‘सुधार’ और बगावत के बीच उलझ गये ‘जांगिड़’


भोपाल (सुरेश शर्मा)। सवाल यह उठ रहा है कि क्या मध्यप्रदेश में एक खेमका पैदा हो गया है? जवाब अभी सामने नहीं आ रहा है इसलिए इसकी तुलना और समीक्षा करने की जरूरत दिख रही है। कई पत्रकारों ने लिखा भी है और वे भी अपने दमदार तर्कों के साथ सामने आये हैं। वास्तव में पिछले दिनों से समीक्षा हो या पत्रकारिता अपने-अपने स्वभाव और तर्कों के आधार पर की जाने लग गई है तथ्यों के साथ तालमेल कई बार टूट जाता है। कुछ लेखक मोदी की कमियों से भरे आलेख ही छपने देते हैं तो कुछ को राहुल गांधी हर एंगल से पप्पु ही लगता है। इसका मतलब यह तो नहीं हो सकता कि मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद केवल वे ही काम किये हैं जिनमें कमियां हैं या राहुल गांधी का उपर का माला पूरी तौर पर खाली है? इसलिए हर समीक्षा का अपना महत्व दिख जाता है। आज जब हम मध्यप्रदेश के युवा आइएएस अधिकारी लोकेश कुमार जांगिड़ की बात कर रहे हैं तब हमें उनमें एक विशेष बात दिखाई दे रही है कि उन्होंने अपने घर में ही आग लगाकर समाज में रौशनी दिखाने का प्रयास किया है। यह बहुत बड़ा जोखिम भरा काम है। देश में तीन लाबियां काम करती हैं। औद्योगिक लाबी, जिसकी ताकत से भी अधिक बड़ी ताकत रखती है ब्यूरोक्रेसी की लाबी। इसमें हाथ डालने का मतलब जांगिड़ को अभी पता नहीं है।

बड़वानी कलेक्टर के मामले में भ्रष्टाचार की बात सामने लाकर लोकेश ने जिस सहास का परिचय दिया वह सराहना की बात है। लेकिन उसका प्रभाव क्या होगा और उसे घर के भीतर से ही ललकारा जायेगा यह तो होना ही था। इस लाबी के सामने खड़े होने की स्थिति में तो जब उद्योगपतियों और राजनेताओं की लाबी सक्षम नहीं है तो अन्दर की आवाज कब नक्कारखाने की तूती बन जायेगी समझा जा सकता है। इससे पहले की कई आवाजे खामोश हो चुकी हैं। क्लब में उठती हैं और मीडिया में आने के बाद खामोश हो जाती हैं। खैर! लोकेश जी को खेमका बनने का चाव है तो वे जाने। लेकिन खेमका ने घर में कभी मामला नहीं उठाया उन्होंने दूसरी लाबी को चुनौती दी जिससे अपने लोग उनके साथ रहे। वे एक्टिविस्ट बन गये। जिस प्रकार इन दिनों देश में एनजीओ वाले एक्टिविस्ट बन कर देश की राजनीति में हलचल पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं। वे राजनेताओं पर गुरिल्ला हमला करते हैं और अपने पर मामला आता है तब माफी मांग कर भाग जाते हैं।

जांगिड़ साहब युवा हैं उन्होंने सुधार का जो काम शुरू किया है उसे थोड़ा जल्दी शुरू कर दिया। कुछ समय रूक कर करना था क्योंकि ब्यूरोक्रेसी वाली लाबी को इसे बगावत सिद्ध करने में अधिक समय नहीं लगेगा। राजनेता भी इसे बगावत ही मानेंगे? ऐसे में यदि दिग्विजय सिंह जैसे दिग्गज नेता का साथ बिन मांगे मिल जाये तब तो भगवान भी कितना रक्षा करेगा समझा जा सकता है। अब यह मामला सुधार व बगावत के साथ राजनीतिक पेंचबाजी का भी हो गया और लोकेश जंगिड़ जी को सबूतों के बियाबान में घूमना पड़ेगा। जो जान से मारने की धमकी के सबूतों की घटना से समझा जा सकता है। राह कठिन चुन ली है तब इतना तो सहना ही पड़ेगा।

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