रेस को अपनाया उसी के एक खास नेता ने बड़ा दर्द दे भी दिया और पुराने दर्द को याद भी दिला दिया। क्या राहुल गांधी को इस प्रकार से लताडऩा राजनीतिक है? क्या राहुल गांधी के दिल में अपने पिता से विपरीत भाव हैं? राजीव जी ने कहा था कि जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है। राहुल गांधी अपने पिता से विपरीत जाने की हिम्मत दिखा सकते हैं? नहीं ऐसा करने की न तो हिम्मत है और न ही वे ऐसा करेंगे? कांग्रेस गांधी-नेहरू परिवार के पूर्वजों की गाथा पर टिकी हुई है। यदि उनकी गलतियों को सामने लाने का प्रयास हुआ और उस पर राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा सफाई देने लग जायेंगे तब इस परिवार की मर्यादा घट जायेगी और कांग्रेस का आधार कम होता चला जायेगा।
 एक प्रसंग इस अवसर पर याद आ रहा है। केन्द्र में यूपीए की सरकार थी। मनमोहन सिंह जैसा विश्व का माना हुआ अर्थशास्त्री देश का प्रधानमंत्री था। तब एक अध्यादेश आया था। राहुल गांधी ने पत्रकार वार्ता में उस अध्यादेश को फाड़कर बता दिया था कि राजनीतिक लाभ के लिए इतने महत्वपूर्ण व्यक्ति की उन्हें परवाह नहीं है। अब भी उन्होंने ऐसा ही किया है? सेम पित्रोदा की हैसियत विश्व के कुछ देशों में भी है। वे उनके पिता के साथ काम करने वाले प्रभावशाली व्यक्ति हैं। उन्हें संभव है कि राजनीति नहीं आती होगी और वे ऐसा बोल गये। उन्हें सही दिशा में लाने का प्रयास करना चाहिए इस तरीके से सार्वजनिक रूप से अपमानित नहीं करना चाहिए था। फिर भी राजनीतिक लाभ के लिए मनमोहन को नीचा दिखाया जा सकता है तब सेम पित्रोदा की क्या बिसात है? देश भर के सिखों में अपमान का भाव आया है। आज की पीढ़ी को भी पता चल गया है कि 84 में सिखों के साथ क्या हुआ था? किसने किया था? और वह राजनीतिक लाभ के लिए किस हद तक जा रहे हैं।
सेम पित्रोदा और शशि थरूर को विदेशी मामलों का जानकार माना जाता है। हो सकता है कि दोनों देश की राजनीतिक तासीर को नहीं पहचान पा रहे हों। लेकिन इतना तो समझ रखते ही हैं कि किस बयान का कितना लाभ होता है और कितना नुकसान। शशि थरूर का ज्ञान कांग्रेस के काम नहीं आया तो उन्हें किनारे कर दिया। किनारे करने का दर्द वे सहन नहीं कर पा रहे हैं। उनकी जुबा पर यह दर्द आया तो राजनीति में उनकी छवि पर बट्टा लग गया। कांग्रेस को उनकी उपस्थिति का घाटा होता है। राहुल गांधी सेम पित्रोदा से रणनीति और विदेश नीति के गुर सीख रहे थे उन्हें अब पछतावा हो रहा होगा कि आखिर उनके एक बयान से कांग्रेस की साख भी हिली और वोट बैंक भी।

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